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Sunday 25 February 2018 05:05:55 PM
चेन्नई। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज की फिल्मों पर सवाल खड़े करते हुए प्रश्न किया है कि क्या फिल्में समाज का आईना हैं? उन्होंने सीख देने के अंदाज़ में कहा कि फिल्मों को बदलाव का साधन बनना चाहिए, सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देना चाहिए तथा अपनी लोकप्रियता को कम किए बिना सांप्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति को बढ़ावा देना चाहिए। उपराष्ट्रपति चेन्नई में एक कार्यक्रम में बी नागी रेड्डी पर डाक टिकट और एक पुस्तक जारी करने के बाद जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि नागी रेड्डी एक जाने-माने प्रकाशक, सफल फिल्म निर्माता, समाजसेवी और एक महान मानवतावादी थे। उन्होंने कहा कि उनकी सबसे सफल परियोजनाओं में से एक 1947 में बच्चों की पत्रिका 'चंदामामा' का शुभारंभ करना था, नेत्रहीनों के लिए चंदामामा का चार भाषाओं में ब्रेल संस्करण भी था, इससे उनके अंदर नेत्रहीनों के प्रति मानवीयता दृष्टिकोण झलकता है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने फिल्म निर्माताओं का आह्वान किया कि वे भ्रष्टाचार, जातिवाद, शराब और नशीले पदार्थों की लत, महिलाओं पर अत्याचार, लिंग आधारित भेदभाव, सामंतवाद और धार्मिक या वैचारिक अतिवाद के खतरे जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने के प्रयास करें। उन्होंने कहा कि फिल्म व्यवसाय से जुड़े लोगों को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या फिल्में समाज में होने वाली घटनाओं का आईना हैं? उन्होंने कहा कि यह सोचना एकदम गलत है कि हिंसा, अपराध और अश्लीलता का चित्रण किए बिना साफ और विशुद्ध रूपसे मनोरंजक फिल्में नहीं बनाई जा सकती हैं।
वेंकैया नायडू ने कहा कि मनोरंजन के नाम पर हिंसा और अश्लीलता को असंगत तरीके से बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए, खासतौर से जब फिल्मों का जनता पर काफी असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सभी जानते हैं कि सिनेमा संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है। उन्होंने कहा कि हिंसा, असहिष्णुता और अपराध के वर्तमान समय में फिल्म निर्माताओं की बड़ी जिम्मेदारी है कि वे संदेश देने वाली फिल्में बनाएं और फिल्में मनोरंजक भी होनी चाहिए। कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित, राज्य के उच्च शिक्षामंत्री केपी अनबलागन, तमिलनाडु के चीफ पोस्ट मास्टर जनरल एम संपत और गणमान्य नागरिक भी मौजूद थे।