Thursday 3 January 2019 06:03:48 PM
अरुण जेटली
कांग्रेस अपने पीछे वाणिज्यिक दीवाला मामलों को सुलझाने की ऐतिहासिक गलती वाली प्रणाली की विरासत छोड़ गई है। कंपनी कानून में ऋण चुकता करने में अक्षम कंपनी को बंद करने का प्रावधान है। इसके अलावा कांग्रेस सरकार ने बीमार कंपनियों के उद्धार के लिए 1980 के दशक में इस एसआईआईसीए कानून पारित किया। यह कानून उन कंपनियों पर लागू हुआ, जिनकी शुद्ध परिसंपत्ति नकारात्मक हो गई है। यह कानून पूरी तरह असफल साबित हुआ। कानूनी पुर्नोद्धार कार्य से अनेक बीमार कंपनियों को ऋणदाता के खिलाफ एक सुरक्षा कवच मिल गया। ऋण वसूली ट्रिब्यूनल बनाया गया, ताकि बैंक बकाया राशि की वसूली कर सकें, लेकिन ये कानून ऋण वसूली के लिए कारगर साबित नहीं हुए हैं। गैर कॉर्पोरेट दीवाला मामलों के लिए प्रांतीय दीवाला कानून लागू था। यह जंग लगा हुआ कानून और अक्षम कानून था और अनुपयोग के कारण यह कानून कमजोर पड़ गया।
अटल बिजारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने एसएआरएफएईएसआई कानून बनाया जो पहले की व्यवस्था से काफी बेहतर साबित हुआ। वर्ष 2000 में एनपीए बढ़कर दो अंकीय हो गया था। एसएआरएफएईएसआई कानून तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के उचित ब्याज दर प्रबंधन से अनुत्पादक परिसंपत्तियों को कम करने में मदद मिली, बाद में 2008 से 2014 के बीच बैंकों द्वारा अंधाधुंध रूपसे ऋण दिए गए। इससे एनपीए का प्रतिशत काफी ऊंचा हो गया। इसे भारतीय रिज़र्व बैंक के परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा में दिखाया गया, इसके परिणामरूवरूप सरकार की ओर से त्वरित कार्रवाई की गई। एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गई, जिसने 2015 में अपनी रिपोर्ट में आईबीसी की सिफारिश की। इसके तुरंत बाद लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया और इसे संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया। संसदीय समिति ने अपनी चतुराई दिखाई और अपनी रिपोर्ट में विधेयक में कुछ परिवर्तन करने की सिफारिश की। मई 2016 में संसद के दोनों सदनों से आईबीसी को स्वीकृति मिली। इसके फौरन बाद इनसीएलटी का गठन किया गया।
भारत का दीवाला-दीवालियापन बोर्ड स्थापित किया गया और नियम बनाए गए। वर्ष 2016 के अंत तक कॉर्पोरेट दीवाला के मामले एनसीएलटी द्वारा प्राप्त किए जाते थे। आईबीसी प्रक्रिया के प्रारंभिक परिणाम काफी संतोषजनक रहे हैं। इस प्रक्रिया ने उधार लेने वाले और उधार देने वाले के संबंधों को बदल दिया है। अब उधार देने वाला कर्जदार का पीछा नहीं करता। वास्तव में स्थिति उलट है, एनसीएलटी के गठन और आईबीसी के क्रियांवयन से कानून में सुधार की आवश्यकता उजागर हुई, तबसे विधायी रूपसे दो कदम उठाए गए हैं। एनसीएलटी अब ऊंची साख वाला विश्वसनीय फोरम हो गया है। कंपनियों को दीवाला बनाने वाले लोग प्रबंधन से बाहर हो जाते हैं। नए प्रबंधन के चयन की प्रक्रिया ईमानदार और पारदर्शी हो गई है। मामलों में किसी तरह का राजनीतिक या सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। तीन तरीकों से दीवाला कंपनियों के पास पड़े धन की वसूली की जाती है, पहला तरीका यह है कि अनुच्छेद 29 (ए) लागू करने से ऐसी कंपनियां खतरे की आशंका के कारण उधार चुकाने लगी हैं और ऐसी कंपनियां एनसीएलटी के पास भेजी जा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप बैंक ऋण चुकाने में चूक की आशंका से घिरी उधार लेने वाली कंपनियों से धन प्राप्त कर रहे हैं।
चूक करने वाली कंपनियां अच्छी तरह जानती हैं कि एक बार आईबीसी के दायरे में आ जाने से निश्चित रूपसे उन्हें अनुच्छेद 29 (ए) के कारण प्रबंधन से बाहर होना पड़ेगा। दूसरा एनसीएलटी के समक्ष एकबार उधार देने वाले की ओर से याचिका दाखिल किए जाने पर अनेक कर्ज़दार मामले की मंजूरी के पहले ही ऋण चुका रहे हैं, ताकि दीवाला घोषित न किया जा सके। तीसरा दीवाला के बड़े मामले सुलझा लिए गए हैं और अनेक मामले सुलझाए जाने की प्रक्रिया में हैं, जिन मामलों का समाधान नहीं होता वो ऋण शोधन की ओर जाते हैं और बैंक शोधन मूल्य प्राप्त कर रहे हैं। एनसीएलटी तथा ट्रिब्यूनल के कामकाज से बड़ी संख्या में मामले दाखिल किए जा रहे हैं। एनसीएलटी के पास मामलों की अधिकता है, इसकी क्षमता को बढ़ाया जा रहा है। आवश्यकता को महसूस करते हुए उच्चतम न्यायालय ने तेजी से अनेक निर्णयों की घोषणा की है और नए विधायी प्रावधानों पर कानून तय किए हैं। उच्चतम न्यायालय के घोषित कानून व्याख्या के लिए हैं और पेंच की स्थिति में स्पष्टता प्रदान देंगे। इससे आने वाले दिनों में प्रक्रिया में तेजी आएगी।
एनसीएलटी ने अबतक 1322 मामले मंजूर किए हैं। मंजूरी पूर्व चरण में 4452 मामले निपटाए गए हैं और सुनवाई के बाद 66 मामलों का निष्पादन किया गया है। करीब 260 मामलों में ऋण शोधन का आदेश दिया गया है। समाधान किए गए 66 मामलों में उधार दाताओं को 80,000 करोड़ रुपये मिले हैं। एनसीएलटी डाटाबेस के अनुसार मंजूरी पूर्व चरण में 4452 मामले निपटाए गए और 2.02 लाख करोड़ रुपये की राशि का निपटान हुआ। बारह बड़े मामलों में भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड तथा एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड समाधान के अग्रिम चरण में हैं और इस वित्तवर्ष में उनके मामलों के समाधान की आशा है। इससे 70 हजार करोड़ रूपये की प्राप्ति होगी। अनुत्पादक परिसंपत्तियों का स्टेंडर्ड खातों में परिवर्तन तथा एनपीए श्रेणी में आने वाले नए खातों में कमी से उधार लेने और उधार देने के व्यवहार में निश्चित सुधार दिख रहा है।