Friday 19 April 2019 04:20:54 PM
दिनेश शर्मा
मैनपुरी। राजनीति में न दोस्ती स्थाई है और न ही दुश्मनी। यह सच्चाई मैनपुरी में फिर देखने को मिली, जब एक-दूसरे के जानलेवा दुश्मन मायावती और मुलायम सिंह यादव आज 24 साल बाद सपा बसपा और रालोद गठबंधन की संयुक्त चुनाव रैली में एक मंच पर आए और यही नहीं, मायावती ने उन्हें देश के पिछड़े वर्ग का असली नेता बताते हुए रेकॉर्ड वोटों से जिताने की भी अपील की। गौरतलब है कि कभी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से लोकसभा चुनाव में सपा बसपा और रालोद गठबंधन के प्रत्याशी हैं। मुलायम सिंह यादव सरकार में लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती को मरवाने की साजिश रचने के आरोप के कारण सपा-बसपा की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई थी। उस दिन की शाम को भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने वाली मायावती ने कसम खाई थी कि वह मुलायम सिंह यादव को बर्बाद कर देगी, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहीं और एक समय फिर लौटा, जब मायावती ने भाजपा के खिलाफ सपा से गठबंधन किया और आज उन्होंने उन्हीं मुलायम सिंह यादव को मैनपुरी लोकसभा सीट से भारी मतों से जिताने की अपील की।
मुलायम सिंह यादव इसके बावजूद मैनपुरी में संयुक्त मंच पर मायावती से असहज दिखे, लेकिन उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन में मायावती का धन्यवाद दिया, सम्मान किया और एहसान माना। मंच पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मौजूद थे, मगर रालोद अध्यक्ष अजित सिंह नहीं आए, कारण जो भी हों। मुलायम सिंह यादव अभी भी मायावती को बर्दाश्त करते दिखाई नहीं दिए हैं, मंच पर उनके चेहरे पर गठबंधन की प्रसन्नता के कोई भाव नज़र नहीं आए, क्योंकि उत्तर प्रदेश में आधे से ज्यादा लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव मैदान में नहीं है, भलेही उन्होंने अपने भाषण में मायावती के लिए एहसानमंद शब्द बोले हों। इस समय पुत्र और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की रही-सही प्रतिष्ठा दांव पर है, चुनाव जीतने से मतलब है, आपत्तिकाले मर्यादा नाअस्ति, लिहाजा मुलायम सिंह यादव खून के घूंट भी अमृत के समान पी रहे हैं। अखिलेश यादव ने अपने राजनीतिक भविष्य को विफल देखकर ही मायावती के सामने घुटने टेके हैं और कुछ ऐसा ही मायावती ने भी किया है, जब उन्होंने जान लिया कि पिछले लोकसभा चुनाव और इस विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से बसपा का सफाया होने के बाद इस लोकसभा चुनाव में भी बसपा की वापसी की कोई संभावना नज़र नहीं आती है, लिहाजा मुलायम सिंह यादव से दुश्मनी को भूलकर उनके पुत्र से मिलकर चलने में ही भलाई है।
अखिलेश यादव तो मायावती के सामने इस कदर बिछ गए हैं कि उन्होंने मायावती की हर शर्त को मंजूर किया है और यहां तककि वे उस कांग्रेस पर भी अनवरत हमले करने से नहीं चूक रहे हैं, जिसके तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से उन्होंने विधानसभा चुनाव में यह कहकर समझौता किया था कि यूपी की जनता को यह साथ बहुत पसंद है। विधानसभा चुनाव में भी पराजय के बाद अखिलेश यादव पूरी तरह से बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं। उनकी ज़ुबान और बॉडी पर जो भी उत्साह दिख रहा है और मायावती के साथ गठबंधन में जो संतोष नज़र आ रहा है या वे नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के खिलाफ बोलकर जिस प्रकार खुश हो रहे हैं, उसका असली परिणाम तेईस मई को उनके सामने होगा। वह एक ऐसे उत्साह से लबरेज हैं, जिसकी सच्चाई एक बियावान जंगल में दावानल की मानिंद है, मैनपुरी में पिताश्री के सामने दिया गया उनका भाषण काफी कुछ सिद्ध करता है। विडंबना देखिए कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और उनके असहनीय राजनीतिक संघर्ष के सारथी शिवपाल सिंह यादव ने अपनी अलग पार्टी 'प्रसपा' बना ली है और वे फिरोजाबाद में अपने ही सगे चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के खिलाफ ताल ठोककर चुनाव मैदान में है। इस कारण यह पूरा राजपरिवार राजनीतिक रूपसे बिखराव के कगार पर पहुंच गया है। समाजवादी पार्टी का जहां तक प्रश्न है तो पिछले चुनावों में उसका हस्र पूरे देश को पता है एवं इस लोकसभा चुनाव में तो यह तय होना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा रहेगी या बसपा?
