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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री ने कुपोषण दूर करने के लिए उन जिलों पर ध्यान केंद्रित किये जाने की जरूरत बताई है जहां परिस्थितिवश कुपोषण जारी है और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सफाई सुविधाओं की कमी है। नई दिल्ली में भूख और कुपोषण (हंगर एंड मैलन्यूट्रिशन-हंगामा) पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए मनमोहन सिंह ने यह बात कही। इस रिपोर्ट की सराहना करते हुए उन्होंने कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म का मामला बताया और कहा कि सकल घरेलू उत्पाद में शानदार वृद्धि के बावजूद हमारे देश में कुपोषण का स्तर बहुत ज्यादा है, जो स्वीकार्य नहीं है। अगली पीढ़ी को भावी शिक्षक, किसान, डाटा ऑपरेटर, दस्तकार और सेवा प्रदाता बताते हुए उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था और समाज की भलाई के लिए अगली पीढ़ी का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। मनमोहन सिंह ने कहा कि सर्वेक्षकों ने नौ राज्यों के 112 जिलों के 73000 घरों में जाकर उपयोगी जानकारी इकट्ठी की और यह रिपोर्ट तैयार की, जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
मनमोहन सिंह ने इस बात पर चिंता प्रकट की कि देश के 42 प्रतिशत बच्चे जन्म के समय कम वज़न वाले होते हैं, जो कुपोषण का संकेत है। उन्होंने इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के बारे में कहा कि वे चिंताजनक भी हैं और उत्साहित करने वाले भी। इस सिलसिले में उन्होंने अपनी अध्यक्षता वाली भारतीय पोषण चुनौतियों संबंधी राष्ट्रीय परिषद की पिछली बैठक की चर्चा की और कहा कि इस परिषद ने स्थिति में सुधार के लिए एक कार्य योजना बनाने का फैसला किया था, जिसके अनुसार 200 पिछड़े जिलों में बहु-क्षेत्री कार्यक्रम शुरू किये जाएंगे, महिला और बाल विकास सेवाओं को सुदृढ़ बनाया जाएगा, कुपोषण के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाएगा और कृषि विकास और अनुसंधान गतिविधियों को पोषण पर केंद्रित किया जाएगा। इसके अनुसार सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, पेयजल योजना, स्वास्थ्य और सफाई सेवाओं और खाद्य सुरक्षा विधेयक आदि को इसके अनुरूप बनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि संबद्ध मंत्रालय इन फैसलों को अमल में लाने के लिए जरूरी कार्रवाई कर रहे हैं। उम्मीद है कि जल्दी ही इसके अच्छे नतीजे दिखाई देंगे। प्रधानमंत्री ने हंगामा रिपोर्ट को इस बात का एक शानदार उदाहरण बताया कि कैसे अलग-अलग क्षेत्रों के लोग किसी अच्छे प्रयोजन के लिए एकजुट होकर काम कर सकते हैं। उन्होंने आशा प्रकट की कि इस रिपोर्ट से कुपोषण की चुनौती को समझने में मदद मिलेगी और इससे निपटने के लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सकेंगी।