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नई दिल्ली। तीन दिन के अंतर्राष्ट्रीय हिंदी उत्सव का बारह जनवरी को सम्मान समारोह के साथ समापन हुआ। इसमें प्रसिद्ध साहित्यकार कुंवर नारायण ने देश-विदेश के हिंदी साहित्यकारों, विद्वानों को सम्मानित किया। उत्सव में भारत में बुल्गारिया के राजदूत कोस्तोव, प्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल, प्रसिद्ध शायर शीन काफ निज़ाम, इटली के प्रोफेसर श्याम मनोहर पांडेय, प्रवासी साहित्यकार उषा राजे सक्सेना ब्रिटेन, शैल अग्रवाल ब्रिटेन, अनिता कपूर अमरीका, दीपक मशाल उत्तरी आयरलैंड, स्नेह ठाकुर कनाडा, कैलाश पंत, महेश शर्मा, विमला सहदेव को पुरस्कृत किया। हिंदी विद्वानों को सम्मान प्रदान करते हुए कुंवर नारायण ने कहा कि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गहन अध्ययन और शोध की आवश्यकता है।
उन्होंने मध्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं के भारतीय ज्ञान को एशिया और दूरस्थ देशों में ले जाने को प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने पुस्तकें ले जाते बोद्ध भिक्षुओं को भारतीय संस्कृति का वाहक बताया और कहा कि उनकी हिंदी के प्रति निष्ठा और समर्पण की सराहना की जाए। रत्नाकर पांडेय ने इस अवसर पर आयोजकों, प्रवासी दुनिया, अक्षरम और हंसराज कॉलेज की सराहना करते हुए कहा कि हिंदी का विकास केवल सरकार के माध्यम से संभव नहीं है।
सम्मान समारोह के बाद अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन इस बार बालस्वरूप राही के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में था। कवि सम्मेलन में देश के प्रमुख कवियों उदय प्रताप सिंह, सुरेंद्र शर्मा, शेरजंग गर्ग, कुंवर बैचेन, नरेश शांडिल्य, सर्वेश चंदोसवी, आलोक श्रीवास्तव, अल्का सिन्हा और विदेश से उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, स्नेह ठाकुर, अनिता कपूर, दीपक मशाल आदि मौजूद थे। इनके काव्य पाठ से सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने देर रात तक आनंद लिया। इस अवसर पर बालस्वरूप राही के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाशित स्मारिका और उनकी और पुष्पा राही की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
सुबह के सत्रों में वर्ष 2050 में हिंदी और भारतीय भाषाएं विषय में हिंदी के भविष्य के संबंध में व्यापक विचार-विमर्श किया गया। असगर वजाहत ने चर्चा की शुरूआत करते हुए, विश्वविद्यालयों, अकादमियों, राजभाषा और गैर-सरकारी क्षेत्र में हिंदी की दुर्दशा का विश्लेषण किया। अभय दुबे ने हिंदी और भारतीय भाषाओं की पारिभाषा करते हुए कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा और राजभाषा नहीं अपितु संपर्क भाषा है। प्रभु जोशी ने हिंदी की दुर्दशा के लिए एक गहरे षड्यंत्र का उल्लेख किया, उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकारी अधिकारी, मीडिया और मैकालेपुत्र जिम्मेदार हैं। कैलाश पंत ने हिंदी के संबंध में सकारात्मक पक्षों की ओर ध्यान दिलाया। राहुल देव ने विचारोत्तेजक भाषण दिया, अपनी भाषा में अपना भविष्य और युवकों का भाषा के संबंध में बड़े बदलाव का आह्वान किया। बहुत से युवाओं ने इस अभियान से जुड़ने के लिए स्वयं को प्रस्तुत भी किया। अनिल जोशी ने इसके लिए संगठित प्रयास करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी का संस्थागत फ्रेमवर्क बहुत कमज़ोर है। तीन दिन का यह कार्यक्रम प्रवासी दुनिया, अक्षरम और हंसराज कॉलेज की ओर से किया गया था।
विदेशों में हिंदी शिक्षण विषय पर विचार व्यक्त करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर ने विदेशों में हिंदी शिक्षण की चुनौतियों पर सिलसिलेवार बात की और एकरूपता और मानकीकरण के संबंध मे किए जा रहे उपायों के संबंध में बताया। डॉ विमलेश कांति वर्मा ने अपनी सूरीनाम और त्रिनिडाड की यात्रा में आए अनुभव बांटे। डॉ श्याम मनोहर पांडेय ने इटली में 30 वर्षों के सुदीर्घ अनुभव के आधार पर शिक्षण की प्रविधियों की चर्चा की। वीरेंद्र भारद्वाज ने दक्षिण कोरिया के अपने अनुभवों का ब्यौरा दिया।