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भोपाल। कवि-फिल्मकार अनिल गोयल के अनूठे रचनात्मक प्रयोग ‘बिटिया की चिठिया’ के माध्यम से बेटी के महत्व को चित्रों और कविताओं के जरिए दर्शाया गया है। बावन कविता पोस्टर्स का यह अनूठा समागम भोपाल हाट परिसर में चल रहे ‘शरद मेले’ में दर्शकों को न केवल लुभा रहा है, बल्कि प्रेरक भी लग रहा है। बेटियों के विविध रंगों, मनःस्थिति, लालसाओं, उपलब्धियों और संघर्षों को सरल-सहज शब्दों और छायाचित्रों के माध्यम से व्यक्त करती यह नयनाभिराम प्रदर्शनी अनेक नगरों में प्रदर्शित और सराही जा चुकी है। इस मौके पर प्रकाशित ‘बिटिया की चिठिया’ और ‘माँ’ पर मार्मिक पुस्तक ‘उसी चौखट से’ भी आगंतुकों ने पसंद की है।
दस जनवरी तक दोपहर 2 से रात्रि 9 बजे तक चलने वाली इस संवेदनशील प्रदर्शनी को बड़ी संख्या में युवाओं का प्रतिसाद मिल रहा है, वे सभी कविताओं के मनोभावों से अपने आपको जोड़ने-परखने की कोशिश भी करते हैं। इन कविता पोस्टर्स में सीधे दिलो-दिमाग़ को चोट करने, झकझोरने वाली पंक्तियां हैं। वे दर्शकों से बतियाती, चोट करती, गुहार लगाती और बेटियों से होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार और दुर्व्यवहार, भेदभाव और उपेक्षा के प्रति गहरा रोष, क्षोभ, नाराजगी जताती हैं। चौपाल से भोपाल तक की बेटियों की महक, घर-परिवार, समाज में ही नहीं प्रकृति-पर्यावरण और दुनिया को बचाने, उन्हें खुशहाल बनाने में बेटियों की अनिवार्यता, मानव समाज में ही उनके समानुपात, भेदभाव रहित व्यवहार करने को अनूठे अंदाज में व्यक्त किया गया है।
अनिल गोयल ने अपनी पंक्तियों में विलुप्त होते पर्यावरण, पर्वत-पहाड़, नदी, जल, पक्षी, जानवर आदि के साथ ही रिश्तों की घटती महत्ता, उनको अपमानित करने की साजिश पर अपने ही अंदाज में गहरी चोट की है। जैसे ‘धीरे-धीरे हो रहीं विलुप्त/बेटियां जैसे परिंदा हैं’, ‘ईमानदारी की तरह/ खत्म हो रही बेटियां’, ‘महंगाई-सी बढ़ रही/भ्रूण हत्याएं’ या ‘यूं खत्म होती जा रहीं/ज्यूँ धर्म और ईमान हैं’ या ‘जनसंख्या के आंकड़े से/दर्ज हो रहे बलात्कार’। कविताओं की कई पंक्तियों जैसे ‘गर्भ से लेकर यौवन तक/मुझ पर लटक रही तलवार’, में सटीक मुहावरे-से, तीखे तेवरों वाले शब्दों से स्त्री के बदहाल जीवन का दर्दीला चित्रण भी उभर कर सामने आया। अनिल गोयल की ‘बेटियां मौसम सुहाना/बेटियां मीठा तराना। बेटियों की किलक, जैसे/हो लता का गुनगुनाना’ बेहद पसंद की जा रही है।