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दलितों के विकास के लिए कानून

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नई दिल्ली। सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता राज्‍य मंत्री डी नेपोलियन ने लोकसभा में बताया कि सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 में अस्‍पृश्‍यता की प्रथा के लिए दंड का प्रावधान है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्‍याचार निवारण) अधिनियम 1989 (पीओए अधिनियम) अन्‍य बातों के साथ-साथ, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्‍यों के विरूद्ध अपराधों को रोकने के लिए, ऐसे अपराधों के अभियोजन के लिए विशेष न्‍यायालयों और राहत और ऐसे अपराधों के शिकार लोगों के पुनर्वास के लिए प्रावधान करने वाला एक अधिनियम है। यद्यपि, यह मंत्रालय अनुसूचित जातियों के विकास के संबंध में किसी विधान को प्रशासित नहीं करता है।
राष्‍ट्रीय अपराध लेख ब्‍यूरो गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008-2010 के दौरान पीसीआर और पीओए अधिनियमों के अंतर्गत पुलिस में दर्ज अनुसूचित जाति से संबंधित प्रकरणों की संख्‍या दोष सिद्धि, दोष मुक्ति में समाप्‍त प्रकरणों और इनसे संबंधित लंबित प्रकरणों का प्रतिशत उपलब्‍ध है जिसमें दोनों अधिनियमों के अंतर्गत 2010 के दौरान ऐसे प्रकरणों की संख्‍या में 2009 के दौरान दर्ज प्रकरणों की तुलना में कमी थी, जबकि निपटाए गए, दोष सिद्धि में समाप्‍त प्रकरणों का प्रतिशत तदनुरूपी अवधि के दौरान बढ़ा था।
दोनों अधिनियम राज्‍य सरकार, संघ राज्‍य क्षेत्र प्रशासन कार्यान्वित करते हैं, जिन्‍हें प्रवर्तन और न्‍यायिक तंत्र को सुदृढ़ करने और प्रचार और जागरूकता स़ृजन, अत्‍याचार पीडि़तों के लिए राहत धनराशि इत्‍यादि के लिए मुख्‍यतया केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। यह मंत्रालय दोनों अधिनियमों के प्रावधानों का अक्षरश: कार्यान्‍वयन, प्रकरणों के त्‍वरित अभियोजन के लिए अनन्‍य विशेष न्‍यायालयों के गठन पर विशेष जोर देने के साथ, अन्‍वेषण अधिकारियों के सुग्राहीकरण, जनजागरूकता कार्यक्रमों, दोष मुक्ति में समाप्‍त प्रकरणों की समीक्षा करके उनका समाधान करता रहा है। गृह मंत्रालय भी अन्‍य बातों के साथ-साथ उन उपायों के संबंध में उन्‍हें सलाह देता रहा है जिनकी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण के एक वृहतर उपाय किए जाने के लिए आवश्‍यकता है।
केंद्रीय सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्री की अध्‍यक्षता में एक समिति जो वर्ष 2006 में गठित की गई थी, भी राज्‍यों, संघ राज्‍य क्षेत्रों में दोनों अधिनियमों के कार्यान्‍वयन की समीक्षा करती है। इस समिति ने अभी तक सत्रह बैठकें आयोजित की हैं जिनमें 24 राज्‍यों और 4 संघ राज्‍य क्षेत्रों में दोनों अधिनियमों के कार्यान्‍वयन की समीक्षा कर ली गई है।

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