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जम्‍मू-कश्‍मीर में आ रहा पंचायतों का प्रचंड राज!

देशभर से ज्यादा ताकतवर होंगी जम्मू-कश्मीर की पंचायतें

जम्‍मू-कश्‍मीर में पंचायत चुनावों के लिए हुए कड़े प्रबंध

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 28 September 2018 05:58:35 PM

jammu and kashmir map

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के जम्‍मू-कश्‍मीर दौरे के मौके पर 4-5 जुलाई को हुई समीक्षा बैठक के अनुरूप जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं। इनमें सबसे प्रमुख फैसला स्‍थानीय निकाय चुनाव कराना था, जो अभी चल रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि केंद्र सरकार चुनावों के सुचारू संचालन के लिए पर्याप्‍त संख्‍या में केंद्रीयबलों की तैनाती के साथ राज्‍य सरकार को हर संभव मदद उपलब्‍ध करा रही है। गृह मंत्रालय का कहना है कि कई पहलुओं से इन स्थानीय निकाय चुनावों का ऐतिहासिक महत्व होगा, ये चुनाव जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर उस लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को फिर से स्थापित करेंगे, जिनकी लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। जम्‍मू-कश्‍मीर में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव 2005 के बाद और पंचायत चुनाव 2011 के बाद आयोजित किए जा रहे हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर में पंचायतों के सरपंचों के लिए प्रत्यक्ष चुनावों का प्रावधान जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बहाल कर दिया गया है।
गृह मंत्रालय का कहना है कि इन चुनावों के जरिए विधिवत गठित स्थानीय निकायों के लिए चौदहवें वित्‍त आयोग द्वारा जम्‍मू-कश्‍मीर को लगभग 4,335 करोड़ रूपए का केंद्रीय अनुदान देने का रास्‍ता साफ हो जाएगा, अन्यथा चुनाव नहीं होने से जम्मू-कश्मीर के लोग उनके कल्याण के लिए मिलने वाली इस सहायता से वंचित हो जाते। संविधान के 73वें संशोधन के तहत पंचायतों को स्थानांतरित सभी 29 विषयों से संबधित कार्यों और पदाधिकारियों को भी जम्मू-कश्मीर के पंचायतों में स्थानांतरित किया जाएगा, ऐसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक विद्यालय और आंगनवाड़ी जैसे केंद्रों में भी किया जाएगा। पंचायतों की वित्तीय शक्तियां 10 हजार रुपये से 10 गुना बढ़ाकर 1 लाख रुपये की जा रही हैं। ब्लॉक काउंसिल के लिए 25 हजार रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये किया जा रहा है। पंचायतों को अपने स्‍तरपर धनराशि जुटाने की शक्तियां भी दी जा रही हैं, जिनमें भवन शुल्‍क, मनोरंजन कर, विज्ञापन, होर्डिंग तथा विभिन्‍न प्रकार के व्‍यवसाय और पेशों से वसूल किए जाने वाली आय शामिल होगी।
केंद्र और राज्‍य सरकार की ओर से मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, एकीकृत बाल विकास सेवा और मध्‍यान्‍ह भोजन आदि जैसी योजनाओं के तहत मिलने वाली वित्‍तीय मदद पंचायतों द्वारा अपने स्‍तरपर जुटाई गई राशि की पूरक बनेंगी। विभिन योजनाओं के लिए लाभार्थियों की पहचान के अलावा पंचायतों को राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन, समग्र शिक्षा, बागवानी विकास, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के क्रियांवयन से भी जोड़ा जाएगा। इन योजनाओं को लागू करने के लिए औसतन प्रत्‍येक पंचायत को प्रति वर्ष 50-80 लाख रुपए दिए जाएंगे। पंचायतों को और मजबूत बनाने के लिए एकाउंटेंट, डाटा एंट्री ऑपरेटर और ब्‍लॉक पंचायत इंस्‍पेक्टर आदि के अतिरिक्‍त पदों को मंजूरी दी जा रही है।
लेह और करगिल स्‍वायत्‍त पर्वतीय विकास परिषद
लेह और करगिल स्‍वायत्‍त पर्वतीय विकास परिषदों को और भी ज्‍यादा शक्तियां देकर उन्हें मजबूत बनाया जा रहा है, ताकि वे लद्दाख क्षेत्र के दूरदराज़ के इलाकों में रहने वाले लोगों की विभिन्‍न समस्‍याओं का समाधान कर सकें। परिषद को स्थानीय स्‍तरपर कर लगाने और वसूल करने की अतिरिक्‍त शक्तियां भी दी गई हैं। लेह और करगिल स्‍वायत्‍त पर्वतीय विकास परिषदों के बनाए सार्वजनिक भवन, सड़कें आदि पूरी तरह से अब उसकी संपत्ति होगी। इन परिषदों को राज्‍य के बजट से आवंटित धनराशि को अगले वर्ष भी इस्‍तेमाल किया जा सकेगा। लेह और करगिल की पंचायतों को इन परिषदों के दिशा-निर्देंशों का पालन करना होगा। मुख्‍य कार्यकारी पार्षद सभी पर्यटन विकास प्राधिकरणों के अध्‍यक्ष होंगे। इन परिषदों के बेहतर संचालन के लिए उपाध्‍यक्ष भी होंगे। गृह मंत्रालय ने आतंकवाद रोधी अभियानों में अहम भूमिका निभाने वाले विशेष पुलिस अधिकारियों का पांच वर्ष की सेवा पूरी करने पर मौजूदा मानदेय छह हजार प्रतिमाह से बढ़ाकर 9000 रूपये तथा 15 वर्ष की सेवा पूरी करने पर 12000 रूपये प्रतिमाह कर दिया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया है कि पश्चिमी पाकिस्‍तान से आकर जम्‍मू-कश्‍मीर में बसे 5,764 शरणार्थियों के लिए 5.5 लाख रूपये की वित्‍तीय मदद को मंजूरी दे दी गई है। पात्र लाभार्थियों को यह राशि सीधे उनके बैंक खातों में भेज दी जाएगी। राज्य सरकार ने सभी पात्र लाभार्थियों को राशि के प्रभावी और त्वरित वितरण के लिए नोडल अधिकारी के रूप में जम्‍मू के मंडल आयुक्त को नामित किया है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर की गठबंधन सरकार के विफल होने का यही कारण था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर में भेदभाव की प्रतीक बन गई थीं और उन्होंने स्‍थानीय निकायों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। ऐसा ही जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने किया था, उमर अब्दुल्ला की सरकार में भी लोग पंचायतों के महत्व को भूल गए थे। कहा जाता है कि इन सबने क्षेत्रों के विकास के नाम पर भारत सरकार से भेजे गए धन की लूटमार की। इस समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है और नरेंद्र मोदी सरकार ने वहां की पंचायतों को फिर शक्ति संपन्न बनाया है, जो उन्हें एक तरह सत्ता सौंपने के बराबर है।

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