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Saturday 29 December 2018 02:02:29 PM
लखनऊ। राज्यपाल राम नाईक ने उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहादुरशाह जफर के जीवन पर आधारित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूपमें भाग लिया। उन्होंने सबसे पहले बहादुरशाह जफर के परपोते प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुरशाह जफर तृतीय का स्वागत किया तथा बहादुरशाह जफर को श्रद्धांजलि अर्पित की। राज्यपाल ने कहा कि 1857 की पहली जंग को अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफ बग़ावत का नाम दिया था पर वीर सावरकर ने इसे पहला स्वतंत्रता समर कहकर देश को सही बात बताई। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने बहादुरशाह जफर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैनिकों का नेतृत्व करने पर देश बदर कर रंगून की जेल में कैद कर दिया था। रंगून जेल में ही 7 नवम्बर 1862 को बहादुरशाह जफर की मृत्यु हो गई।
राज्यपाल राम नाईक 6 अगस्त 2017 को अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान बहादुरशाह जफर की दरगाह पर श्रद्धांजलि अर्पित कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को भी रंगून की मांडाला जेल में रखा गया था, जहां उन्होंने गीता रहस्य जैसा ग्रंथ लिखकर लोगों को जागरूक करने का काम किया। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी बादशाह बहादुरशाह जफर की विशिष्ट भूमिका को देश कभी भुला नहीं सकता है, वे बहुत अच्छे इंसान के साथ ही एक अच्छे शायर भी थे। राज्यपाल ने कहा कि उनकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में थी, रंगून जेल में रहते हुए उन्हें हर वक्त हिन्दुस्तान की चिंता रहती थी, उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की अंतिम सांस भारत में ही लें, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। राज्यपाल ने कहा कि इतिहास की यह सबसे क्रूरतम सजा थी, जिसमें उनकी इच्छा को पूरा नहीं किया गया, जबकि सजा पाने वाले व्यक्ति की अंतिम इच्छा को न्यायिक प्रक्रिया से पूरा किया जाता है।
राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि अंग्रेजों के विरुद्ध शुरू हुए स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम प्रयास का नेतृत्व बहादुरशाह जफर ने किया था, उस समय हिंदुस्तानी सेना असंगठित थी तथा नेतृत्व करने वाले में अनुभव की कमी थी, इस कारण काफी कुर्बानियां देने के बाद भी पराजय का सामना करना पड़ा। राज्यपाल ने कहा कि बड़ी संख्या में युवकों को फांसी दी गई तथा बहादुरशाह जफर के परिवार के सदस्यों को क़ैद कर लिया गया, अधिकांश लोगों का कत्ल कर दिया गया। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेज शासकों ने भारतीय सेनानियों के प्रति बर्बरता की सारी हदें उस समय पार कर दीं, जब लाल किला दिल्ली में सुबह नाश्ते के वक्त बहादुरशाह जफर को उनके बेटों का कटा हुए सिर पेश किया। उन्होंने कहा कि अब आप लोग सोचिए कि हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने किन-किन विकट परिस्थितियों और यातनाओं को झेला है, उनके बलिदानों के कारण ही आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं।
राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि युवाओं को देश के नवनिर्माण के लिए आगे आना चाहिए, हमें देश के लिए संस्कारवान युवकों का निर्माण करना है। राज्यपाल ने कहा कि सन् 1857 के अमर शहीदों के शौर्य और बलिदान गाथा इतिहास के पृष्ठों पर सदैव अंकित रहेगी। राज्यपाल ने कहा कि कुम्भ में प्रयागराज संग्रहालय में 1857 से लेकर 1947 तक के शहीदों की गैलरी लगाई जा रही है, जिसमें उनसे सम्बंधित जानकारियां भी दी जाएंगी। राज्यपाल ने आयोजकों से कहा कि वे बहादुरशाह जफर से सम्बंधित एक मांग पत्र दें, जिसे वे स्वयं राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को देंगे। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री डॉ अम्मार रिज़वी, उर्दू अकादमी की अध्यक्ष प्रोफेसर आसिफा जमानी, प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुरशाह जफर तृतीय, आसिफ ज़मा रिजवी तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।