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नई दिल्ली। भारत निर्वाचन आयोग, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के आरोपों के दबाव में आया दिखाई दे रहा है, मायावती के आरोपों पर आयोग के स्पष्टीकरण से तो यही स्पष्ट होता है। असल में यह आयोग की ठिलाई और उसके असमंजस का ही परिणाम माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में पार्कों और भवनों में सरकारी खर्चे से बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की प्रतिमाएं लगवाने वाली मायावती को चुनाव आयोग पर अवांछित आरोप लगाने का मौका मिला और चुनाव आयोग को मायावती के आरोपों पर सफाई देनी पड़ी है। मुख्य चुनाव आयुक्त के यह कहने भर से मायावती के आरोपों पर अंकुश नहीं लग जाता है कि मायावती भविष्य में सोच समझकर बोलें अपितु चुनाव आयोग को हाथी चुनाव चिन्ह के दुरूपयोग पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी। चुनाव आयोग के हाथी की प्रतिमाओं को ढकने के आदेश से मायावती को आरोप लगाने का बहाना और मौका मिल गया।
चुनाव आयोग में लगभग सभी राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों के दुरूपयोग के विरूद्ध अपीलें दाखिल हैं, मगर इन पर संक्षिप्त सुनवाई के अलावा चुनाव आयोग ने आगे कोई कदम नहीं बढ़ाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि बहुजन समाज पार्टी ने पूरी बेशर्मी के साथ सरकारी खर्चे पर पूरे प्रदेश में पार्कों एवं अन्य स्थानों पर अपने चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवा दीं। चुनाव आयोग ने माना भी है कि हाथी चुनाव चिन्ह के दुरूपयोग के संपूर्ण एवं गंभीर साक्ष्य मौजूद हैं, इसके बावजूद उसने चुनाव चिन्ह के दुरूपयोग के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। मुख्य चुनाव आयुक्त के हाथी की मूर्तियों को ढकने के आदेश से बसपा को लाभ ही हुआ है, मायावती ने साफ-साफ कहा तो है कि खुला हाथी एक लाख का और बंद हाथी सवा लाख का है। मायावती के इस कथन और चुनाव आयोग के ढुलमुल बयान से जनसामान्य में निराशा का वातावरण है। उम्मीद की जाती थी कि चुनाव चिन्ह के दुरूपयोग पर चुनाव आयोग दूसरों को भी ‘सबक’ के रूप में कार्रवाई करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी के दुरूपयोग पर चुनाव चिन्ह जब्त करने की कार्रवाई करने के बजाय बसपा अध्यक्ष मायावती के आरोपों का उत्तर देकर एक तरह से मायावती की धमकी या दबाव को स्वीकार किया है। देश के प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस, भाजपा या उत्तर प्रदेश के दूसरे प्रमुख राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्हों के दुरूपयोग के ऐसे अकाट्य साक्ष्य मौजूद नहीं हैं जितने कि हाथी चुनाव चिन्ह के साक्ष्य मौजूद हैं। देश में चुनाव आयोग ने कांग्रेस के दो चुनाव चिन्हों को दुरूपयोग मामले में बदला था। कांग्रेस के चुनाव चिन्हों इस प्रकार से पार्कों या सड़कों पर नहीं लगाया गया था जिस प्रकार मायावती ने हाथी चुनाव चिन्ह लगवाया हुआ है। हाथी की मुद्रा चाहे जो भी हो क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि वह हाथी नहीं है? क्या यह तर्क इतना पुष्ट है कि इससे हाथी अस्तित्व हीन हो जाता है?
चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों के विवाद या दुरूपयोग को किस प्रकार और किस समय निपटाता है? क्या तब जब चुनाव चिन्ह का दुरूपयोग हो चुका होता है? या तब जब उसका दुरूपयोग हो रहा होता है? उस वक्त चुनाव चिन्ह विवाद निपटाने या जब्ती की कार्रवाई का क्या महत्व रह जाता है जब उसका लाभ लिया जा चुका हो। क्या चुनाव आयोग को क्या यह नहीं मालूम कि बसपा सरकार अपने पार्कों में बड़े पैमाने पर हाथी की मूर्तियां लगवा रही है और वह उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ बसपा का चुनाव चिन्ह है? क्या और राज्यों में इस प्रकार चुनाव चिन्ह पंजा, कमल, साइकिल या अन्य क्षेत्रिय दलों के चुनाव चिन्ह भी मौजूद हैं? जब ऐसा नहीं है तो फिर हाथी चुनाव चिन्ह के दुरूपयोग का मामला चुनाव पूर्व ही क्यों नहीं निपटाया जा सका? यह सवाल लाखों लोगों का है जोकि चुनाव आयोग से है।
‘उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान सरकारी खर्च पर सार्वजनिक स्थानों पर लगी मायावती और उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की प्रतिमाओं को ढकने के चुनाव आयोग के 8 जनवरी 2012 के आदेश पर अवांछनीय टिप्पणियों को चुनाव आयोग ने गलत और गुमराह करने वाला बताया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि उसका आदेश स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए है और कानून के अनुसार है, ताकि कोई भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार नाजायज फायदा न उठा सके।’
गौर कीजिए कि मायावती के आरोपों पर चुनाव आयोग ने और क्या सफाई दी है-आयोग ने कहा है कि ‘उसका आदेश केवल उन राजनीतिक दलों के नेताओं के संबंध में है, जो अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं और पुराने नेताओं के बारे में नहीं है, इसलिए स्वर्गीय श्री कांशीराम और अन्य पार्टी के नेताओं की प्रतिमाओं को ढकने के आदेश नहीं दिए गए हैं। वास्तव में उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी कहा गया है कि अगर सरकारी खर्च से सार्वजनिक स्थानों पर कहीं किसी अन्य पार्टी के नेताओं की प्रतिमाएं लगीं हैं, तो वह इसकी जानकारी आयोग को दे, ताकि आवश्यक कार्रवाई की जाए।’
आयोग ने आगे कहा है कि ‘बहुजन समाज पार्टी की यह दलील भी स्वीकार करने योग्य नहीं है कि हाथियों की प्रतिमाएं उनके चुनाव चिन्ह हाथी से कुछ अलग हैं। आयोग का कहना है कि यदि यह बात मान ली जाए, तो अन्य राजनीतिक दल अलग-अलग मुद्राओं में हाथियों के चुनाव चिन्ह अपनी पार्टी के लिए मांग सकते हैं। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि गैर सरकारी खर्च से लगाई गई राजनीतिक नेताओं या चुनाव चिन्हों की प्रतिमाओं के लिए आयोग ने कोई आदेश नहीं दिया है। चुनाव आयोग ने यह बात दोहराई है कि आयोग अपने फैसले संविधान की व्यवस्थाओं के दायरे में लेता है और धर्म, जाति, नस्ल या समुदाय के आधार पर कोई फैसला नहीं लेता, जैसा कि आरोप लगाया गया है।’