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हैदराबाद। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने हैदराबाद के गाछीबावली स्थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यायल में ‘इस्लामिक कला एवं संस्कृति’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं यहां मिश्रित भावों के साथ आया हूं, मैं ऐसे महत्वपूर्ण विश्व पर बोलने के लिए आमंत्रण पाकर गौरवान्वित हूं, विषय की गूढ़ता से डरा भी हूं और अपनी अल्पज्ञता के प्रति गंभीर भी हूं, इसलिए मैं दो दोहों का सहारा लेना चाहूंगा जो सदियों से गंभीर आधार रखते रहे हैं-
बा नाम-ए-खुदावन्द जां आफरीं
हकीम-ए-सुखां दर जुबां आफरीं
खुदा वन्द बख्शंदा-ए-दस्तगीर
करीम-ए-खता बख्श पोजिश पज़ीर
यह विषय काफी विशाल है, लगभग अस्पष्ट भी है, इसमें सबसे बेहतर यही हो सकता है जिसमें कुछ अति महत्वपूर्ण बिन्दुओं को छुआ जाए। इस्लाम सदियों से भारतीय भूभाग का एक हिस्सा रहा है और इस पर उसका बड़ा प्रभाव है और कई मामलों में वह प्रभावित भी हुआ है। इसका बहुत बड़ा कारण भारतीय संस्कृति की अनूठी प्रकृति है।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ो से यांत्रिक निकटता के बहुत प्रमाण नहीं मिलते हैं। इस्लाम एक विश्वास है, यह विचारों और व्यवहार का एक निकाय है, यह भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में मानवीय विमर्श के माध्यम से भारत पहुंचा है। यह समय के साथ और ‘सामाजिक तथा राजनीतिक नियंत्रण से परे रह कर’ स्थापित हुआ है।
उपराष्ट्रपति ने यहां विश्व उर्दू संपादक सम्मेलन का भी उद्घाटन किया और कहा कि यह सर्वविदित है कि प्रत्येक प्रकाशन का लक्ष्य प्रमाणिक समाचार अथवा जानकारी के विषय में रुचि रखने वाले विभिन्न आयु वर्गों के कुछ निश्चित लोगों के समूह पर केन्द्रित रहता है, उर्दू प्रकाशन के मामले में यह बात उन लोगों पर निर्भर करती है जिन्हें इस भाषा का ज्ञान हो। उन्होंने कहा कि यहां पर परेशानी यह है कि कुल जनसंख्या में वृद्धि के बावजूद उर्दू बोलने वाले लोगों में कमी हुई है, इसमें अधिकतर युवा आयु वर्ग के लोग शामिल हैं, इसका एक कारण यह है कि समाचारपत्रों का ध्यान खास तौर पर बुजुर्ग आयु वर्ग के लोगों पर केंद्रित होता है, जिम्मेदार प्रकाशन उर्दू भाषा में समकालीन मुद्दों की दिशा में पाठकों की रुचि बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास कर सकते हैं।