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नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि हमारे देशवासियों के जीवन को प्रभावित करने वाले आर्थिक मुद्दों पर नियमित अंतर्राष्ट्रीय वार्ता अपेक्षित है। वह ‘कर और असमानता’ विषय पर आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय कर वार्ता वैश्विक सम्मेलन का शुभारंभ कर रहे थे। मुखर्जी ने कहा कि मानवीय सभ्यता के इतिहास में लोगों को एक-दूसरे के नजदीक लाने में वैश्वीकरण के मौजूदा दौर ने सबसे अधिक योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि एक-दूसरे से जुड़ने के मौके लगातार बढ़ रहे हैं, जो हमारी कई समस्याओं के हल हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि समाज के बहुमुखी एकीकरण से सामूहिक नियति बनी है, जिससे विकास की विभिन्न चिंताएं एकीकृत हुई हैं।
इस कार्यक्रम में आए विभिन्न सहभागियों को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि भारत इस सम्मेलन की मेजबानी करके काफी प्रसन्न है। इस सम्मेलन ने कर मुद्दों पर देश के कर अधिकारियों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कर संगठनों, नीति-निर्माताओं और दुनिया भर के विशेषज्ञों सहित विभिन्न प्रभावशाली हस्तियों को इकट्ठा किया है। मुखर्जी ने कहा कि यह सम्मेलन ‘कर और असमानता’ जैसे महत्वपूर्ण विषयों को संबोधित करता है, जो आधुनिक कल्याणकारी राष्ट्र-राज्य के प्रभावी प्रशासन और क्रियाकलाप का केंद्रीय विषय है, विकास और असमानता के जटिल संबंध विकसित और विकासशील देशों की कर नीतियों के निर्माण के रास्ते की चुनौती हैं। उनके मुताबिक, एक ओर प्रगतिशील कर नीति आय और संपत्ति की बढ़ रही असमानता को दूर करने का जरिया है, तो दूसरी ओर यह असमानता और गरीबी दूर करने के लिए संसाधन मुहैया कराती है। उन्होंने बताया कि यह सार्वजनिक कार्यक्रमों और व्यय नीतियों को लागू करने की सुविधा देता है।
वित्त मंत्री ने बताया कि कर प्रणाली विकास को बेहतर समर्थन दे और स्वच्छ एवं न्यायपरक समाज बनाए, इसके लिए नीति निर्माताओं को कड़े विकल्प अपनाने चाहिए। कर प्रणाली को स्वच्छ रखने के लिए उदग्र और क्षैतिज समानता के सिद्धांत महत्वपूर्ण होते हैं। कर प्रशासन का सीधा असर कर नीति की निष्पक्षता पर पड़ता है। किसी अच्छी कर नीति के अच्छे से कार्यान्वयन न होने पर कर बोझ के वितरण में बहुत अंतर हो सकता है। हम एक-दूसरे की कर प्रणाली, अनुभव और बेहतरीन रिवाजों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। सीमापार आर्थिक लेनदेन में तेजी आने से एक-दूसरे की कर प्रणालियों के बीच गठजोड़ करने की जरूरत है। इस सम्मेलन में होने वाला विमर्श इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा, कर सुधारों का मसला 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधार और उदारीकरण की प्रक्रिया के दिल में है और तब से हमने काफी दूरी तय कर ली है। प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता प्रत्यक्ष कर के नीतिगत उपायों को एक-साथ लाएगा। इसके अगले वित्त वर्ष से लागू होने की उम्मीद है। इसी तरह उन्होंने कहा कि देश में सभी स्तरों पर वस्तुओं और सेवा कर की सामान्य मूल्यवर्द्धित कर प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं।