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नई दिल्ली। महामना मदन मोहन मालवीय के 150वें जन्मदिन के स्मरणोत्सव पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने कहा है कि वे एक महान देशभक्त थे, उनके स्मरणोत्सव में उपस्थित होकर मै अपने को सम्मानित महसूस कर रहा हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीयजी हमारे स्वाधीनता आंदोलन के महान नेताओं में से एक थे, जिन्होंने आधुनिक भारत के मूल्यों और आदर्शों को आकार दिया, उस पीढ़ी के अनेक नेताओं की तरह वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने एक शिक्षाविद्, समाज सुधारक, लेखक और विशिष्ट राजनेता के रूप में हमारे राज शासन और समाज पर अमिट छाप छोड़ी, हम मालवीय जी को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक के रूप में याद करते हैं, जो आज देश के प्रमुख राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है, इसमें सामाजिक विज्ञान से लेकर चिकित्सा और इंजीनियरिंग के 140 विभाग हैं और करीब 20 हजार छात्र इसमें पढ़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मालवीयजी चाहते थे कि भारत के युवाओं को संपूर्ण शिक्षा का लाभ मिले, जिसमें आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान, व्यवहारिक प्रशिक्षण, नैतिक मानदंडों और कौशल अध्ययन को शामिल किया जाए, वे चाहते थे, कि भारतीय ज्ञान को पश्चिम के आधुनिक वैज्ञानिक विचारों के साथ मिला दिया जाए, मैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय दिए गए उनके संदेश को उद्धृत करना चाहता हूं-‘भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं है, यह मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों का देश भी है, देश तभी मजबूत बन सकता है और विकसित हो सकता है, जब भारत में विभिन्न समुदायों के लोग आपसी भाईचारे और सौहार्द के साथ रहें, मेरी उम्मीद और प्रार्थना है कि यह केंद्र ऐसे छात्र पैदा करेगा जो न केवल विश्व के अन्य भागों में रहने वाले बुद्धिमान छात्रों की बराबरी कर सकेंगे, बल्कि एक अच्छा जीवन व्यतीत करेंगे, अपने देश से प्यार करेंगे और सर्वोच्च शासक के प्रति वफादार बनेंगे।’
मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में उनसे बेहतर आदर्श नहीं हो सकता और उनकी प्रासंगिक आज भी बनी हुई है, वे राष्ट्रीय आम सहमति बनाने में शिक्षा की ताकत और नैतिकता में यकीन रखते थे, वह एक युग था, जब समान विचारधारा वाले लोगों ने हमारे देश को नैतिक बुद्धिमत्तापूर्ण और दुर्लभ राजनैतिक नेतृत्व प्रदान किया, उन्हें चारों तरफ से सम्मान मिलता था और उनकी राजनीति उच्च स्तर के आदर्शों, निस्वार्थ सेवा और नये आधुनिक भारत के निर्माण की आशा से भरी हुई थी, आज हमारे आसपास जिस तरह की निराशा फैली हुई है, उसके बावजूद, मैं समझता हूं कि हम में से प्रत्येक का दिल शालीनता, भलाई और मानवीय मूल्यों के सम्मान के लिए तरस रहा है, ये वही मूल्य हैं, जिन्हें हम अपने गणतंत्र के प्रवर्तकों से जोड़ते हैं, हमारा कर्तव्य है कि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वतंत्र और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनकी क्या आकांक्षाओं को याद दिलाएं।
उन्होंने कहा कि मुझे, हमारे महान देशभक्त मालवीयजी के जीवन और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए संस्कृति मंत्रालय की पहल पर बेहद खुशी हुई है। मालवीय जी की 150वीं जयंती के स्मरणोत्सव के लिए मेरे नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय समिति की पहली बैठक में हमें स्मरणोत्सव आयोजित करने के बारे में अनेक ठोस सुझाव मिले। हमने राजनेता डा कर्ण सिंह के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति गठित की है, मालवीयजी के आदर्शों और उपलब्धियों को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए स्मरणोत्सव के अंतर्गत अनेक परियोजनाएं हाथ में ली गई हैं, हमारा उद्देश्य देश के युवाओं को उनके विचारों से प्रेरित करने और उनसे सीख लेने की प्रेरणा देना है। मालवीय जी की जीवनी और साहित्यिक कार्यों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है, लोगों तक उनका संदेश पहुंचाने के लिए देश भर में अनेक संगोष्ठियां, व्याख्यान और प्रदर्शनियां आयोजित की जाएंगी।
उन्होंने कहा कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक मालवीय अध्ययन केंद्र स्थापित किया जाएगा, जिसमें मालवीयजी के लेखों का डिजीटल संग्रह होगा, जिनका पहली बार संकलन किया गया है, हमने उनकी स्मृति में पीठ, छात्रवृत्तियां और शिक्षा संबंधी पुरस्कार स्थापित करने की योजना भी बनाई है, उम्मीह है कि पंडित मदन मोहन मालवीय की बहुमुखी प्रतिभा और आधुनिक इतिहास के निर्माण में उनके जबरदस्त योगदान को याद किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को बनाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए हैं, जिसके वे चार बार निर्वाचित अध्यक्ष बने। मालवीय जी ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल और बाद में सेंट्रल लेजिस्लेटिव काउंसिल की 14 साल सेवा की। वे एक जोशीले वक्ता थे और उन्होंने रालेट विधेयक के खिलाफ इम्पीरियल काऊंसिल में साढ़े चार घंटे का भाषण देकर बौद्धिक वीरता का परिचय दिया था।
पंडित मालवीय 1924 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी रहे। इसी दौरान अख़बार का हिंदी संस्करण भी शुरू किया गया। उन्होंने रथ यात्रा के दिन कलाराम मंदिर में दलितों का प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाया। वह 1918 के शाही औद्योगिक आयोग के सदस्य थे, जहां उन्होंने विदेशों से आयात में भेदभाव के खिलाफ भारतीय उद्योगों को संरक्षण देने की जोरदार वकालत की। उन्होंने बहुत थोड़े समय में अनेक उपलब्धियां हासिल कीं। मालवीयजी के बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यह उचित है कि हम उस महान व्यक्ति को श्रद्धाजंलि दें, जिसने आजादी की विशाल इमारत की आधारशिला रखी, महान देशभक्त, स्वप्नद्रष्टा और राष्ट्र निर्माता को इससे बड़ी श्रद्धाजंलि और क्या होगी? मनमोहन सिंह ने मंगलवार को समारोह पूर्वक पंडित मदन मोहन मालवीय की 150वीं जयंती पर स्मरणोत्सव मनाने के लिए वर्ष भर लंबे कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मालवीय जी के आदर्शों और उपलब्धियों को व्यापक तौर पर और अधिक सुलभ बनाने के लिए उनके स्मरणोत्सव के रुप में परियोजनाओं की विस्तृत श्रृंखला की शुरुआत की गई है।
पंडित मालवीय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए संस्कृति और आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्री कुमारी सैलजा ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। सांसद डॉ कर्ण सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति का भी गठन किया गया है। डॉ कर्ण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति उन्हें यादकर श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ‘महामना मालवीय के स्मरणोत्सव जीवनी’ और ‘महामना मालवीय पर स्मरणोत्सव पुस्तक’ जारी की। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की उपस्थिति में प्रधानमंत्री ने उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया। इस मौके पर राष्ट्रीय समिति और राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति के सदस्य भी उपस्थित थे।