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नई दिल्ली। युवा कार्यक्रम और खेल राज्य मंत्री अजय माकन ने मंगलवार को लोक सभा में बताया कि सरकार की विभिन्न एजेंसियों प्रवर्तन निदेशालय, आयकर एवं सेवाकर विभागों ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड, इंडियन प्रीमियर लीग के बोर्ड में अनियमितताओं के संबंध में जांच की है, साथ ही स्थायी वित्त समिति ने आईपीएल-बीसीसीआई के संबंध में अपनी 38वीं रिपोर्ट में गंभीर टिप्पणियां की हैं। समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि व्यापक जांच के आधार पर, समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि देश में अत्यधिक लोकप्रिय खेल क्रिकेट, जिसे भद्र व्यक्ति के खेल के रूप में जाना जाता है, उसे क्षेत्र के बाहर जाकर अतिक्रमण करके, उसमें उलझकर रूके व्यवहार की स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए। आयकर विभाग, बीसीसीआई के प्रति बहुत लचीला रहा है और उसने सरकारी कोष के खर्च पर उसकी तिजोरी को भरने की अनुमति प्रदान की है, इस मामले की गहराई से जांच की जाए और इस रिपोर्ट के प्रस्तुत करने के एक माह के भीतर, की गई कार्रवाई रिपोर्ट समिति को दी जाए, साथ ही बीसीसीआई को मूलरूप से दी गई छूट को वापस लेने पर निर्णय लिया जाए।
समिति का कहना है कि यह सुप्रमाणित है कि बीसीसीआई को कर के दायरे में लाने के संबंध में आयकर विभाग ने वस्तुतः ढील बरती है। कर आकलन को अंतिम रूप देने में पूर्णतः ढिलाई बरती गई, जिसकी छानबीन बहुत जरूरी है, क्योंकि संबंधित कर अधिकारियों का इस प्रकरण में छूट देने में स्पष्ट रूप से दोष झलकता है। समिति को उम्मीद है कि बीसीसीआई, आईपीएल और फ्रेंचाइजी एवं अन्य आईपीएल से संबंधित इकाईयों से आयकर आकलन, सभी संबंधित वर्षों के लिए प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा, आवश्यक तथ्य प्राप्त करके उसे समंवित तरीके से अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। इस प्रकार किए गए आकलन और उस पर लिए गए कर की मात्रा से समिति को भी अवगत कराया जाए। समिति ने कहा है कि सेवाकर मामलों का अधिनिर्णय शीघ्र किया जाए और उन्हें वसूल किए गए कर की मात्रा और लिए गए ब्याज और उस पर लगाए गए दंड की राशि से सभी को अवगत कराया जाए।
रिपोर्ट के अनुसार जांच समिति, विदेश विनिमय प्रबंधन अधिनियम में आईपीएल फ्रेंचाईजी के मालिकाना, विदेशी निवेश की प्रकृति और शेयर्स के मूल्यन और उनके अंतरन, उसके बाद फ्रेंचाईज के लिए बरती गई शीघ्रता के संबंध में पूछताछ करना चाहती है, जिसमें वह उनकी तार्किकता को समझने का प्रयास करेगी। ये कार्य, रिपोर्ट प्रस्तुत करने के छह माह की अवधि में होने चाहिएं और किए गए कार्य की रिपोर्ट समिति को प्रस्तुत की जाए। समिति चाहती है कि सरकार बीसीसीआई और अन्य आईपीएल फ्रेंचाईजी में बरती गई अनियमितताओ की गहराई से जांच करे जोकि आईपीएल फ्रेंचाईज के निवेशों के संबंध में हैं, जिन्हें देश के बाहर भेजा गया है, जो मारीशस, बहामास, ब्रिटिश बर्जिन द्वीप समूह आदि देशों में स्थित इकाईयों से संभव हुआ है, जिसके लिए आरबीआई और आयकर विभाग से दक्षिण अफ्रीका में विदेशी मुद्रा खाता खोलने और उसके प्रचालन के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी। समिति इस संबंध में की गई विशिष्ट कार्रवाई से अवगत होना चाहती है।
