स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
देहरादून। उत्तराखंड राज्य जैव प्रोद्यौगिकी विभाग ने नोबल रिसर्च आईडिया इन बायोटेकनोलॉजी (एनआरआईबी) कार्यक्रम पर ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला के समापन पर जैव प्रोद्यौगिकी विभाग के निदेशक डॉ जेएमएस राणा ने बताया कि यह कार्यशाला विभाग की एक शुरूआत है और इसे दो से तीन महीनों में लागू किया जाएगा। एनआरआईबी योजना, उत्तराखंड राज्य जैव प्रोद्यौगिकी विभाग के शोधकर्ताओं के लिये मील का पत्थर मानी जा रही है। इस परियोजना के समस्त प्रतिभागी काफी उत्साहित रहे। उन्होंने कहा कि परियोजना के अलावा विभाग की अन्य नई योजनाएं जैसे इंटिग्रेटेड अक्वा कल्चर, स्कालरशिप, ग्रामीणों के लिए विशेष योजना, अत्याधुनिक विश्व स्तरीय प्रयोगशालाएं इत्यादि को जल्द ही शुरू किया जाएगा। विभाग के कार्यकलापों के बारे में अधिक जानकारी विभाग की वेबसाइट यूएसबीडी इन पर उपलब्ध है। इस वेबसाइट पर अभी एक तिहाई कार्य पूर्ण हुआ है, इसका कार्य पूरा होते ही यह हर वर्ग मे अभिरूचि पैदा करेगी।
डॉ राणा ने बताया कि इस कार्यशाला में 18 शोध प्रस्ताव प्रस्तुत किये गए। उत्तराखंड के बारह से अधिक प्रतिष्ठानों के शोधकर्ताओं ने इसमें भाग लिया, जिसमें आईआईटी रूड़की, पंतनगर विश्वविद्यालय, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय, आईबीआरआई, कुमायूं विश्वविद्यालय आदि संस्थानों के प्रतिभागी थे। सभी प्रतिभागियों ने इस पहल की सराहना की और इसे अद्भुत योजना बताया। कार्यशाला में पूरे प्रदेश से लगभग 30 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। एनआरआईबी योजना को प्रदेश में विज्ञान के लिये एक क्रांतिकारी योजना बताते हुए हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसपी सिंह ने इसकी सराहना की। प्रतिभागियों को डॉ चंद्रहास खंडूड़ी, शोध निदेशक रैनबैक्सी ने बताया कि बायोटेक्नोलॉजी की फार्मा उद्योग में असीम संभावनाएं हैं, विश्व स्तर पर फार्मा उद्योग वर्ष में 8000 करोड़ रुपए से अधिक का व्यवसाय करता है, जिसका पंद्रह प्रतिशत केवल एनजाइम्स का व्यापार है। उन्होंने उत्तराखंड की विशेष परिस्थितियों के अनुसार शोध के कुछ सम्भावित विषयों पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के आयोजन में डॉ आशीष थपलियाल, डॉ त्रिभुवन चंद्रा, डॉ कुलवीर कौर, प्रमोद रावत और शोभित ध्यानी की विशेष भूमिका रही।