मुलायम सिंह यादव के लिए मैनपुरी लोकसभा चुनाव उनके घर का चुनाव माना जाता है। यहां यह सच्चाई भी ध्यान रहे कि जाने-माने कांग्रेस नेता और उत्तर प्रदेश के कई बार मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में उन्हें प्रचंड हैसियत का बनाया है। इस क्षेत्र के राजनीतिक अतीत की तरफ जाएं तो पाएंगे कि यहां कभी कांग्रेस के नेता बलराम सिंह यादव हुआ करते थे, जिनसे मुलायम सिंह यादव का हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा और नारायण दत्त तिवारी ने बलराम सिंह यादव के सामने मुलायम सिंह यादव को नेता बनाया उन्हें आगे बढ़ाया। यह भी एक असहनीय सच्चाई है कि मुलायम सिंह यादव और बलराम सिंह यादव की राजनीतिक दुश्मनी में एटा इटावा और मैनपुरी में न जाने कितने निर्दोष लोगों की जानें गईं हैं। बहुत बाद जाकर एक समय ऐसा भी आया कि जब बलराम सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव में दोस्ती भी हो गई, लेकिन तब तक बलराम सिंह यादव का राजनीतिक कैरियर खत्म हो चुका था। उन्होंने शक्तिशाली मुलायम सिंह यादव की दासता स्वीकार की, लेकिन नियति का खेल देखिए कि मुलायम सिंह यादव भी जीवन के अंतिम दौर में अपने ही पुत्र अखिलेश यादव के द्वारा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से अपदस्थ कर दिए गए और बेटा समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन बैठा। एक पिता के जीवन में पुत्र का यह कारनामा और अपमान कोई मामूली घटना नहीं कही जा सकती।
मुलायम सिंह यादव एक भयानक टीस के साथ इस अपमान को आज भी झेल रहे हैं, संघर्ष का साथी भाई शिवपाल सिंह यादव भी उनके पुत्र के कारण अंदरखाने साथ नहीं है, यहां तक कि आज समाजवादी पार्टी टुकड़े-टुकड़े हो गई है। बेटा कहीं और है भाई कहीं और है और जो राज्य में राजनीतिक प्रभुत्व था, वह भी धराशाई हो चुका है। अखिलेश यादव ने तो एक प्रकार से मायावती का राजनीतिक इकबाल ही स्वीकार कर लिया है, जिससे मुलायम सिंह यादव काफी व्यथित हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी आज भले ही एक मंच पर हों और उनके गठबंधन में रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह भी शामिल हों, लेकिन मायावती का इनमें किसी को भी भरोसा नहीं है। सब जानते हैं कि मायावती अपने स्वार्थ में समाजवादी पार्टी के साथ आई हैं और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने स्वार्थ में मायावती के साथ खड़े हुए हैं। राजनीतिक अवसरवादी के नाम से विख्यात चौधरी अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी का भाजपा की ताकत के सामने जब किसी भी लोकसभा क्षेत्र से चुना जाना मुश्किल हो गया तो उन्होंने केवल लोकसभा में जाने के लिए सपा-बसपा गठबंधन का दामन थामा लिया। चौधरी अजीत सिंह मुजफ्फरनगर से, जबकि उनके पुत्र जयंत चौधरी बागपत से मैदान में हैं, उनका फैसला मत पेटी में बंद हो चुका है।