समिति यह भी चाहती है कि उसे एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, स्टेट बैंक ऑफ ट्रावरकोन जयपुर शाखा के विरूद्घ की गई आरबीआई की दंडात्मक कार्रवाई से अवगत कराया जाए, जिन्होंने फेमा प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया और आवश्यक घोषणाएं एवं दस्तावेज प्राप्त करने के लिए कोई परिश्रम नहीं किया और नाही एफडीआई के लिए कोई इनवाड रेमिटेंस की जांच की और नाही उनकी सामरिक रिपोर्टिंग की गई, पते आदि की भिन्नताओं सहित केवाईईसी रिपोर्ट की जांच भी नहीं की गई। समिति ने कहा है कि कंपनियों के रजिस्ट्रार और कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय को दोषी फ्रेंचाईजी के विरूद्घ कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सख्त कार्रवाई करे और तीन माह के भीतर समिति को अनुपालन रिपोर्ट भेजे।
समिति का कहना है कि बीसीसीआई को आईपीएल के प्रशासनिक और वाणिज्यिक पहलुओं के कुप्रबंधन से संबंधित मुद्दों की आंतरिक जांच करनी चाहिए और बीसीसीआई के मामलों को ठीक करना चाहिए। बीसीसीआई को अपनी प्रक्रियाओं एवं प्रणालियों में सुधार करना चाहिए ताकि आईपीएल आयोजित करने से संबंधित विवादों की पूर्व अपेक्षा से बचा जा सके और क्रिकेट के खेल को बदनामी से बचाया जा सके। बीसीसीआई के पदाधिकारियों में उनके विवादों से संबंधित मुद्दे और साथ में आईपीएल टीमों के स्वामित्व और उसे चलाने से संबंधित मुद्दे न्यायालयाधीन हैं, इसलिए समिति ने इन पर कोई टिप्पणी नहीं की है। आईपीएल के दौरान निष्पादित वाणिज्यिक ठेकों और मीडिया अधिकार में रिपोर्ट की गई अनिमितताओं के संबंध में गंभीर अनिमितताओं और अपराधों के बारे में समिति चाहती है कि जांच एजेंसियों को कानून तोड़ने से संबंधित मामलों की जांच और पहचान करनी चाहिए और बिना समय नष्ट किए उसके जिम्मेदार व्यक्तियों को दंडित करना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद को दी गई लगभग पैतालिस सौ करोड़ रूपए की छूट के तर्क से (जोकि हाल ही में आयोजित क्रिकेट के विश्वकप के टूर्नामेंट के आयोजन से अर्जित राजस्व पर है) समिति सहमत नहीं है, क्योंकि विश्वकप को भारी मात्रा में प्रायोजक मिले हैं और उसे व्यापक रूप से कार्पोरेट सेक्टर का संरक्षण भी मिला था, इसलिए समिति का विचार है कि अंतर्राष्ट्रीय खेलकूद विधाओं के लिए सामान्य प्रावधानों के लिए दी गई छूट भेदभाव पूर्ण है, न्याय संगत नहीं है। समिति ने सिफारिश की है कि आईसीसी को दी गई आयकर छूट की समीक्षा राजस्व विभाग से कराई जाए। वृहद संदर्भ की दृष्टि से समिति ने चाहा है कि वित्त मंत्रालय (राजस्व विभाग) न केवल आकलन एवं जांच को अंतिम रूप देने में शीघ्रता बरते, अपितु इस विशेष प्रकरण में फास्ट ट्रैक आधार पर कार्रवाई करे और साथ में भविष्य के लिए एक समग्र और सतत नीति तैयार करे, क्योंकि उच्च रूप में धन को खर्च करने वाली विधाओं जैसे आईपीएल आदि को कर देयता