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नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों से संबंधित विभाग के सचिव आर गोपालन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दों और इसके प्रभावों से निपटने के लिए बहुत बड़े संसाधनों के साथ-साथ सुविधा संपन्न लोगों की जीवन शैली में बदलाव करने और निर्धन लोगों के जीवन यापन को सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है। गोपालन नई दिल्ली में 'जलवायु परिवर्तन वित्तीयन' पर आधारित एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला का आयोजन संयुक्त रूप से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने किया था। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में यूएन के स्थानीय समन्वयक एवं यूएनडीपी के स्थानीय प्रतिनिधि पैट्रिस कोयर-बिजॉट, वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ कौशिक बसु, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के विशेष सचिव जेएम मॉस्कर एवं वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार डॉ दीपक दास गुप्ता सहित अन्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ कौशिश बसु ने कहा कि विश्व जन समुदाय से जुड़ी हुई समस्याएं आज से ही नहीं हैं, बल्कि यह पहले से ही विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान और सहकारी संस्थाओं के निर्माण की चुनौतियां है। डरबन सम्मेलन के बाद और 12वीं पंचवर्षीय योजना के शुरू होने के पहले आयोजित यह कार्यशाला, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में हाल ही में बनाए गए जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई की दूसरी पहल को इंगित करती है, जिसमें कार्यशाला के सभी 4 सत्रों में नीति निर्धारक, संसद सदस्य, पेशेवर एवं कई शिक्षाविदों को जलवायु परिवर्तन वित्तीयन से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक मंच प्राप्त हुआ। होने वाले भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में पहली बार जलवायु परिवर्तन पर आधारित अध्याय को शामिल किया जाएगा, जिसमें पूरा अध्याय इसी विषय पर आधारित होगा और इस अध्याय में इस चर्चा के जरिए प्राप्त मुख्य बातों को भी शामिल किया जाएगा।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के विशेष सचिव मॉस्कर ने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन को कम करने और इसके अनुकूलन के लिए किए जा रहे जरूरी उपायों में लागत खर्च में कमी लाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ वित्तीय प्रणालियों के जरिए लागत खर्च का वहन निजी क्षेत्रों द्वारा किया जा सकता है, लेकिन अंतत: इसका भार उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि अनुकूलन लागत का वहन पूर्ण रूप से सार्वजनिक वित्तों के करने की आवश्यकता है, जिसमें वैश्विक वित्तीय स्थानांतरण (अनुदान, निम्न ब्याज दर ऋण) जैसे उपाय काफी अनुकूल होंगे। इस सत्र में भाग लेते हुए 'टेरी' के महानिदेशक डॉ आर के पचौरी के साथ-साथ डॉबी मुंगेकर, संसद सदस्य (राज्य सभा) ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से निटपने के लिए ज्ञान निर्माण और संतुलन पर जोर दिया।