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नई दिल्ली। गुरूवार को नई दिल्ली में विश्व संस्कृत सम्मेलन शुरू हुआ। अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत अध्ययन एसोसिएशन ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से इसका आयोजन किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सम्मेलन की अध्यक्षता की और अपना भाषण अंग्रेजी में दिया, लेकिन शुरू में हिंदी में बोलते हुए उन्होंने कहा-संस्कृत भारत की आत्मा है, इसलिए मुझे आज इस सम्मेलन में शामिल होकर बहुत खुशी प्राप्त हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत अध्ययन एसोसिएशन का गठन, 1972 में नई दिल्ली में हुए अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में हुआ था, जिसे भारत सरकार ने यूनेस्को के साथ मिलकर प्रायोजित किया था, अपनी स्थापना के बाद से यह एसोसिएशन हर तीन वर्ष में विश्व संस्कृत सम्मेलन आयोजित कर रही है, इसके तीन पिछले सम्मेलन भारत में हुए हैं, यह वास्तव में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संस्कृत विश्व की प्राचीनतम जीवित भाषाओं में से एक है, परंतु प्राय: इसके बारे में गलत धारणा है कि यह केवल धार्मिक श्लोकों और रस्मों की ही भाषा है, इस प्रकार की भ्रांति न केवल इस भाषा की महत्ता के प्रति अन्याय है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है के हम कौटिल्य, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्म ज्ञुप्त, भास्कराचार्य जैसे अनेक लेखकों, विचारकों, ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों के महान कार्य से अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में संस्कृत एक भाषा से कहीं अधिक है, यह एक पूर्ण ज्ञान प्रणाली है, जिसमें प्राचीन भारत की महान विद्या-प्रणालियों का समावेश है। जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि संस्कृत भाषा और साहित्य एक महान निधि है, जो भारत के पास है, यह एक शानदार विरासत है, जब तक यह रहेगी और भारतीय जनमानस को प्रभावित करती रहेगी, तब तक भारत की मूल प्रतिभा समृद्ध होती रहेगी। उन्होंने कहा कि संस्कृत में न केवल विश्व साहित्य के महान ग्रंथ हैं, बल्कि इसमें गणित, चिकित्सा, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र, कला और मानविकी के ज्ञान का कोष भी है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि यदि हम लुप्त संपर्कों की खोज कर लें और आवश्यक बहु-विषयक पद्धतियों को विकसित करें, तो संस्कृत के ज्ञान में इतनी क्षमता है कि वह वर्तमान समय की ज्ञान प्रणालियों और भारतीय भाषाओं को बहुत अधिक समृद्ध कर सकती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा उन मूल्यों और आदर्शों का भी स्रोत रही हैं, जिन्होंने हजारों वर्षों से भारत के अस्तित्व को कायम रखा है, भारत की महान सभ्यता की तरह संस्कृत किसी जाति वर्ग या धर्म से संबंधित नहीं है, यह एक ऐसी संस्कृति का प्रतीक है, जो संकीर्ण और भेद-भाव पूर्ण नहीं है और खुली, सहिष्णु और सर्व-समावेशी है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र चिंतन करने वाले ऋषि-मुनि और विचारक, जिन्होंने वेदों और उपनिषदों में अपनी दूर-दृष्टि और दर्शन की व्याख्या की है, वे अपने जीवन और दर्शन के प्रतिकूल पक्षों में भी संतुलन कर सकते थे, उदारवाद और सहिष्णुता की यही भावना है, जो संस्कृत में निहित है और जिसे हमें अपने आज के जीवन में अपनाना चाहिए, भारत के ऋषि-मुनियों का वसुधैव कुटुंबकम, अर्थात विश्व एक परिवार है, का संदेश आज विश्व के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सरकार संस्कृत के संवर्धन और विकास के लिए प्रतिबद्ध है, सरकार की स्थापित तीन संस्थाएं-राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ सक्रियता से इस कार्य में लगी हुई हैं। संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए इन संस्थाओं ने लचीले और अनौपचारिक संस्कृत पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। ये संस्थाएं परंपरागत संस्कृत पाठशालाओं में व्यवसायिक पाठ्यक्रम भी चलाती हैं, ताकि संस्कृत के छात्रों को रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें। महर्षि संदीपन राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, वैदिक अध्ययनों की श्रुति परंपरा को आगे बढ़ाने और इसके विकास और संरक्षण के कार्य में प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहन देने के लिए और भी कई उपाय किये जा रहे हैं, जिनके अंतर्गत ऐसे आधुनिक विद्यालयों को, जहां संस्कृत एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है और परंपरागत संस्कृत विद्यालय, जहां आधुनिक विषय पढ़ाए जाते हैं और स्वयं सेवी संगठन, जो परंपरागत संस्कृत संस्थाओं को चला रहे हैं, उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से विश्वविद्यालयों के संस्कृत विभागों को आर्थिक सहायता दे रहा है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं सहित संस्कृत साहित्य के प्रकाशन और दुर्लभ पुस्तकों के पुन: प्रकाशन के लिए भी आर्थिक सहायता दी जाती है, संस्कृत के अध्ययन में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले विद्वानों को भी हर वर्ष सम्मानित किया जाता है, हम संस्कृत के संवर्धन, विकास और समृद्धि के लिए अपने प्रयासों को आने वाले समय में और भी मजबूत करेंगे। सम्मेलन में भाग लेने वाले विद्वान अगले छह दिनों में विविध प्रकार के विषयों पर मंथन करेंगे। इनमें काव्य, नाट्य और नीति शास्त्र, वैज्ञानिक साहित्य, बौद्ध अध्ययन, जैन अध्ययन, संस्कृत, क्षेत्रीय भाषाएं, साहित्य और वेद शामिल हैं। सम्मेलन में होने वाले विचार विमर्श से न केवल संस्कृत अध्ययनों के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में बेहतर समझ बनेगी, बल्कि भारतीय संस्कृति मूल्यों, आदर्शों और विश्व के प्रति हमारे दृष्टिकोण के बारे में भी बेहतर समझ विकसित होगी।
मनमोहन सिंह ने कहा कि कई आधुनिक भारतीय भाषाएं अपने शब्दकोष के लिए संस्कृत पर निर्भर करती हैं, भारत सरकार स्थापित वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग भी भारतीय भाषाओं के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिए संस्कृत के साधनों पर निर्भर करता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन, भारतीय भाषाओं की शिक्षा के लिए बेहतर उपकरण, बेहतर अनुवाद सॉफ्टवेयर और भारतीय भाषाओं में अन्य कंप्यूटर कार्यक्रम तैयार करने में सहायक होगा एवं आप में से प्रत्येक, अपनी रुचि के विशिष्ट क्षेत्र के बारे में बेहतर समझ के साथ इस सम्मेलन से वापस लौटेगा, परमात्मा आपके मार्ग को प्रशस्त करे।