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Saturday 15 September 2018 04:41:21 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की ओर से विज्ञान भवन दिल्ली में हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और कार्यालयों के प्रमुखों को राजभाषा कार्यांवयन में उत्कृष्टकार्य हेतु पुरस्कृत भी किया। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने इस अवसर पर कहा कि मातृभाषा आंख होती है, जबकि पराई भाषा चश्मा, यदि आंख ही नहीं होगी तो चश्मे का क्या महत्व रह जाता है। वेंकैया नायडु ने जीवन में पांच चीजों की महत्ता बताते हुए कहा कि हमें मां, जन्मभूमि, मातृभाषा, मातृदेश और गुरू का हमेशा ध्यान रखना चाहिए एवं आवश्यकता पड़ने पर इन पांचों की सेवा के लिए तत्पर होना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि उच्चशिक्षा अपनी भाषा में मिलने में आसानी हो सके। उनका कहना था कि हिंदी के बिना हिंदुस्तान में आगे बढ़ना संभव नहीं है, लेकिन हिंदी ज्ञान परस्पर सहभागिता से संभव किया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने भाषाई सद्भाव की दृष्टि से उत्तर भारत के लोगों को दक्षिण की एक भाषा तथा दक्षिण के लोगों को उत्तर भारत की एक भाषा सीखने का भी सुझाव दिया। वेंकैया नायडु ने कहा कि विदेशों से आने वाले गणमान्य व्यक्ति अपनी ही भाषा में बात करते हैं और गौरव की अनुभूति करते है, हमें इस बात को समझना होगा और अपने जीवन में अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि किसी भी देश का अपनी भाषा में बात करना आवश्यक होता है और भाषा राज-उत्सवों से नहीं, बल्कि जन-सरोकारों से समृद्ध होती है, हिंदी को अन्य भारतीय भाषाओं से समृद्धि मिलती है और उसे कार्यालयों से निकालकर जनभाषा बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदी भाषा के उत्थान के लिए महात्मा गांधी का योगदान अतुलनीय है। वेंकैया नायडु ने कहा कि वह कभी कान्वेंट नहीं गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वरिष्ठ लोग भी कान्वेंट की ओर नहीं गए, परंतु आज वह पूर्णतया सफल हैं, इसलिए कान्वेंट से प्राप्त शिक्षा को सफलता का आधार मानने वालों को अपनी मानसिकता में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
वेंकैया नायडु ने कहा कि भारत की सभी भाषाएं समृद्ध हैं, उनका अपना साहित्य, शब्दावली तथा अभिव्यक्तियां एवं मुहावरे हैं, इन सभी भाषाओं में भारतीयता की एक आतंरिक शक्ति भी है, भले ही हमारी भाषाएं अलग-अलग हों, इन्हें बोलने वाले लोग देश के अलग-अलग भागों में रहते हों, पर ये सभी भाषाएं भावनात्मक रूपसे हमारी साझी धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि इससे हमारी राष्ट्रीय एकता और मजबूत होगी एवं भारत की विविध संस्कृति को बेहतर रूपमें अभिव्यक्त किया जा सकेगा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हिंदी को केवल बोलचाल के स्तरपर ही संपर्क भाषा नहीं बनना है, बल्कि कला और साहित्य के स्तरपर भी यह दायित्व निभाना है। उनका कहना था कि यह आवश्यक है कि शासन का कामकाज आम जनता की भाषा में किया जाए, यदि हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र निरंतर प्रगतिशील रहे और अधिक मजबूत बने तो हमें संघ के कामकाज में हिंदी का तथा राज्यों के कामकाज में उनकी प्रांतीय भाषाओं का ही प्रयोग करना होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी को उसके वर्तमान स्वरूप तक पहुंचाने में देश के सभी प्रदेशों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
प्रादेशिक भाषाएं रानी और हिंदी मध्यमणि-राजनाथ
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हिंदी दिवसर समारोह की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि भाषा अनंतकाल से देशकाल और मानवीय अस्मिता का महत्वपूर्ण अंग रही है, यह अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी है, यह विमर्श करने का अवसर भी प्रदान करती है। हिंदी दिवस की उपयोगिता पर राजनाथ सिंह ने कहा कि यह दिन इस बात का मूल्यांकन करने का है कि देश-विदेश में हिंदी भाषा, साहित्य ने कहां तक मंजिलें तय की हैं। उन्होंने कहा कि रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि भारतीय संस्कृति एक विकसित शतदल कमल की तरह है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी हमारी प्रादेशिक भाषा है, किसी भी एक पंखुड़ी के नष्ट होने से कमल की शोभा नष्ट हो जाती है। