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Friday 4 January 2019 02:00:37 PM
अयोध्या। विश्व हिंदू परिषद के प्रांत संगठन मंत्री भोलेंद्र ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाए जाने की मांग दोहराते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर हिंदू अदालत के फैसले के लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सभी पहलुओं पर समग्र चिंतन के बाद विश्व हिंदू परिषद का स्पष्ट मत है कि इसका एकमात्र उचित समाधान यही है कि संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का मार्ग जल्द ही प्रशस्त किया जाए। विहिप नेता ने कहा कि वर्षों से इसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, जबकि वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह सिद्ध कर दिया था कि जहां श्रीरामलला विराजते हैं, वही रामजन्म भूमि है।
विहिप के प्रांत संगठन मंत्री भोलेंद्र ने कहा कि न्यायालय में 2011 से ही यह मामला विचाराधीन है, हमें न्याय मिलना चाहिए था, लेकिन कुछ राजनीतिक दल भी कोर्ट के निर्णय को टालने का प्रयास करते रहे हैं, जुलाई 2017 में कांग्रेस के नेता और वकील कपिल सिब्बल ने बाधा पहुंचाई और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र 2 अक्टूबर 2018 को यह कहते हुए सेवानिवृत्त हुए कि इस मामले में 29 अक्टूबर से नियमित सुनवाई हो, मगर सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर को यह कहकर मामला आगे बढ़ा दिया कि यह हमारी प्राथमिकता में नहीं है। विहिप नेता का कहना है कि इससे हिंदू समाज बहुत आहत है। विहिप के इस बयान का भाव बिल्कुल स्पष्ट है, जिसे जनसामान्य भी समझने लगा है। भारत सरकार इस मुद्दे का समाधान चाहती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसे बहुत हल्के में ले रहा है, अब जनता भी यही समझ रही है। जानकार भी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में इस संवेदनशील मुद्दे के लटकने से जनसामान्य में निराशाजनक धारणा स्थापित हो सकती है, जोकि ठीक नहीं है।
उल्लेखनीय है कि आज जब अदालत में यह मामला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए दस जनवरी को एक बेंच का गठन किया जाएगा, यानी आज भी मामला छह दिन के लिए लटक गया, जिसमें यह कोई संकेत नहीं हैं कि दस तारीख से सुनवाई होगी या नहीं या केवल दस जनवरी को बेंच का ही गठन होगा। कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि आगे क्या होना है। उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि उनकी सरकार कोर्ट के फैसले तक श्रीराम मंदिर पर कोई अध्यादेश नहीं लाएगी। यह मामला आगे भी खिंच सकता है, जिसमें यह संभावना लग रही है कि कदाचित केंद्र सरकार रणनीतिक तौरपर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की धारणा को परख रही है, ताकि देश की जनता पूरी तरह समझ सके कि असली बाधा क्या है।