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नई दिल्ली। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) देश भर के चिकित्सा महाविद्यालयों में 15 प्रतिशत सीटों के लिए अखिल भारतीय प्री मेडिकल/ प्री डेंटल प्रवेश परीक्षा का आयोजन करता है। इस प्रवेश परीक्षा में बैठने वाले छात्र हिंदी या अंग्रेजी में प्रश्नपत्र के विकल्प में से किसी एक का चुनाव कर सकते हैं, बाकी बचे 85 प्रतिशत सीटों के लिए संबंधित राज्य अपना अलग से प्रवेश परीक्षा का आयोजन करते हैं। इस परीक्षा में राज्यों को यह छूट होती है कि वह अपने राज्य के क्षेत्रीय भाषाओं में प्रवेश परीक्षा का आयोजन कर सकते हैं। राज्यों की ओर से आयोजित होने वाली चिकित्सा प्रवेश परीक्षा में माध्यम के तौर पर क्षेत्रीय भाषा के इस्तेमाल पर कोई पाबंदी नहीं है।
सिमरन जैन केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देश में अंतर स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए समान प्रवेश परीक्षा मसलन राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) आयोजित करने के भारतीय चिकित्सा परिषद के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एनईईटी को लागू करने के लिए इस तरह के ज़रुरी कदम उठाने का भी निर्देश दिया था। इसी के अनुसार केंद्र सरकार ने एनईईटी को लागू करने के तौर तरीकों को अंतिम रुप देने के लिए एक समिति गठित की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने राज्यसभा में बताया कि कुछ राज्यों की सरकारों ने प्रस्तावित एनईईटी परीक्षा में माध्यम के रुप में इस्तेमाल होने वाली भाषा के साथ ही अन्य बातों को लेकर अपनी चिंता जताई है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, जोकि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए एनईईटी परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी है, ने एक सलाहकार समिति गठित की है। इस समिति में सभी राज्यों के सदस्य होंगे, जोकि विभिन्न राज्यों में प्रचलित नामांकन प्रक्रिया से जुड़े मुद्दों जैसे आरक्षण, परीक्षा के माध्यम आदि को सुलझाएंगे।