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विकिरण से कैंसर का खतरा नहीं ?

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नई दिल्ली। परमाणु बिजलीघरों में काम करने वाले कर्मचारियों को कोई बीमारी, खासतौर से कैंसर होने का खतरा अन्‍य लोगों के मुकाबले ज्‍यादा नहीं होता। मी‍डिया से बात करते हुए टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक, डॉक्‍टर केएम मोहनदास ने कहा कि यह गलतफहमी दूर करना जरूरी है। एक अध्‍ययन का हवाला देते हुए उन्‍होंने कहा कि परमाणु बिजलीघरों या उनके आस-पास काम करने वाले लोगों को अन्‍य लोगों के मुकाबले विकिरण से होने वाले रोगों और खासतौर से कैंसर होने का डर ज्‍यादा नहीं होता। इस अध्‍ययन में परमाणु बिजलीघरों के पास 15 साल से काम कर रहे कर्मचारियों को शामिल किया गया था। यह अध्‍ययन भारत के परमाणु बिजली निगम लिमिटेड ने 1995 से 2010 की अवधि के लिए करवाया।
वैज्ञानिक अध्‍ययनों के अनुसार आम जनता में हर एक लाख आबादी पीछे साढ़े 98 लोगों को औसतन प्राकृतिक रूप से कैंसर की बीमारी होने की आशंका होती है। जिस समय डॉक्‍टर मोहन‍दास मीडिया से बातचीत कर रहे थे, राष्‍ट्रीय परमाणु बिजली निगम लिमिटेड के कार्मिकों ने कनाडा के 17700 कार्मिकों के बारे में किये गए अध्‍ययन से संबंधित रोचक बातें बताईं। उन्‍होंने कहा कि इन लोगों पर कई दशकों से नज़र रखी गई और पाया गया कि वे कनाडा के आम लोगों से ज्‍यादा स्‍वस्‍थ थे। यह आम लोगों के विश्‍वास और धारणा के विपरीत है। आम जन सोचते हैं कि परमाणु बिजलीघर के आस-पास के लोगों को कैंसर हो सकता है।
राष्‍ट्रीय परमाणु बिजली निगम के निदेशक एसए भारद्वाज ने स्‍पष्‍ट किया कि प्रकृति में हर जगह कैंसर के तत्‍व पाये जाते हैं, ये तत्‍व हमारे घरों में, पेयजल और खाने-पीने की चीजों में मौजूद होते हैं। एक और बात नोट करने लायक है कि पोटेशियम-40, रेडियम-226 और रेडियम-228 जैसे रेडियोएक्टिव तत्‍व प्राकृतिक रूप से मानव शरीर में भी पाए जाते हैं। भाभा ऐटमिक रिसर्च सेंटर का भारतीय पर्यावरण विकिरण मोनिटरिंग नेटवर्क देश भर में विकिरण की माप-जोख करता है। इनमें परमाणु बिजलीघरों के आस-पास के इलाके भी शामिल हैं। इस माप-जोख से तय हो गया है कि परमाणु बिजलीघरों के आस-पास होने वाला विकिरण भी संवेदनशील यंत्रों से मापा जा सकता है।
एनएपीएस के सर्टिफाइंग सर्जन, डॉक्‍टर आर देवलालीकर ने एक परमाणु बिजलघर के कर्मचारियों के स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी आंकड़े दिए। अध्‍ययन से पता चला कि एनएपीएस कर्मचारियों के बच्‍चों में जन्‍म से ही पाई जाने वाली विकृति सिर्फ 0.51 प्रतिशत होती, जबकि ऐसी विकृति मुंबई में 1.4 प्रतिशत पाई गई। माना गया कि परमाणु बिजलीघरों के आस-पास होने वाले विकिरण के बारे में लोगों को शिक्षित किया जा सकता है।

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