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Saturday 15 September 2018 04:31:53 PM
लखनऊ। राज्यपाल राम नाईक ने भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के ‘हिंदी सप्ताह’ कार्यक्रम में संस्थान की हिंदी में प्रकाशित पुस्तक ‘विषविज्ञान अनुसंधान के नए आयाम’ और स्मारिका ‘विषविज्ञान संदेश’ एवं ‘खाद्य एवं उपभोक्ता सुरक्षा समाधान’ के साथ पत्रक पीने योग्य शुद्ध पानी ‘ओनीर’ का विमोचन किया एवं वेबसाइट ‘फोकस’ का उद्घाटन किया। राज्यपाल ने इस अवसर पर हिंदी दिवस के इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख किया कि 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को देश की राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था, जिसे हरवर्ष हिंदी दिवस के रूपमें मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी संस्थानों में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग एवं प्रचार-प्रसार करना चाहिए और हिंदी को विज्ञान और विधि की भाषा बनाने के विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है।
राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि देश को स्वतंत्रता दिलाने में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान है, दुनिया की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि करीब 112 करोड़ अंग्रेजी, 110 करोड़ चीनी भाषा एवं 70 करोड़ लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं, अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग करने वालों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो जाएगी। राम नाईक ने कहा कि शुद्ध हिंदी के प्रयोग पर भी विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरल हिंदी के उपयोग से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाई जा सकती है। राम नाईक ने हिंदी की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा कि साहित्यिक भाषा और आम बोलचाल की भाषा में स्वाभाविक अंतर है, क्लिष्ट हिंदी की अपेक्षा आम बोलचाल की भाषा लोगों को सहजता से समझ में आती है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय भी अपने निर्णय हिंदी में देने का प्रयास कर रहे हैं।
राम नाईक ने कहा कि हमें सोचना होगा कि जब रूस, चीन, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदि देश अपनी भाषा का प्रयोगकर समर्थ बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं बन सकते हैं? उन्होंने कहा कि विष विज्ञान संस्थान अपने अनुसंधानों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए अपना प्रकाशन हिंदी में ज्यादा से ज्यादा करे। राज्यपाल ने कहा कि भाषा का लचीलापन उसे लोकप्रियता प्रदान करता है। राज्यपाल ने अपने संसद के अनुभव की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने एकबार लोकसभा अध्यक्ष को ‘अध्यक्ष महाराज’ कहकर सम्बोधित किया तो हिंदीभाषी क्षेत्र के सांसदों ने हंसना शुरू कर दिया, बाद में मुझे पता चला कि ‘महाराज’ का प्रयोग रसोइये के लिए भी किया जाता है, कभी-कभी दूसरी भाषा का प्रयोग करने से यह पता ही नहीं चलता कि यह शब्द किसी अन्य भाषा का है और उसके यथा स्थान कई आशय हैं। उन्होंने कहा कि भाषा को सुधारने से भाषा का विकास होता है। उन्होंने कहा कि हिंदी का सम्मान ही स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की अस्मिता है।
भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन ने कहा कि विष विज्ञान संस्थान अपने अनुसंधान को आमजन तक ले जाने के लिए हिंदी भाषा का अधिकतम प्रयोग कर रहा है, संस्थान की वेबसाइट को भी हिंदी और अंग्रेजी भाषा में तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि स्मारिका ‘विषविज्ञान संदेश’ को तीन साल से हिंदी में प्रकाशन का प्रथम स्थान मिल रहा है। कार्यक्रम में संस्थान की मुख्य वैज्ञानिक डॉ पूनम कक्कड़ ने स्वागत उद्बोधन दिया और डॉ देवप्रतिम कार चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में हिंदी अधिकारी चंद्रमोहन तिवारी, संस्थान के वैज्ञानिक एवं कर्मचारी उपस्थित थे।