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नई दिल्ली। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जल्दी ही एक साप्ताहिक आयरन और फॉलिक अनुपूरक कार्यक्रम शुरू करेगा। देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में लागू किये जाने वाले इस कार्यक्रम में करीब 12 करोड़ किशोर शामिल होंगे। मंत्रालय ने राज्यों को सुझाव दिया है कि किशोरों को आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां देने के लिए सप्ताह में एक निश्चित दिन तय किया जाए और यह दिन सोमवार हो तो अच्छा रहेगा। योजना के कार्यान्यवन के लिए धनराशि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अतंर्गत प्रदान की जाएगी। राज्यों को यह भी सलाह दी गई है कि वे वर्ष 2012-13 के लिए कार्यक्रम क्रियान्यवन योजनाओं के लिए अपने धन की जरूरत बताएं ताकि योजना को आने वाले वित्त वर्ष में शुरू किया जा सके।
डब्ल्यूआईएफएस की प्रमुख बातों में 100 मिलीग्राम आयरन और 500 यूजी फॉलिक एसिड के साप्ताहिक आयरन-फॉलिक एसिड अनुपूरक देना, मामूली, गंभीर एनीमिया या खून की कमी के लिए लक्षित समूहों की स्कीनिंग और इन मामलों को एक उचित स्वास्थ्य केंद्र को सौपना, जानकारी और भोजन के सेवन में सुधार के लिए परामर्श और आंतों में कीड़ों की रोकथाम के लिए कदम उठाना शामिल है। डब्ल्यूआईएफएस कार्यक्रम किशोरों को परामर्श देने और महिला और बाल विकास मंत्रालय के सबला और एमओएचएफडब्ल्यू के किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य कार्यक्रम और मासिक धर्म के दौरान सफाई रखने जैसे कार्यक्रमों के जरिए उनके स्वास्थ्य और पोषण की जरूरतों को पूरा करेगा। एनीमिया बच्चों और व्यस्कों और आने वाली पीढ़ी के लिए खतरनाक है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसलिए साप्ताहिक आयरन और फॉलिक एसिड कार्यक्रम विकसित किया है ताकि इस स्वास्थ्य संबंधी चुनौती से निपटा जा सके।
खून की कमी मुख्य रूप से आयरन या लोहे की कमी और पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण होती है। पौष्टिक भोजन न लेने और आयरन की पर्याप्त मात्रा न लेने के कारण एनीमिया देशभर में एक समस्या है। खून की कमी न केवल गर्भवती महिलाओं, शिशुओं, जवान बच्चों में पाई जाती है बल्कि किशोर भी इसके शिकार है। किशोरों में खून की कमी के कारण शारीरिक विकास में रूकावट, पढ़ाई में मन न लगना और उसका काम पर असर और कम काम के कारण कमाई में कमी के रूप में देखा गया है। किशोर लड़कियों में खून की कमी के कारण समयपूर्व प्रसव और कम वजन के शिशुओं के जन्म लेने का खतरा बढ़ जाता है। कम वजन वाले ऐसे बच्चे अधिक बीमार रहते हैं और एक वर्ष की उम्र भी पूरा नहीं कर पाते। किशोर लड़कियों में खून की कमी होने की स्थिति में मां बनने पर मृत्यु का ख़तरा बढ़ जाता है। पंद्रह से चौबीस वर्ष की आयु वर्ग में मां बनने पर एक तिहाई से ज्यादा मौतें ऐसी जवान महिलाओं की ही होती हैं। मां के स्वास्थ्य से नवजात शिशु मृत्यु दर भी प्रभावित होती है। पंद्रह से 19 वर्ष की आयु में यह दर 1000 के पीछे 54 है।
यह योजना राष्ट्रीय स्तर की बहुक्षेत्रीय, संयुक्त कार्यक्रम के संदर्भ में अंतर-मंत्रालयी अभिसरण, क्षमता निर्माण, निगरानी और व्यापक संचार उपकरण का एक अनूठा उदाहरण होगी। महिला और बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरह साझेदार मंत्रालयों के सेवा प्रदाताओं (चिकित्सा अधिकारियों, सबला समन्वयकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्टाफ नर्स, स्कूल शिक्षकों) सहित संयुक्त क्षमता निर्माण गतिविधियों को शामिल किया जाएगा। दो दिन की विशेष रूचि कार्यशाला में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम के लिए यूनीसेफ और डब्ल्यूएचओ की तकनीकी सहायता से गतिविधियां शुरू कीं। भारत में किशोरों में एनीमिया बहुत अधिक देखा गया है। भारत में 15 से 19 वर्ष के आयु वर्ग के 12.2 करोड़ किशोरों में से (2011की जनगणना के अनुमान) करीब 5.7 करोड़ लड़कियां हैं जिनमें से 3.2 करोड़ एनीमिया से ग्रस्त हैं। इस आयु वर्ग के 6.5 करोड़ लड़के हैं जिनमें से 2 करीब 2 करोड़ एनीमिया से ग्रस्त हैं।