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Thursday 22 November 2018 04:55:46 PM
नई दिल्ली/ श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर विधानसभा आखिर भंग हो ही गई। भाजपा और पीडीपी का गठबंधन खत्म होने से वहां पहले से ही राष्ट्रपति शासन लागू है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य के बड़े ही विकट घटनाक्रम के दौरान विधानसभा भंग करने का फैसला किया और उसपर मचे घमासान पर टिप्पणी करते हुए विधानसभा भंग करने के अपने फैसले को उचित ठहराया है। राज्यपाल का कहना है कि अगर वह विधानसभा भंग नहीं करते तो राज्य में अस्थिरता का माहौल पैदा हो जाता, क्योंकि राज्य के कुछ राजनीतिक दल विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे हुए थे। राज्यपाल ने कहा कि मैं नहीं चाहता था कि किसी को भी यह मौका दूं, सत्ता को हथियाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा था। सत्यपाल मलिक का कहना है कि कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कांफ्रेंस ने जोड़तोड़ की कोशिश की है और यह केवल मौकापरस्त राजनीति है, यदि यह सरकार बनती तो कश्मीर के हालात में जो सुधार हुए हैं, वे फिर से खराब हो सकते थे।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सवाल किया है कि राष्ट्रपति शासन का विरोध करने वाले राजनीतिक दल कुछ सप्ताह पहले स्वयं विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने की वकालत कर रहे थे, इसलिए उन्होंने जो भी फैसला लिया है वह सही है, यह जम्मू-कश्मीर की संविधान व्यवस्था के अनुसार हुआ है और अगर कोई इसको अदालत में चुनौती देना चाहता है तो उसके लिए दरवाजे खुले हैं। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में कल दिन में अचानक पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करने की कोशिश सामने आई, जिसमें सरकार बनाने के लिए उनका बहुमत से भी दुगने विधायकों के समर्थन का दावा किया गया। महबूबा मुफ्ती की जब राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात विफल हो गई तो उन्होंने अपना दावा ट्वीट कर दिया, जिस दौरान यह भी पता चला कि राज्यपाल ने जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी है, उसके बाद विधानसभा भंग कर दिए जाने की सूचना आ गई, जिससे जम्मू-कश्मीर में जोड़तोड़ से सरकार बनाने के सारे प्रयास विफल हो गए।
जम्मू-कश्मीर में इस समय बड़ा राजनीतिक घमासान है और इसकी गूंज पाकिस्तान में भी हो रही है। इस नए घटनाक्रम में पाकिस्तान की दिलचस्पी सामने आने के बाद खुलासा हुआ कि जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए महबूबा मुफ्ती क्यों सक्रिय हुईं और जब उनके पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं था तो उन्हें उन राजनीतिक दलों ने अचानक क्यों समर्थन दिया, जो कलतक जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग करने की मांग कर रहे थे। ध्यान रहे कि देश के पांच राज्यों में इस समय विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और इन चुनावों में विपक्ष यह प्रचार कर रहा है कि भाजपा सत्ता से बाहर जा रही है, दूसरी ओर कश्मीर में पंचायत चुनावों की सफलता से घाटी के राजनीतिक दल बौखलाए हैं, कदाचित इस दबाव की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में महबूबा मुफ्ती ने अपनी सारी नैतिकता दांव पर रखकर सरकार बनाने का खेल खेला, जो विफल हुआ और इसका ठींकरा देश के बाकी विपक्ष पर भी फूटा है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कोई कोर्ट जाता है कि नहीं और जाता भी तो कोर्ट में क्या होता है, यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसका शायद ही चुनाव में खड़े राजनीतिक दलों को कोई लाभ हो या जम्मू-कश्मीर में भाजपा विरोधियों का लाभ हो।
कश्मीर घाटी में इस समय इस्लामिक पाकिस्तानी आक्रांताओं के खिलाफ सुरक्षाबलों की आक्रामक कार्रवाई जारी है, जिससे कश्मीर के आतंकवादी गुटों और वहां की राजनीतिक पार्टियों में बौखलाहट है, उनके कोई भी इरादे सफल नहीं हो रहे हैं और हताश होकर उन सबका कश्मीर में मिलकर सरकार बनाने का एक असफल प्रयास सामने आया। यह सब जानते हैं कि भारत में पाकिस्तान और इस्लामिक आतंकवाद को शरण मिल रही है, जिसका जम्मू-कश्मीर केंद्र है। कश्मीर के मुठ्ठीभर नेता धर्मनिर्पेक्षता का ढोंग करते हैं और वे इसमें देश के भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों को भी जोड़ते हैं। केंद्र में भाजपा गठबंधन सरकार ने कम से कम इस विपक्ष की कमर तोड़ने का काम किया है। यह समझा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर का यह नया राजनीतिक घटनाक्रम विपक्ष की लगाई आग है, जिसपर केंद्र सरकार ने काबू पा लिया है। जम्मू-कश्मीर में अब लोकसभा चुनाव के साथ ही चुनाव होने की संभावना है। दूसरी तरफ घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ जोरों का सफाया अभियान जारी है और भारतीय सुरक्षाबल उनपर सिंहों की तरह काल बनकर टूट पड़े हुए हैं। राज्यपाल की कार्रवाई के बाद गैरभाजपा राजनीतिक दलों को तगड़ा झटका लगा है और देखना है कि इसके क्या राजनीतिक परिणाम सामने आते हैं।