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देहरादून। उत्तराखंड जनमंच ने राज्य में 30 जनवरी को मतदान कराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले को तानाशाहीपूर्ण, अवैज्ञानिक और अदूरदर्शी बताते हुए कहा है कि यह पहाड़ के लोगों को मतदान में हिस्सा लेने से रोकने की साजिश है। जनमंच का कहना है कि हिमालय के दुर्गम भौगोलिक इलाकों में जनवरी के महीने चुनाव कराने का निर्णय पागलपन से भरा है और यह मतदाताओं के साथ-साथ निर्वाचन में भाग लेने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों की जान को जोखिम में डालने वाला है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी को भेजे एक फैक्स में जनमंच उत्तराखंड के प्रमुख महासचिव राजेन टोडरिया ने आरोप लगाया है कि आयोग ने पहाड़ के लोगों के साथ मतदाता की तरह नहीं, बल्कि भेड़ बकरी की तरह सलूक किया है। जनमंच ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों, कानूनविदों से अपील की है कि वे चुनाव आयोग के इस निर्णय पर सड़क से लेकर अदालत तक विरोध दर्ज करें। उन्होंने सवाल किया है कि क्या चुनाव आयोग उत्तराखंड में मतदान की औपचारिकता ही पूरा करना चाहता है? उन्होंने कहा कि यह अलोकतांत्रिक,मनमानीपूर्ण और अफसरशाही के अहंकार से प्रेरित निर्णय है। इससे साबित होता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त, पहाड़ के लोगों को मतदाता नहीं बल्कि भेड़-बकरी समझते हैं, जिन्हे वह कड़ाके की ठंड और बर्फबारी में भी मतदान के लिए हांक रहे हैं।
राजेन टोडरिया ने चुनाव आयोग के फैसले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि जनवरी के महीने में कभी भी किसी हिमालयी राज्य में चुनाव नहीं कराए गए। दिल्ली में एसी कमरों में बैठे मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त पहले चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा समेत पहाड़ी जिलों के ऊंचाई वाले हिस्सों का दौरा करें तब उन्हे मालूम हो सकेगा कि इस समय पहाड़ी इलाकों में हालात कितने खराब और प्रतिकूल हैं। चुनाव आयोग का प्रयास ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना है, परंतु कड़ाके की ठंड और हिमपात के प्रतिकूल मौसम में मतदान पर भारी दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई है, यही नहीं यदि हिमपात हुआ तो राज्य के कई इलाकों में चुनाव प्रचार करना असंभव हो जाएगा।
फैक्स में कहा गया है कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जनसंचार के साधनों की पहुंच मुश्किल से 40 प्रतिशत आबादी तक है, बाकी साठ प्रतिशत आबादी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के बारे में सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से ही जान सकती है, खराब मौसम और कम अवधि के कारण राज्य के अधिकांश इलाकों तक राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं जा सकेंगे। ऐसी स्थिति में मतदाता के पास राजनीतिक दलों के एजेंडे या चुनावी मुद्दों की जानकारी नहीं मिल पाएगी। जनमंच ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और विधिवेत्ताओं से अपील की है कि आयोग के कर्णधारों की इस सोच के खिलाफ सड़क से लेकर अदालतों तक विरोध दर्ज कराएं।
उत्तराखंड में चुनाव कराने का आदर्श मौसम मार्च से मई तक होता है। विशेष हालातों में फरवरी के तीसरे और चौथे सप्ताह में भी चुनाव कराए जा सकते हैं, पर जनवरी में चुनाव कराने का विचार मूर्खतापूर्ण और निरा पागलपन है। उन्होने कहा कि मंच राज्य निर्वाचन आयोग को ज्ञापन देकर भी इस निर्णय का विरोध करेगा। उनका कहना है कि ऐसा किसी दूसरे पहाड़ी राज्य में हुआ होता तो अब तक तूफान मच चुका होता।