Thursday 16 August 2018 06:00:26 PM
दिनेश शर्मा
अफसोस! अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। आज उनकी गौरवशाली और समृद्धशाली स्मृतियां ही रह गई हैं, जिनपर इस देश को नाज़ है और जिन्हें याद करके यह देश सदैव अपने उज्जवल भविष्य की कामना करता रहेगा। देश-दुनिया और वास्तविक सामाजिक समरसता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए हिंदुस्तान में यह जाना पहचाना नाम है, जिसके नाम के आगे-पीछे किसी भी विशेषण की कोई भी आवश्यकता नहीं है। यह वो नाम है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से लेकर भारत के राजनीतिक क्षितिज पर लंबे समय तक धूमकेतु की तरह छाया रहा है, जो अपने देश, भारतीय जनता पार्टी और हिंदुत्व केलिए एक देवता और पूजनीय बन चुका है। ये भारत की वो अज़ीम शख्सियत है, जिसने देश के विदेश मंत्री के पद पर रहते हुए संयुक्तराष्ट्र में हिंदी बोलकर दुनिया का ध्यान हिंदी और अपनी ओर खींचा। यह वो हिम्मतवाला नाम है, जिसने पोखरण परमाणु परीक्षण करके भारत को विश्व के परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों में शामिल किया। यह वो नाम है, जिसने भारत में सर्वशिक्षा अभियान चलाकर हर बच्चे और बच्चियों के शिक्षा के सपने को पूरा करने की अलख जगाई।
अटल बिहारी वाजपेयी के नाम देश के लिए कोई एक उपलब्धि हो तो बताएं भी, वह उपलब्धियों के सृजनहार थे। उनके साथ देश था और वह देश के लिए सोचते जीते थे। यह वो हस्ती है, जिसने निश्चल मन से भारत और पाकिस्तान में मित्रता के लिए और कश्मीर के समाधान केलिए दिनरात एक किया, यह अलग बात है कि बदले में पाकिस्तान से भारत को कारगिल पर छद्म युद्ध मिला, किंतु अटल बिहारी वाजपेयी ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया, जिसे पाकिस्तान आजतक नहीं भूला है। यह नाम भारतीय जनता पार्टी का वह सिरमौर है, जिसने जनसंघ से लेकर जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के सपने को पूरा करने में उल्लेखनीय और अनुकरणीय सफलताएं अर्जित कीं और इस कारण आज भारतीय जनता पार्टी केवल अपने दम पर देश की सत्ता में है। हमारी नज़रों के सामने यह नाम देश के अनेक बड़े राजनीतिज्ञों के लिए तारणहार बना है। मसलन उन्होंने दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री, जी हां मुख्यमंत्री बनाया, भलेही जब अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध करने के लिए मायावती के चार वोटों की जरूरत पड़ी तो मायावती ने उनसे दलितों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की शर्त मनवाई एवं बदले में अपने दल के वोट देने का वादा करके भी धोखा दे दिया, जिससे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई और उन्हें एक वोट से सत्ता से हट जाना पड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी की इस पराजय से प्रफुल्लित होकर संसद से बाहर आकर मायावती ने कहा था कि आज मैने भाजपा से अपना बदला ले लिया है।
अटल बिहारी वाजपेयी जानते थे कि सपा की हत्या की साजिश से मायावती को बचाना तो उनका धर्म है, मगर उन्हें भाजपा का समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनाना भाजपा के लिए घातक हो जाएगा और जो हुआ, लेकिन उन्होंने तब स्टेट गेस्ट हाउस लखनऊ में समाजवादी पार्टी के ग़ुंडों से घिरी मायावती के लिए लोकसभा में यह भी कहा था कि आज राजनीति करने का समय नहीं है, बल्कि लखनऊ में एक महिला राजनेता की हत्या की साजिश रची गई है, जिसे तुरंत विफल करने की आवश्यकता है, केंद्र सरकार इसके लिए कुछ करे, मगर तब केंद्र सरकार मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पर बड़ी मेहरबान थी, उसने कुछ नहीं किया, लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी के नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी समाजवादी पार्टी के ग़ुंडों का सामना करने के लिए और मायावती की जीवनरक्षा केलिए स्टेट गेस्ट हाउस पर पहुंच गए थे, जिससे मायावती के जीवन की रक्षा हो सकी और सायंकाल भारतीय जनता पार्टी ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए राज्यपाल को भाजपा का समर्थन पत्र दे दिया, जिससे मायावती अचानक देश के राजनीतिक क्षितिज पर आ गईं। मायावती तो उस समय मुख्यमंत्री बन गईं, लेकिन इससे उत्तर प्रदेश में भाजपा के राजनीतिक तम्बू उखड़ गए और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई।
