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Thursday 22 March 2018 11:55:03 AM
नई दिल्ली। हिंदू कालेज की नाट्य संस्था अभिरंग ने फाउंडेशन फ़ॉर क्रिएटिविटी एंड कम्युनिकेशन के सहयोग से सांस्कृतिक भ्रमण का आयोजन किया। सांस्कृतिक यात्रा का शीर्षक था-'कुछ दूर तो चलकर देखो।' जाने-माने नाटककार और यात्रा आख्यानकार प्रोफेसर असग़र वजाहत के निर्देशन में युवा कलाकारों को ग़ालिब की हवेली, जामा मस्जिद और गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के दर्शन कराए गए। गौरतलब है कि हिंदू कॉलेज और उसकी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों पर इस प्रकार के कार्यक्रम होते रहते हैं, जिन्हें हितधारकों और जनसामान्य में काफी सराहना मिलती है।
प्रोफेसर असग़र वजाहत ने भारतीय संस्कृति के अनेक बेजोड़ प्रसंगों और इन स्थानों के ऐतिहासिक वृतांतों की जानकारियां दीं। उन्होंने जामा मस्जिद के निर्माण की जानकारी और उससे जुड़ी किंवदंतियां भी सुनाईं, जिसमें सांस्कृतिक यात्रियों को सूफी संत सरमद और औरंगज़ेब के किस्से तथा जामा मस्जिद के वास्तुकार खलील के बारे में बताना बेहद रोचक था। सांस्कृतिक यात्रा में जामा मस्जिद से गली कासिमजान जाते हुए प्रोफेसर असग़र वजाहत ने मीर तक़ी मीर के प्रसिद्ध शेर-'कूचे न थे दिल्ली के औराक़ ए मुसव्विर थे, जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई' को सुनना-सुनना विद्यार्थियों के लिए हृदयस्पर्शी था।
ग़ालिब की शायरी के महत्व पर उन्होंने कहा कि वे भारत के पहले आधुनिक शायर हैं। प्रोफेसर असग़र वजाहत ने गुरु तेगबहादुर की शहादत और गुरुद्वारे की ऐतिहासिकता के कुछ प्रसंग भी सुनाए। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने टूरिज्म और सोशल टूरिज्म का अंतर बताते हुए कहा कि असग़र वजाहत के यात्रा आख्यान सोशल टूरिज्म के दस्तावेज़ हैं। प्रोफेसर असग़र वजाहत ने सांस्कृतिक भ्रमण में युवा रंगकर्मियों की अनेक जिज्ञासाओं के उत्तर दिए। अभिरंग की तरफ से रंग निर्देशक आशीष मोदी ने प्रोफेसर असग़र वजाहत को स्मृति चिन्ह भेंट किया। अभिरंग के संयोजक पीयूष पुष्पम ने आभार प्रदर्शित किया और चाँदनी चौक की प्रसिद्ध बेड़मी पूरी का रसास्वादन किया गया।