के परिदृश्य से अलग नहीं रखा जा सकता है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में उन कार्रवाईयों का भी उल्लेख किया है जो सरकारी एजेंसियों ने बीसीसीआई और इंडियन प्रीमियर लीग से संबंधित इकाईयों की जांच पड़ताल के संबंध में उसे सूचित की हैं। इसमें उल्लेखित प्रर्वतन निदेशालय की सूचना में कहा गया है कि प्रर्वतन निदेशालय ने अब तक की गई जांच के आधार पर उन्नीस कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं जिनमें लगभग 1077.43 का राजस्व निहित है। इसी प्रकार आयकर विभाग ने सूचित किया है कि उसने बीसीसीआई और इंडियन प्रीमियर लीग से संबंधित इकाईयों के संबंध में आयकर की दृष्टि से जांच पड़ताल की है, साथ में निवेश के स्रोत आईपीएल की गतिविधियों से अर्जित की गई आय और दावा किए गए विभिन्न खर्चों के संबंध में भी पूछताछ की है। बीसीसीआई का पंजीकरण आयकर अधिनियम 1968 के भाग 12 क के अंतर्गत किया गया था, अतः इसके भाग 11 और 12 के तहत आय पर छूट की हकदारिक्ता थी, आईपीएल, बीसीसीआई का एक भाग है, इसलिए इसका कोई अलग से विधिक स्टेटस नहीं है। आयकर विभाग ने समिति को अपनी कार्रवाईयों का विस्तृत विवरण उपलब्ध कराया है।
जानकारी दी गई है कि बीसीसीआई सहित राष्ट्रीय खेल परिसंघों को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के दायरे में लाने की आवश्यकता पर समय समय पर आवाज़ उठाई गई है, तद्नुसार अप्रैल 2010 में सरकार ने घोषणा की कि एनएसएफ को जो 10.00 लाख या इससे अधिक अनुदान सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें आरटीआई 2005 के भाग दो (ज) के तहत लाया जाए। बीसीसीआई का मामला केंद्रीय सूचना आयोग (आईसीसी) के पास विचाराधीन है और इस मामले में सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया है। यद्यपि केंद्र सरकार, बीसीसीआई को कोई प्रत्यक्ष सहायता प्रदान नहीं करती है, परंतु समय-समय पर केंद्र सरकार आयकर, उत्पाद शुल्क आदि के संबंध में बीसीसीआई को रियायत प्रदान करती रही है। राज्य सरकारें भी देश के विभिन्न भागों में क्रिकेट स्टेडियम के लिए रियायती दरों पर भूमि प्रदान करती रही हैं जोकि बाज़ार मूल्यों से काफी कम हैं। इसके रहते हुए भी सरकार ने प्रस्ताव किया है कि बीसीसीआई सहित सभी राष्ट्रीय खेल परिसंघों को आरटीआई के तहत लाया जाए।
राष्ट्रीय खेल परिसंघों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाब देहता लाने के लिए सरकार एक नियामक रूपरेखा तैयार कर रही है, जिसका उद्देश्य है कि खेल निकायों के बीच सुशासन का विकास किया जाए। राष्ट्रीय खेल विधेयक का प्रारूप सार्वजनिक क्षेत्र पर रख दिया गया है, ताकि भागीदारों से पूर्ण परामर्श लिया जा सके। प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक 2011 में वृहद और प्रमुख प्रावधानों के अलावा डोपिंग, यौन शोषण, आयु संबंधी फ्रॉड के मामलों का उपशमन भी शामिल है, इसमें भारतीय ओलंपिक संघ के अधिकारों एवं कार्यों एवं अन्य राष्ट्रीय खेल परिसंघों के अधिकारों और कार्यों, बुनियादी सिद्घांतों को अपनाना और खेलों के व्यवसायिक प्रबंधन का मामला विस्तार से शामिल किया गया है।