यह था अटल बिहारी वाजपेयी का महिला सशक्तिकरण का विज़न। मायावती को उनके परमश्रद्धेय मान्यवर काशीराम से क्या मिला और क्या नहीं मिला, फिलहाल इसमें तो हम नहीं जाते, मगर अटल बिहारी वाजपेयी ने जो मायावती को दिया, वह सबके सामने है और बहुजन समाज पार्टी एवं मायावती कभी भी अटल बिहारी वाजपेयी का यह कर्ज़ नहीं उतार सकतीं। यह देश देख रहा है कि जिस भारतीय जनता पार्टी ने मायावती को दो बार मुख्यमंत्री बनवाया, वह मायावती भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं को पानी पी पीकर गालियां देती हैं और भाजपा को हराने के लिए अपनी हत्या के साजिशकर्ताओं के साथ खड़ी होती हैं। यह मायावती का चरित्र है और वह अटल बिहारी वाजपेयी का चरित्र था, जिन्होंने मायावती के प्राणों की रक्षा करने में अपना राजनीतिक और सामाजिक धर्म निभाया, जिस कारण आज मायावती इस खूबसूरत संसार में अपनी राजनीतिक इच्छाओं और सफलताओं के साथ मौजूद हैं। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के मायावती को समर्थन पर गतिरोध रहा है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व इतना महान था कि किसी ने भी उनके फैसले का किसी प्रकार से विरोध नहीं किया और उसे सहर्ष स्वीकार किया। यह भाजपा में अनुशासन और नेतृत्व के फैसले के प्रति सम्मान भी एक बानग़ी है।
जी हां ये वो अटल बिहारी वाजपेयी हैं, जिन्होंने भाजपा के सत्ता में आने के सपने का कांग्रेस द्वारा लोकसभा में भद्दा मज़ाक उड़ाने पर कहा था कि वह समय दूर नहीं है, जब आप यानी कांग्रेस इधर बैठेगी और हम उधर बैठे होंगे, जोकि सिद्ध हो चुका है। भाजपा आज अपने बहुमत के साथ देश की सत्ता में है, कांग्रेस का लोकसभा से सफाया होता जा रहा है और देश के इक्कीस राज्यों से भाजपा ने उसे सत्ता से बाहर कर दिया है। ये वो अटल बिहारी वाजपेयी हैं, जिनके सामने देश का सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न भी शरमाता है। उन्होंने देश के लिए क्या नहीं किया, देश में पानी के सदुपयोग के लिए नदियों को आपस में जोड़ने की जल परियोजना की शुरूआत की, इसीलिए मैने शुरूआत में ही कहा है कि अफसोस है कि आज अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे हैं, इसलिए इस देश को उनकी स्मृतियों और उनके पदचिन्हों पर चलकर ही संतोष करना होगा। अटल बिहारी वाजपेयी अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं, यानी भारतीय जनता पार्टी परिवार, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और विविध भाषाओं, धर्म, पंथ, संस्कृति, मान्यताओं और जीवनशैलियों में सबसे अनोखा अलौकिक और सबके साथ मिलजुलकर रहने वाला परिवार है और देश है। एक शासनकर्ता में एक साथ ये सारी समृद्धियां किसी और देश में नहीं मिलती हैं और न ही सभी देशों को अटल बिहारी वाजपेयी मिलते हैं।
भारतीय संस्कृति और विश्वास की हद यह है कि जब भारत और पाकिस्तान कश्मीर समस्या का हल ढूंढने में लगे हुए थे, तब शायद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को अंधेरे में रखकर पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाप्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने कारगिल में अपनी सेना भेज दी थी, हालाकि जनरल परवेज़ मुशर्रफ को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ा और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को उसके अंजाम तक पहुंचाया। अटल बिहारी वाजपेयी ने तबभी दुनिया को दिखाया था कि पाकिस्तान जो भी घात प्रतिघात करता है, भारत अपने शांति के साथ रहने की नीति धर्म और स्वभाव को कभी नहीं छोड़ेगा। अटल बिहारी वाजपेयी की इसी नीति और परंपरा को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आगे बढ़ाया है। नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से भारत की इस नीति को यह कहते हुए दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर के लिए हमारे अग्रज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का ‘इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत’ विज़न ही हमारा विज़न है और हम कश्मीर में गोली या गाली से नहीं, बल्कि गले लगाकर अटलजी के विज़न के साथ चलना चाहते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के सामाजिक नैतिक और राजनीतिक आदर्श हर किसी के लिए प्रासंगिक हैं, यह अलग बात है कि देश के राजनीतिक दल उन्हें राजनीतिक स्वार्थ के चश्मे से देखते हैं।
