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Wednesday 3 October 2018 02:48:15 PM
नई दिल्ली। भारत के वरिष्ठतम न्यायाधीश रंजन गोगोई आज भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बन गए। उन्होंने जस्टिस दीपक मिश्रा का स्थान लिया है, जो सेवानिवृत हो गए हैं। जस्टिस रंजन गोगोई को आज राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके पद की शपथ दिलाई। जस्टिस रंजन गोगोई ने देश के मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाल लिया है। जस्टिस रंजन गोगोई पूर्वोत्तर भारत के पहले और देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश हैं। जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर 2019 तक प्रधान न्यायाधीश रहेंगे। वे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, वित्तमंत्री अरुण जेटली, सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत और मंत्रिमंडल के सदस्य, न्यायाधीश एवं विशिष्ट अतिथि मौजूद थे।
दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को प्रधान न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हो गए। उनके उत्तराधिकारी के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई ही हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज के रूपमें उन्होंने कई अहम फैसले दिए हैं, लेकिन वे देश में तब और अधिक चर्चा में आएं, जब उन्होंने चार जजों के साथ मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के प्रशासनिक निर्णयों से असहमति पर प्रेस कॉंफ्रेंस की। इसके चलते वह और तीन अन्य जज कई दिन देश के मीडिया की सुर्खियों में रहे। जस्टिस गोगोई असम राज्य के डिब्रूगढ़ में जन्में हैं। उनकी शुरुआती शिक्षा डॉन वास्को स्कूल में हुई और उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई काटेन कॉलेज गुवाहटी से की। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद डीयू से कानून की डिग्री हासिल की।
गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक वकील से करियर की शुरुआत की और 28 फरवरी 2001 को उन्हें गुवाहटी हाईकोर्ट का जज बनाया गया। जस्टिस रंजन गोगोई का 9 सितंबर 2010 को पंजाब एवं हरियाणा होईकोर्ट में तबादला हो गया। वे 12 फरवरी 2011 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और इस पद पर एक वर्ष तक रहकर 23 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के समक्ष कई बड़ी चुनौतियां होंगी। न्यायिक कामकाज की भारी भरकम सूची उनके सामने है। अदालतों में इस समय में करीब 3.30 करोड़ मामले लंबित पड़े हैं। एक दशक से जजों के पद खाली हैं और जजों की कमी लगातार बढ़ रही है। गौरतलब है कि जस्टिस रंजन गोगोई धन के अपव्यय के बहुत विरुद्ध माने जाते हैं, उनके सामने देश की न्याययिक संस्थाओं में बुनियादी ढांचे के लिए बजट बढ़ाने की चुनौती होगी। पदभार संभालने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ के साथ केसों की सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2015 में कहा था कि सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के प्रधान न्यायाधीश की तस्वीरें ही शामिल हो सकती हैं, जिसका मकसद यह सुनिचित करना था, ताकि राजनेता राजनीतिक फायदे के लिए करदाता के पैसे का बेजा इस्तेमाल नहीं कर सकें। इस फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई थी, जिसमें जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की थी। जस्टिस गोगोई ने ही वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मार्कंडेय काटजू को अवमानना का नोटिस भेजा था। जस्टिस काटजू ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में सोम्या दुष्कर्म और हत्या मामले में शीर्ष अदालत के फैसले की निंदा की थी। यह फैसला भी जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच का था। अवमानना नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट के लिए माफी भी मांगी थी। जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कोलकाता हाईकोर्ट के जज कर्णन को छह महीने की कैद की सजा सुनाई। वे असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर एनआरसी बनाने वाली पीठ में भी रह चुके हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के एक हिस्से के स्वामित्व का निर्णय भी इन्हीं के सामने विचाराधीन है, जिसकी सुनवाई उनतीस अक्टूबर से होगी।