स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूद प्रक्रिया, उच्चतम न्यायालय अभिलेख अधिवक्ता और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय के 6 अक्तूबर, 1993 के निर्णय और तारीख 28 अक्तूबर, 1998 की सलाहकारी राय पर आधारित है। इस संबंध में विभिन्न मंचों पर विचार-विमर्श किया गया है और उसको बदलने की मांगें उठती रही हैं। हालांकि किसी प्रस्ताव को सरकार ने अंतिम रूप नहीं दिया है।
केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने लोकसभा को बताया कि न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को लोकसभा में 1 दिसंबर, 2010 को पुनर्स्थापित कर दिया गया था और समीक्षा और रिपोर्ट के लिए विभाग संबंधी संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया था। समिति ने 30 अगस्त 2011 को संसद को रिपोर्ट पेश कर दी है। इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक का संशोधन करने के लिए प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है।
जनहित याचिकाएं
न्यायालयों में दायर किए गए लोकहित मुकदमों की संख्या से संबंधित कोई आंकड़ा न्याय विभाग नहीं रखता है, क्योंकि मामला अनन्य रूप से उच्चतर न्यायपालिका की अधिकारिता के भीतर आता है। लोकहित मुकदमों को ग्रहण या नियंत्रण करने का मामला उन न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में आता है, जहां वे दायर किए जाते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय ने समय-समय पर अनैतिक तत्वों के लोकहित मुकदमा के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिए अपने विभिन्न आदेशों में कई दिशा-निर्देश दिए हैं।
498क का दुरुपयोग
सलमान खुर्शीद ने बताया कि प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य (13 अगस्त, 2010 को निर्णीत) और धारा 498क से संबंधित रामगोपाल बनाम मध्यप्रदेश राज्य (आदेश तारीख 30 जुलाई, 2010) के मामलों में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि शिकायतें सदैव सद्भावपूर्ण नहीं होती। न्यायालय ने अन्य बातों के साथ धारा 498क के विभिन्न पहलुओं, जिसके अंतर्गत इसे शमनीय बनाना भी है, की समीक्षा करने के लिए भारत के विधि आयोग से अनुरोध किया है। आयोग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। धारा 498क से संबंधित विषय पर भारत के विधि आयोग की 31 अक्तूबर, 2011 को आयोजित बैठक में बहस हुई है और विचार-विमर्श को ध्यान में रखते हुए भारत के विधि आयोग ऐसी रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498क के अधीन अपराध को शमनीय बनाने या नहीं बनाने की आवश्यकता पर ब्योरे होंगे। रिपोर्ट धारा 498क से संबंधित अन्य पहलुओं जैसे कि इसे जमानतीय बनाने, गिरफ्तारी की प्रक्रिया, सुलह आदि से भी संबंधित होगी।