नरेंद्र भाई मोदी भी अटल बिहारी वाजपेयी की खोज माने जाते हैं और नरेंद्र मोदी ने भी उनको सदैव पिता तुल्य आदर्श राजपुरुष माना है। अटल बिहारी वाजपेयी के उनपर बड़े विश्वास के लिए नरेंद्र मोदी उनके सामने सदैव नतमस्तक रहे हैं। गुजरात में जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भाजपा की छीछालेदर हो रही थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी ने ही पहल की और संघ के निष्ठावान, ईमानदार, चिंतनशील, एकाकी जीवन में भ्रमणशील नरेंद्र मोदी को आवाज़ लगाई और उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर स्थापितकर गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता का मार्ग प्रशस्त किया। एक दुर्भाग्यपूर्ण कालखंड ऐसा आया, जब गुजरात में गोधरा रेल जंक्शन पर तीर्थयात्रियों से भरी रेल की बोगी में तेल छिड़ककर आग लगा दी गई, जिसमें अयोध्या से लौट रहे अनेक तीर्थयात्री निर्मम रूपसे जलाकर मार दिए गए, जिसकी प्रतिक्रिया गुजरात दंगे के रूपमें हुई। नरेंद्र मोदी सरकार को इन दंगा रोकने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी और अनेक झूंठे मुकद्मों की मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। नरेंद्र मोदी इसमें पूरी तरह निर्दोष थे, उनपर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी को इस प्रकार गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए। उन्होंने नरेंद्र मोदी को अपने कर्तव्य पर कायम रहने का राजधर्म याद दिलाया और अंततः नरेंद्र मोदी सारी विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए एक बड़े संकट से बाहर आए।
नरेंद्र मोदी हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के कृतज्ञ हैं और आज वे देश के प्रधानमंत्री हैं। नरेंद्र मोदी विभिन्न अवसरों पर उनकी कुशलक्षेम लेने जाते रहे हैं, मगर अब उनकी स्मृतियां शेष हैं। नरेंद्र मोदी कहा करते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी उनके आदर्श और उनके राजकाज के प्रेरणास्रोत हैं। नरेंद्र मोदी कईबार उन्हें देखने एम्स गए। अटल बिहारी वाजपेयी के परिसहायक शिव कुमार आज बहुत दुखी होंगे। उनका पूरा जीवन अटल बिहारी वाजपेयी के निज और नितांत कार्यों में ही बीता है। जब वे शैय्या पर आ गए तो उनके सभी प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक कार्यों का दायित्व उन्हीं के पास रहा है। लखनऊ का राजनीतिक संदर्भ ग्रहण करें तो अटल बिहारी वाजपेयी यहां से सांसद रहे हैं, इसी प्रकार राज्य के कई बार मंत्री हुए एवं लखनऊ के सांसद रहे लालजी टंडन भी उनके अत्यंत प्रिय राजनेताओं में रहे हैं। राजनाथ सिंह और लखनऊ के और भी कई नाम हैं, जिन्हें उनसे राजनीतिक उत्तरदान मिला। बड़ी लंबी लिस्ट है उनकी, जिन्हें अटल बिहारी वाजपेयी का सानिंध्य और राजनीतिक आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं और अभिव्यक्ति का कोई मुकाबला नहीं है, वे कहीं राष्ट्रवाद के गीत गाते हैं तो कहीं संघर्षशील जीवन की आत्मकथा बयान करते हैं। रार नहीं ठानूंगा, हार नहीं मानूंगा, काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं, नया गीत गाता हूं...यह उनकी लोकप्रिय रचना है, जिसे वे अक्सर सुनाया करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी बेहद सह्रदयी थे और किसी भी प्रकार की आक्रामकता उनको छू भी नहीं सकती थी, लेकिन उनकी सह्रदयता यदि कमजोरी थी तो यह उनकी शक्ति भी थी। राजनीतिक रूपसे उनका लालकृष्ण आडवाणी से ऐसा रिश्ता रहा है, जिसमें अगर कहीं गतिरोध भी आया तो उन्होंने उसे प्रकट नहीं होने दिया। वर्तमान संदर्भ में उन्होंने सबका साथ दिया और सबका साथ लिया। अटल बिहारी वाजपेयी एक पत्रकार, एक संपादक, एक कवि और हिंदी प्रेमी के रूपमें काफी विख्यात रहे। उन्होंने हिंदी के विकास के लिए संयुक्तराष्ट्र में हिंदी बोली और उनके इस प्रयास को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। विदेश नीति पर उनकी ग़ज़ब की पकड़ थी। वे विपक्ष का बड़ा सम्मान करते थे। वे राजनीतिज्ञों के बारे में राजनीतिक विचार प्रकट करते समय बहुत संयमित रहते थे। संसद और जनसभाओं में उनके राजनीतिक व्यंग्य और कटाक्ष भी विलक्षण होते थे। उन्होंने भारत की छवि के सामने कोई समझौता नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व की महानता और देश एवं हिंदुत्व के प्रति उनके योगदान बारे में लिखने को बहुत कुछ है। लखनऊ में एक पत्रकार के रूपमें उनसे एक संक्षिप्त भेंट को याद कर रहा हूं और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं। हे पुण्य आत्मा आप अब जिस रूपमें भी हैं, सदैव आपका आशीर्वाद इस प्यारे देश को मिलता रहे। आपको हमारा प्रणाम।