माना जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव फिरोजाबाद में बड़े राजनीतिक संकट में हैं और यह तो सबको मालूम ही है कि फिलहाल शिवपाल सिंह यादव और प्रोफेसर रामगोपाल यादव में राजनीति तो छोड़िए पारिवारिक संबंध भी खत्म हो चुके हैं। शिवपाल सिंह यादव ने फिरोजाबाद में जिस प्रकार ताल ठोक रखी है, उसे देखकर लगता है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव को इस बार भारी राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ सकता है। प्रोफेसर रामगोपाल यादव हमेशा से मुलायम सिंह यादव के सलाहकार के रूपमें साथ रहे हैं और अपने ही स्वार्थ में राजनीतिक एवं रणनीतिक रूपसे मुलायम सिंह यादव को सलाह देते आए हैं, लेकिन अखिलेश यादव के राजनीति में आने के बाद और उनसे शिवपाल सिंह यादव के अलग होने के बाद इस परिवार की राजनीतिक स्थिति बड़े उतार-चढ़ाव पर है। शिवपाल सिंह यादव की भाजपा से नज़दीकियां संकेत दे रही हैं कि सपा-बसपा गठबंधन के सामने एक-दूसरे का वोट ट्रांस्फर कराने का संकट खड़ा है। बहरहाल अखिलेश यादव, मायावती और मुलायम सिंह यादव मैनपुरी में आज जब एक ही मंच पर पहुंचे तो उस वक्त का राजनीतिक नज़ारा देखने काबिल था। मुलायम सिंह यादव मंच पर पहुंचे तो मायावती ने उनके बाजू पर हाथ रखकर और हाथ हिलाकर उनका समर्थन किया। चौबीस साल बाद मायावती और मुलायम सिंह यादव एक मंच पर दिखे हैं। मुलायम सिंह यादव को सहारा देकर मंच पर लाया गया, वे शारीरिक रूपसे अशक्त तो हो ही रहे हैं, कदाचित इसीलिए उन्होंने कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव है, इसलिए वे ज्यादा भाषण नहीं देंगे, मैनपुरी की जनता बस उन्हें भारी वोटों से जिताए।
मुलायम सिंह यादव ने कोई लंबा भाषण नहीं दिया। मुलायम सिंह यादव ठीक से बोल भी नहीं पा रहे थे। लाल टोपी लगाए मुलायम सिंह यादव ने लोगों से कहा कि मैनपुरी हमारा घर है, हमारा जिला है, हमें भारी बहुमत से जिता देना। मुलायम सिंह यादव ने यह भी कहा कि मायावती आई हैं, उनका स्वागत है, हम उनका आदर करते हैं और हमें खुशी है कि हमारे समर्थन के लिए वे आई हैं। उन्होंने मायावती से कहा कि मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा। इसपर मायावती मुस्कुराती दिखाई दीं। उन्होंने कहा कि मैं मायावतीजी का अभिनंदन करता हूं, हमें और हमारे बाकी साथियों को भी चुनाव जिता देना। बसपा अध्यक्ष मायावती का संबोधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस पर हमले से शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव देश के पिछड़े वर्ग के असली नेता हैं, जबकि नरेंद्र मोदी नकली नेता हैं। उन्होंने कहा कि मैनपुरी में भारी भीड़ देखकर ऐसा लग रहा है कि जनता मुलायम सिंह यादव को रिकॉर्ड तोड़ जीत दिलाएगी। उन्होंने कहा कि दो जून की घटना के बावजूद भी सपा-बसपा गठबंधन किया गया है, यह मैं मीडिया को पहले ही बता चुकी हूं, लेकिन फिर बता रही हूं कि कभी-कभी कठिन फैसले लेने पड़ते हैं, यह फैसला भी ऐसा ही था। मायावती ने पहले से लिखा हुआ भाषण पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि बैकवर्ड क्लास मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मानता है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह नकली नहीं हैं, उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग करके अपनी जाति को पिछड़ा वर्ग घोषित कर लिया है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने अपने आपको पिछड़ा और जनजाति का बताकर पिछले लोकसभा चुनाव में चुनावी लाभ उठाया है, जिससे वह प्रधानमंत्री बन गए, नरेंद्र मोदी किसी का भला नहीं कर सकते हैं।
