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Thursday 26 April 2018 02:03:24 PM
देहरादून। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास साथ-साथ चलना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने देहरादून में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि वन प्रबंधन का मूलभूत सिद्धांत प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और इसके सतत उपयोग पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है और हमें बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति के साथ जीना सीखना चाहिए, पेड़ लगाना और पेड़ों की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का पवित्र कर्तव्य होना चाहिए।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि वन आच्छादन को बढ़ाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए और नीति आयोग तथा केंद्र सरकार के पास अच्छे कार्य करने वाले राज्यों के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिएं। वेंकैया नायडू ने कहा कि वन, नदियां और प्रकृति माता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण को जन आंदोलन बनाया जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि मनुष्य और वन के बीच सहजीवन का संबंध है और यह हमारे देशवासियों के धार्मिक और सामाजिक तथा सांस्कृतिक मानसिकता के साथ गहरे रूपसे जुड़ा हुआ भी है। वेंकैया नायडू ने कहा कि हाल के वर्ष में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग तथा प्रकृति के बारे में समझ की कमी के कारण यह संबंध अस्त-व्यस्त हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति पारंपरिक रूपसे पेड़ों को दिव्यता के प्रतीक के रूपमें सम्मानित करती है। उन्होंने कहा कि ‘फिकस रैलीजियोसा’ के नाम से जाने जाने वाले पीपल पेड़ को काटना पाप माना जाता है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि जनजातियों और स्थानीय समुदायों को संरक्षण के तरीकों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए, वन्यकर्मियों को विकास के लिए सुविधा प्रदान करने वाला बनना चाहिए और इसके लिए राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वन्यकर्मियों को आम लोगों विशेषकर जनजातियों के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि जनजाति समुदाय अपनी आजीविका के लिए वन पर निर्भर होते हैं। उन्होंने कहा कि वन प्रबंधन के प्रति रणनीति के बदलाव के संदर्भ में भारत ने लम्बी दूरी तय की है, पहले वन संरक्षण के नाम पर लोगों को वन से दूर रखा जाता था, अब संयुक्त वन प्रबंधन के तहत लोगों के सहयोग से वन का प्रबंधन किया जाता है। दीक्षांत समारोह में उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय विज्ञान व तकनीकी, पृथ्वी विज्ञान तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन, प्रशिक्षु अधिकारी और गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।