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Tuesday 27 March 2018 05:32:29 PM
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय में समाज कार्यविभाग के सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज़ इन सोशल वर्क की पाठ्यक्रम विकास पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया, जिसमें समाज कार्यविभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर गुरनाम सिंह ने कहा कि अब बाज़ार के अनुरूप पाठ्यक्रमों के विकास की आवश्यकता है। संगोष्ठी के आयोजन सचिव प्रोफेसर अनूप कुमार भारतीय ने कहा कि कोठारी कमीशन की संस्तुतियों के आधार पर उच्चशिक्षा के स्तर में भारी बदलाव की आवश्यकता को दृष्टिगत करते हुए इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान एवं भावी रोज़गारपरक संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम विकास की आवश्यकता है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर पीसी मिश्र ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की संस्तुतियों के आधार पर विश्वविद्यालय के समस्त पाठ्यक्रमों में रोज़गारपरक विषयवस्तु को समाहित करने की लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति की अनुशंसा के क्रम में समाज कार्यविभाग की पहल प्रशंसनीय है। उन्होंने भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से पधारे विषय विशेषज्ञों का आह्वान किया कि वे अपने अनुभवों के आधार पर इस तरह के पाठ्यक्रम विकसित करने में सहयोग प्रदान करें, जो समाज कार्य के वर्तमान एवं भविष्य के विद्यार्थियों के लिए रोज़गारपरक सिद्ध हों। लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्यविभाग में वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर राजकुमार सिंह ने कहा कि पाठ्यक्रमों के विकास में मूलत: व्यावहारिकता, सामयिक आवश्यकताएं और राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तरों पर उनकी उपयोगिताओं का समावेश होना चाहिए। कार्यक्रम में प्रोफेसर राजकुमार सिंह ने विषय विशेषज्ञों, समाज कार्यविभाग के सेवानिवृत शिक्षकों, लखनऊ विश्वविद्यालय के विभागों के शिक्षकों और छात्र-छात्राओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।
गौरतलब है कि वर्ष 1964 में भारत सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार और नई दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया था, जिसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। डॉ दौलतसिंह कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे। कोठारी आयोग ने भारतीय स्कूली शिक्षा की गहन समीक्षा प्रस्तुत की थी, जो भारत के शिक्षा के इतिहास में आज भी सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है। कोठारी आयोग जिसे वर्ष 1966 से राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के नाम से जाना जाता है, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस सुझाव दिए थे। भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 24 जुलाई 1968 को घोषित की गई थी, जो पूर्ण रूपसे कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर आधारित थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सामाजिक दक्षता, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया, जिसमें शिक्षा प्रणाली का रूपांतरणकर 10+2+3 पद्धति का विकास, हिंदी का संपर्क भाषा के रूपमें विकास, शिक्षा अवसरों की समानता का प्रयास, विज्ञान व तकनीकी शिक्षा पर बल और नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों के विकास पर जोर दिया गया।