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अयोध्या। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय ने कहा है कि मजहब के आधार पर आरक्षण की घोषणा संविधान प्रदत्त नहीं है, यह आरक्षण एक और विभाजन का रूप ले सकता है, मुस्लिम समाज को यह समझना होगा कि वह बिकाऊ न बने। चंपत राय कारसेवकपुरम में प्रमुख पदाधिकारियों के बीच अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा जिन महापुरूषों ने संविधान की रचना की है, यहां तक कि प्रथम प्रधानमंत्री ने भी धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कभी समर्थन नहीं किया, लेकिन दुर्भाग्य है कि यूपीए सरकार ने धर्म आधारित आरक्षण की घोषणा कर देश एवं संविधान को तार-तार कर दिया।
चंपत राय ने कहा कि इससे समाज में घृणा का भाव पैदा होगा, अल्पसंख्यकों में जैन, बौद्ध, पारसी, सिख भी आते हैं, परंतु उनमें वर्गीकरण नहीं हैं, कहने का तात्पर्य यह है कि यह आरक्षण केवल मुस्लिम समाज के तुष्टिकरण के लिए है, इसलिए मुस्लिम समाज को समझना चाहिए कि राजनीतिक तुष्टिकरण के चलते, मुस्लिम समाज का बाजारूकरण कर दिया गया है, वह बाजारू न बनें, मुस्लिम समाज को आरक्षण पर आत्ममंथन करना चाहिए। उन्होंने सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा पर भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि यह कानून सांप्रदायिकता को रोकने वाला नहीं, बल्कि उन तत्वों को बढ़ावा देने वाला होगा, जो राष्ट्र में हिंसात्मक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं।
उन्होंने अयोध्या में कुछ दिनों पहले श्रीराम जन्मभूमि परिसर में तुलसी के पौधे उखाड़े जाने के प्रकरण पर भी क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि उसे झाड़-झंखाड़ नहीं समझना चाहिए, प्रभु श्रीराम और हिंदू समाज के अन्य देवी-देवताओं के भोग में प्रसाद में प्रयुक्त होने वाली तुलसी हिंदू समाज के लिए देवतुल्य है। चंपत राय ने कहा कि तुलसी को झाड़-झंखाड़ कह कर उसे उखड़वाने की सलाह देना, किसी सिरफिरे के दिमाग की ही उपज हो सकती है, शासन-प्रशासन को इस मामले में सावधानी बरतनी चाहिए और समस्या का समाधान करना चाहिए।
इस अवसर पर विहिप के केंद्रीय मंत्री पुरूषोत्तम नारायण सिंह, कारसेवकपुरम् प्रभारी प्रकाश अवस्थी, सुरेंद्र सिंह, वीरेंद्र कुमार आदि उपस्थित थे। इससे पूर्व विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री बने चंपत राय का अयोध्या आगमन पर रेलवे स्टेशन पर वशिष्ठ पीठ के महंत डॉ राघवेश दास वेदांती के नेतृत्व में स्वागत किया गया। इस अवसर पर प्रकाश अवस्थी, रामलला के सखा त्रिलोकी नाथ पांडेय, शरद शर्मा, अशोक पाठक, आचार्य इंद्रदेव, दुर्गा प्रसाद, राम शंकर, राधे श्याम गुप्त, पवन तिवारी आदि उपस्थित रहे।