मायावती ने कहा कि असली नकली नेता की पहचान करना बहुत जरूरी है, नरेंद्र मोदी जैसे नकली लोगों से और ज्यादा धोखा खाने की जरूरत नहीं है, सपा-बसपा गठबंधन को ही कामयाब बनाना है। उन्होंने नाम लिए बगैर शिवपाल सिंह यादव के जले पर नमक छिड़कते हुए कहा कि अखिलेश यादव ही मुलायम सिंह यादव के असली उत्तराधिकारी हैं और पूरी ईमानदारी से उनकी राजनीतिक विरासत संभाले हुए हैं। मायावती ने कांग्रेस पर भी तगड़ा हमला किया और कहा कि उसके लंबे शासनकाल में गलत नीतियां रही हैं, जिस कारण उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा है। मायावती ने कहा कि जनता कांग्रेस के झांसे में नहीं आए, क्योंकि वह गरीब बेरोज़गार की कोई मदद नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार इस बार भाजपा भी जरूर सत्ता से बाहर चली जाएगी, चौकीदार की नाटकबाजी नहीं चल पाएगी। मायावती ने कहा कि मैंने देश के हालात देखकर ही सपा से गठबंधन किया है। उन्होंने कहा कि दो चरण के चुनाव में भाजपा की हवा खराब हो गई है, आगे के चरणों में और ज्यादा हालत खराब हो जाएगी। उन्होंने कहा कि साइकिल चुनाव चिन्ह पर बटन दबाकर मुलायम सिंह यादव को कामयाब बनाएं। इसके बाद अखिलेश यादव आए और उन्होंने मायावती को मैनपुरी की मुख्य अतिथि बताया। उन्होंने मायावती के भतीजे आकाश आनंद का भी नाम लेकर उसका महत्व बढ़ाया। अखिलेश यादव ने कहा कि मायावतीजी की अपील पर मैनपुरी की जनता मुलायम सिंह यादव को ऐतिहासिक जीत दिलाने जा रही है। उन्होंने कहा कि नेताजी कह रहे थे कि हम मायावतीजी का यह एहसान कभी नहीं भूलेंगे, इसलिए मैनपुरी की जनता की जिम्मेदारी है कि सब मिलकर बहुजन समाज पार्टी और नेताजी मुलायम सिंह यादव का सम्मान करेंगे।
अखिलेश यादव ने कहा कि देश बहुत नाजुक समय से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि इस देश का किसान परेशान है, गांव में लोगों के साथ धोखा हुआ है, फसल की पैदावार की चोरी हो गई है, खाद और कृषि उत्पाद मूल्य में भी भाजपा के लोगों ने चोरी कर ली है। उन्होंने कहा कि रोज़गार खत्म हो गए हैं, नौजवानों का भविष्य अंधकार में है, दलित पिछड़ा अल्पसंख्यकों के भाग्य से भी यह चुनाव जुड़ा हुआ है, उसका फैसला होने जा रहा है। अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा के लोग कहते हैं कि हमें नया भारत बनाना है, मै कहता हूं कि जब नया प्रधानमंत्री बनेगा तभी नया भारत बनेगा। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि भाजपा के लोगों ने व्यापार खत्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि सपा बसपा ने इस देश की जनता को खुशहाली पर ले जाने का काम किया है और अब बसपा और समाजवादी पार्टी ने दिल्ली का रास्ता आसान बना दिया है। सपा बसपा रालोद गठबंधन की मैनपुरी की चुनाव रैली में चौधरी अजीत सिंह क्यों नहीं आए, इस पर अभी से भिन्न-भिन्न कयास लगाए जाते रहे। कइयों का कहना था कि उनका उद्देश्य पूरा हो गया है, लिहाजा वे अभी से आगे का जुगाड़ लगाने में जुट गए हैं वगैरह-वगैरह। यह भी चर्चा रही कि इस गठबंधन का भविष्य क्या है?