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि प्रादेशिक भाषाएं रानी बनकर प्रांतों में विराजमान रहें एवं इनके बीच हिंदी मध्यमणि बनकर विराजती रहे। राजनाथ सिंह ने कहा कि देश के सम्मान में उस समय और अधिक इजाफा हुआ था, जब संयुक्तराष्ट्र संघ ने ट्वीटर पर हिंदी में अपना अकाउंट बनाया और हिंदी भाषा में ही पहला ट्वीट किया, पहले ट्वीट में लिखा संदेश पढ़कर हर भारतीय का, सभी हिंदी प्रेमियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया, इतना ही नहीं संयुक्तराष्ट्र संघ ने फेसबुक पर भी हिंदी पेज बनाया है।
राजभाषा विभाग के तकनीकी प्रयासों की सराहना करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि उपराष्ट्रपति के कर कमलों से ‘लीला हिंदी प्रवाह’ का लोकार्पण किया जाना हर्ष का विषय है। हिंदी की वैश्विक रूपसे मजबूत होती स्थिति पर खुशी दर्शाते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि हिंदी तो आज बाज़ार की आवश्यकता बन चुकी है। गृह राज्यमंत्री गंगाराम अहीर का कहना था कि सरकार और जनता के बीच वही भाषा प्रभावी एवं लोकप्रिय हो सकती है, जो आसानी से सभी को समझ में आ जाए और जिसका प्रयोग देश के सभी वर्गों में बेझिझक और आसानी हो सके। उन्होंने कहा कि हिंदी मातृभाषा ही नहीं, बल्कि संस्कृति की भी प्रतीक है, हमारा लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है, जब हम जन-जन तक उनकी ही भाषा में उनके हित की बात पहुंचाएं, क्योंकि हमारे लोकतंत्र का मूलमंत्र ‘सर्वजन हिताय’ है। उन्होंने कहा कि सशक्त व्यापक राष्ट्रीय आधार प्रदान करने में तथा देश के एक कोने से दूसरे कोने के बीच सांस्कृतिक सेतु बनाने में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का बहुत महत्व है। गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू का कहना था कि हिंदी और उससे संबंधित संसाधनों के विकास, प्रयोग तथा प्रचार-प्रसार की दिशा में विभिन्न स्तरों पर प्रयास निरंतर जारी है, हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विगत कुछ समय से हिंदी के अनेक ई-टूल्स विकसित किए गए हैं, जिनसे कम्प्यूटर और प्रौद्योगिकी में हिंदी का प्रयोग सरल और व्यापक हुआ है, अब हम सभी लोगों का उत्तरदायित्व है कि इन सुविधाओं के प्रति जागरुक बनें और अपने सरकारी और गैरसरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की भी है कि व्यावहारिक और प्रचलित सरल हिंदी का सरकारी कामकाज में ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग किया जाए। इस मौके पर राजभाषा विभाग के सी-डैक के सहयोग से तैयार किए गए ‘लीला-हिंदी प्रवाह’ के एप का लोकार्पण भी किया गया। हिंदी भाषा का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कार्मिकों के साथ-साथ जनसाधारण को भी हिंदी भाषा का उच्चतर ज्ञान कराने हेतु लीला हिंदी प्रवाह तैयार किया गया है। इस ऐप से देशभर में विभिन्न भाषाओं के माध्यम से जन सामान्य को हिंदी सीखने में सुविधा और सरलता होगी तथा हिंदी भाषा को समझना, सीखना तथा कार्य करना संभव हो सकेगा।
सचिव राजभाषा ने कार्यक्रम में आभार व्यक्त किया और पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। कार्यक्रम के दौरान विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरिशस में लोकर्पित हुए स्मृति आधारित टूल ‘कंठस्थ’ की लघु फिल्म के माध्यम से दर्शकों को विस्तृत जानकारी दी गई। गौरतलब है कि हिंदी भाषा के देशव्यापी प्रसार और स्वीकार्यता को देखते हुए 14 सितंबर 1949 को इसे संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिवस की स्मृति में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूपमें मनाया जाता है तथा विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में राजभाषा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए, हिंदी सप्ताह, पखवाड़ा, माह का आयोजन किया जाता है। राजभाषाविभाग गृह मंत्रालय प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस समारोह का आयोजन करता है, जिसमें वर्षभर के दौरान राजभाषा हिंदी में उत्कृष्ट कार्य हेतु राजभाषा गौरव और राजभाषा कीर्ति पुरस्कार के अंतर्गत विभिन्न वर्गों में पुरस्कार दिए जाते हैं।