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Tuesday 30 January 2018 01:18:49 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ बिबेक देबरॉय ने आर्थिक सर्वेक्षण में अर्थव्यवस्था के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने को रेखांकित करते हुए कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार की विकास की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि सरकार के संरचनात्मक सुधारों जैसे जीएसटी, बैंकों को अतिरिक्त पूंजी देना, नियमों को उदार बनाने के उपाय और आईबीसी प्रक्रिया के माध्यम से समाधान आदि के आधार पर आर्थिक सर्वेक्षण ने आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। डॉ बिबेक देबरॉय ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण ने 2018-19 के लिए पूरे वर्ष वास्तविक जीडीपी विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान किया है, जो साल की दूसरी छमाही में 7.5 प्रतिशत के वास्तविक विकास दर पर आधारित है और 2018-19 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण ने वास्तविक जीडीपी विकास दर 7-7.5 के बीच रहने का अनुमान लगाया है।
डॉ बिबेक देबरॉय ने आर्थिक सर्वेक्षण में रेखांकित किए गए विकास में वृद्धि पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि 2018-19 के लिए वास्तविक जीडीपी विकास दर 7 प्रतिशत के बजाय 7.5 प्रतिशत के नजदीक रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि सरकार वित्तीय सशक्तिकरण और कुशल सार्वजनिक व्यय के लिए प्रतिबद्ध है तथा यदि सार्वजनिक व्यय के लिए गैरबजटीय स्रोतों से धनराशि उपलब्ध होती है तो यह और भी बेहतर होगा। उन्होंने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि निर्यात, निजी निवेश और खपत ही विकास को गति प्रदान करेंगे, सर्वेक्षण में निर्यात और निजी निवेश में बढ़ोत्तरी की संभावना व्यक्त की गई है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में जोर दिया गया है कि विमुद्रीकरण केवल एक मामूली व्यवधान था, जिसका प्रभाव 2017 के मध्य से आगे नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि इस पहलू पर जोर देना आवश्यक था, क्योंकि जीडीपी विकास दर पर विमुद्रीकरण के प्रभाव को लेकर कई प्रकार के सामान्य वक्तव्य दिए गए हैं, विमुद्रीकरण एवं जीएसटी का एक उद्देश्य करदाता आधार को बढ़ाना था। डॉ बिबेक देबरॉय ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण में यह प्रदर्शित करने के लिए संख्याएं दी गई हैं कि इन नीतिगत कदमों के फलस्वरूप करदाताओं की संख्या में वास्तव में बढ़ोतरी हुई है, हालांकि इनमें से कई करदाताओं ने ऐसी आय घोषित की है, जो न्यूनतम सीमास्तर के करीब है।
डॉ बिबेक देबरॉय ने कहा कि विश्वसनीय आंकड़ों की कमी के बावजूद रोज़गार वृद्धि को लेकर काफी बहस होती रही है, सर्वेक्षण में विशिष्ट संख्याएं दी गई हैं, जो प्रदर्शित करती हैं कि औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार उस सीमा से कहीं अधिक है, जिसका आमतौर पर संकेत दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में कम हो रहे जोखिमों एवं बढ़ रहे लाभों की सूची दी गई है, जो 2018-19 में विकास को प्रभावित करेंगे, इनमें कम होते जोखिमों के बीच सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कच्चे तेल की कीमतें हैं। डॉ बिबेक देबरॉय का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में किसी भी वृद्धि के प्रभाव की क्षतिपूर्ति निर्यात में प्रतिलाभ, निजी निवेशों एवं यहांतक कि निजी उपभोग के द्वारा हो जाएगी, जबतक कि वास्तविक ब्याज दरें बहुत ऊंची बनी हुई न रहें।