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नई दिल्ली। केंद्र में लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्तों की संस्था की स्थापना के उद्देश्य से सरकार ने गुरूवार को लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक को पेश कर दिया। दोनों संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने हेतु संविधान में संशोधन के लिए सरकार ने एक अन्य विधेयक भी प्रस्तुत किया। सरकार ने लोकपाल विधेयक-2011 को वापस ले लिया है, क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण बदलाव के लिए संसदीय समिति के सुझाए उपायों के बाद तैयार नये लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2011 को लोकसभा में प्रस्तुत करने का फैसला लिया गया था। प्रस्तावित नये विधेयक की महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं-
उत्तरदायित्व में सुधार लाने पर बल
केंद्र के लिए लोकपाल और राज्यों के लिए लोकायुक्त नामक नई संस्था की स्थापना। इन स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थाओं के पास भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए भ्रष्टाचार से जुड़े कानून के तहत शिकायत के संदर्भ में, अधीक्षण और प्रारंभिक जांच के निर्देश का अधिकार होगा जिससे जांच की जा सके और अपराधों का अभियोजन किया जा सके। यह विधेयक केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर एक समान सतर्कता और भ्रष्टाचार विरोधी खाका उपलब्ध कराता है। विधेयक, जांच को अभियोजन से अलग रखने को संस्थापित करता है, इससे हित संघर्ष दूर होगा साथ ही व्यवसायिकता और विशेषज्ञता में वृद्धि भी होगी।
संस्थान की संरचना
लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे, जिनमें से आधे न्यायिक क्षेत्र से जुड़े होंगे। लोकपाल के पचास प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के बीच से होंगे। प्रारंभिक जांच करने के लिए लोकपाल के पास एक पूछताछ शाखा और एक स्वतंत्र अभियोजन खंड होगा। लोकपाल के अधिकारियों में सचिव, अभियोजन निदेशक, पूछताछ निदेशक और अन्य अधिकारी शामिल होंगे।
चयन प्रक्रिया
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का मौजूदा न्यायधीश होगा, प्रतिष्ठित विधिवेत्ता होगा, जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित होगा। चयन की प्रक्रिया में चयन समिति को मदद करने के लिए एक सर्च समिति होगी, जिसके पचास प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के बीच से होंगे।
अधिकार क्षेत्र
प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी शिकायत के निपटारे में विशेष प्रक्रिया अपनाने की शर्त के साथ उन्हें लोकपाल के दायरे में रखा गया है। लोकपाल, प्रधानमंत्री के खिलाफ लगे उन आरोपो की जांच कर सकता जिनके संबंध अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा, सार्वजनिक आदेश, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से जुड़े हों। प्रधानमंत्री के खिलाफ प्राथमिक पूछताछ या जांच की शुरूआत करने का लोकपाल का कोई फैसला सिर्फ तीन चौथाई बहुमत वाली फुलबेंच ही करेगी और ऐसी प्रक्रिया कैमरे में रिकॉर्ड होगी।
लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में ग्रुप ए, बी, सी, डी के सभी सरकारी कर्मचारियों को शामिल किया गया है। यदि लोकपाल कोई शिकायत जांच के लिए सीवीसी के पास भेजता है तो सीवीसी ग्रुप ए, बी के अधिकारियों से जुड़ी शिकायतों पर अपनी प्राथमिक पूछताछ रिपोर्ट लोकपाल को भेजेगा, ताकि वह आगे फैसला ले सके, लेकिन ग्रुप सी और डी के मामले में सीवीसी ही आगे की कार्रवाई सीवीसी कानून के तहत करेगा, जिसे लोकपाल को समीक्षा के लिए रिपोर्ट किया जाएगा। कोई भी संस्था जो विदेशी योगदान नियमन कानून-एफसीआरए के तहत सालाना दस लाख रुपये से अधिक का दान प्राप्त करती है, लोकपाल के दायरे में आएगी। लोकपाल स्वयं कोई जांच शुरू नहीं कर पायेगा।
विधेयक की अन्य महत्वपूर्ण बातें
लोकपाल के आदेश या उसकी अनुमति पर किसी जांच की शुरूआत करने के लिए किसी से कोई पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति, सीबीआई के निदेशक के चयन के लिए सिफारिश करेगी। अदालती कार्यवाही लंबित रहने की स्थिति में भी भ्रष्ट तरीकों से कमाई आरोपी की दौलत को जब्त करने का प्रावधान है। सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधानों से जुड़े सार्वजनिक प्राधिकरणों के सभी फैसलों और भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए लोकपाल में आखिरी अपील की जा सकती है। लोकपाल किसी मामले के संदर्भ में सीबीआई सहित किसी भी जांच एजेंसी का अधीक्षण कर सकता है या उसे निर्देश दे सकता है।
विधेयक में कार्य निष्पादन के लिए निम्न तरह समय सीमा निर्धारित की गयी है। प्राथमिक पूछताछ-3 महीना, तीन महीने का विस्तार भी, जांच-6 महीना, 6 महीने का विस्तार, ट्रायल-एक वर्ष, एक वर्ष का विस्तार, भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत विधेयक में सजा बढ़ाने का भी प्रस्ताव है। अधिकतम सजा सात साल से दस साल, न्यूनतम सजा छह माह दो साल तक। विधेयक में सरकारी कर्मचारियों को संपत्ति का खुलासा कानूनन अनिवार्य किया गया है। विधेयक में पूछताछ कानून-1952, भ्रष्टाचार निवारण कानून-1988, आपराधिक प्रक्रिया संहिता-1973, केंद्रीय सतर्कता आयोग कानून-2003 और दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना कानून-1946 में आवश्यक सुधार करने का भी प्रावधान है।