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कुडनकुलम परमाणु संयंत्रों का विरोध क्यों?

विशेषज्ञों का दावा कि कोई ख़तरा नहीं

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नई दिल्ली। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना को क्षति गंभीर चिंता का मामला है। हाल ही में कुछ स्‍थानीय लोगों ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना को शुरू करने का विरोध किया, जिससे निर्माण स्‍थल पर सामान्‍य काम-काज में बाधा पड़ी है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍य मंत्री वी नारायणसामी ने लोकसभा में बताया है कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र की इकाई एक और दो जल्‍दी शुरू किये जाने वाली हैं। कर्इ रिएक्‍टर और सहायक प्रणालियां चालू कर दी गई हैं। इन प्रणालियों को स्‍वस्‍थ स्थिति में रखने के लिए उनका कम से कम रख-रखाव जरूरी है। इसके लिए जिला प्राधिकारियों के परामर्श से प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि आवश्‍यक गतिविधियां सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी व्‍यक्तियों का संयंत्र तक जाना सुनिश्चित किया जा सके।
सरकार ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की है। यह 15 विशेषज्ञों का एक दल है जो तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों और परियोजना के पडोस में रहने वाले लोगों के प्रवक्‍ताओं के साथ बातचीत करेगा। विशेषज्ञ दल स्‍थानीय लोगों को परियोजना के विभिन्‍न सुरक्षा पहलुओं पर यथार्थ स्थिति बताकर उनकी आशंकाओं का निवारण करेगा। समिति ने तमिलनाडु के तिरूनलवेली नामक स्‍थान पर स्थानीय लोगों और राज्‍य सरकार के प्रतिनिधियों से 8 और 18 नवंबर 2011 को दो बैठकें भी की हैं।
कुडनकुलम परियोजना रूसी परिसंघ के तकनीकी सहयोग से लगाई जा रही है। परियोजना के निर्माण का कार्य 2002 में शुरू हुआ और यह अब चालू होने की स्थिति में आ गया है। इस दौरान परियोजना का कोई विरोध नहीं हुआ था, लेकिन प्रणालियों के परीक्षण और भाप की निकासी से होने वाले शोर ने स्‍थानीय लोगों में भय पैदा कर दिया प्रतीत होता है। संयंत्र को शुरू करने से पहले नियामक आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए परियोजना स्‍थल और पड़ोसी क्षेत्रों में तैयारी के अभ्‍यास से यह आशंका और बढ् गई। जापान स्थित फुकूशिमा दुर्घटना ने इस डर में और इजाफा कर दिया। परमाणु विरोधी गतिविधियों की फैलाई अफवाओं ने आग में घी का काम किया। इसी प्रकार महाराष्‍ट्र के जैतापुर में परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का विरोध परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा और आजीविका संबंधी आशंकाओं के अलावा मुख्‍यत: पुनर्वास संबंधी मामलों के कारण है। पश्चिम बंगाल के हरिपुर में परियोजना से पूर्व का निर्माण कार्य चल रहा है।
केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने को सर्वाधिक महत्‍व दे रही है कि देश में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग सुरक्षा के सर्वोच्‍च मानकों पर खरे उतरें। जापान की फुकूशिमा दुर्घटना के बाद केंद्र सरकार ने मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा संबंधी समीक्षा करने के निर्देश दिए। भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड ने फिर कार्यदल गठित किये जिन्‍होंने चालू और निर्माणधीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में सुरक्षा की समीक्षा की। इसके साथ-साथ आणविक ऊर्जा नियामक बोर्ड (एइआरबी) ने भी भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में सुरक्षा की समीक्षा करने के लिए एक उच्‍च स्‍तरीय समिति गठित की।
एनपीसीआइएल और एइआरबी के कार्यदलों ने पाया कि भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्‍टरों में ऐसी पर्याप्‍त व्‍यवस्‍था है जो अत्‍यंत प्राकृतिक आपदाओं में भी सुरक्षित रह सकते है। इन कार्यदलों की रिर्पोटें सार्वजनिक कर दी गई हैं और क्रमश: डीएइ/एनपीसीआइएल तथा एइआरबी की वेबसाइटों में डाल दी गई है। इन कार्यदलों ने संयंत्रों में सुरक्षा को और बढाने की सिफारशें भी की है। इन सिफारशों को समयबद्ध रूप में कार्यान्वित करने के लिए एक रोड्मैप तैयार किया गया है और इस संबंध में प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। परमाणु सुरक्षा नियामक को वैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए सरकार ने परमाणु सुरक्षा नियामक प्राधिकरण (एनएसआरए) विधेयक भी प्रस्‍तुत किया है।

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