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नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को बाल अधिकारों के उल्लंघन के कई मामलों के बारे में शिकायतें मिलीं थी। इनमें शिक्षा का अधिकार से संबंधित शिकायतें भी थीं। आयोग ने 17 दिसंबर 2011 को वाराणसी में बाल श्रम और बाल अधिकारों से संबंधित अन्य मुद्दों पर सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की। उत्तर प्रदेश में यह अपने किस्म की पहली सुनवाई थी।
आयोग के न्यायाधीशों की समिति ने 5 जिलों–वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र और महाराजगंज के 36 मामलों की सुनवाई की। इन मामलों का चुनाव एक स्वयंसेवी संगठन शंभूनाथ सिंह रिसर्च फाउंडेशन ने आयोग के साथ मिलकर किया। सार्वजनिक सुनवाई में शामिल कुछ मुद्दे बाल श्रम, बाल तस्करी, कुपोषण, जन्म पंजीकरण से इंकार और टीकाकरण, समन्वित बाल विकास योजना केंद्रों का न होना और आंगनवाड़ियों के सुचारू ढंग से काम न करने से संबंधित थे। हर मामले में समिति ने निश्चित समय के अंदर तेजी से कार्रवाई करने और संबद्ध अधिकारियों से आयोग को अपनी रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए। आयोग इस मामले में की गयी कार्रवाई की लगातार निगरानी करेगा।
आयोग की अध्यक्ष डॉ शांता सिन्हा ने कहा कि व्यक्ति के विकास के लिए और उसे जागरूक नागरिक बनाने के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा और बाल श्रम का उंमूलन महत्वपूर्ण है। बच्चे स्कूल न जाएं, इसे सहन नहीं किया जाना चाहिएं और शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अनुरूप नीतियां बनाई जानी चाहिएं। आयोग अब तक 8 राज्यों में इस तरह की सार्वजनिक सुनवाई कर चुका है। हर महीने नए राज्य में सार्वजनिक सुनवाई होती है।