श्याम नारायण श्रीवास्तव
रायगढ़। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने कहा है कि नये रचनाकारों को लिखने से अधिक पढ़ना चाहिए, वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ना, आत्मसात करना फिर लिखना ही एक मंत्र है, अधिकांशतः नया लेखक हड़बड़ी में रहता है, जबकि साहित्य की कोई भी विधा मुकम्मल समय मांगती है। विश्वरंजन रायगढ़ में पद्मश्री मुकुटधर पांडेय स्मृति युवा रचनाकार शिविर को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नये समय की अदृश्य चुनौतियों पर गंभीरता से विचार करना आज सभी युवा लेखकों का कर्तव्य होना चाहिए। मुख्य अतिथि प्रोफेसर रोहिताश्व ने कहा कि वे संस्थान के हर शिविर में आते रहे हैं, छत्तीसगढ़ में जिस तरह यह संस्थान नवागत लेखकों के लिए उद्यम कर रहा है, वह देश के बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों के भी वश की बात नहीं है।
संस्थान का यह तीसरा रचना शिविर था, जो 7 से 9 जनवरी तक चला। शिविर की शुरूआत रायगढ़ के युवा संगीतकार मनहरण सिंह ठाकुर और चंद्रा देवांगन के गाए महाकवि निराला के गीत से हुई। उद्घाटन सत्र का संचालन युवा लेखक श्याम नारायण श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने युवा रचनाकारों का आमंत्रित वरिष्ठ साहित्यकारों से परिचय कराया, जबकि स्वागत भाषण सुपरिचित आलोचक डॉ बलदेव ने दिया। संस्थान देश के युवा एवं संभावनाशील रचनाकारों विशिष्ट और वरिष्ठ साहित्यकारों के माध्यम से साहित्य के मूलभूत सिद्धान्तों, विधागत विशेषताओं, परंपरां और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण, स्थापित लेखक और उनकी रचनाधर्मिता से परिचित कराने की महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनपदों में निःशुल्क रचनाकार शिविर आयोजित कर रहा है।
शिविर के उद्घाटन अवसर पर 12 से अधिक कृतियों का विमोचन विमोचन हुआ, जिनमें फ़िराक़ गोरखपुरी पर केंद्रित एकाग्र कुछ ग़में जाना कुछ ग़में दौरा (विश्वरंजन) आलोचनात्मक कृति साहित्य की सदाशयता (जयप्रकाश मानस) ललित निबंध संग्रह परंपरा का पुनराख्यान (डॉ श्रीराम परिहार) छंद प्रभाकर (डॉ सुशील त्रिवेदी) छंद प्रभाकर (आचार्य जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित कृति-डॉ सुशील त्रिवेदी) बाल कविता संग्रह-मैना की दुकान (शंभु लाल शर्मा वसंत) व्यंग्य संग्रह-कार्यालय तेरी अकथ कहानी (वीरेंद्र सरल) हिंदी के प्रथम साहित्य-शास्त्री-जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' (डॉ सुशील त्रिवेदी) छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह (शिव कुमार पाण्डेय) गीत संग्रह (गीता विश्वकर्मा) संस्थान की त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका पांडुलिपि का पांचवा अंक, कविता संग्रह टूटते सितारों की उड़ान (लक्ष्मी नारायण लहरे) कविता संग्रह सुगीत कलश (भागवत कश्यप) आदि प्रमुख कृतियां हैं।
रचना शिविर में विभिन्न विषयों पर व्याख्यान हुए। समकालीन कविता: भाव, मूल्य और सरोकार व समकालीन कविता: शिल्प और संप्रेषणीयता सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठित आलोचक और गोवा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रोहिताश्व ने की। सत्र के प्रमुख वक्ता थे-बांदा से पधारे कवि नरेंद्र पुंडरीक, कोलकाता के कवि और आलोचक प्रफुल्ल कोलख्यान, भिलाई के कवि नासिर अहमद सिकंदर। संचालन का दायित्व अशोक सिंघई ने निभाया। सत्र का निष्कर्ष था कि प्रत्येक रचनाकार को अपने आसपास घट रही घटनाओं को निरंतर देखना चाहिए, उनमें मानवीय संवेदनाओं को तलाशना चाहिए, क्योंकि बिना भाव व संवेदना के कविता हो ही नहीं सकती, भाव के बिना कविता का कोई मूल्य नही है, निश्चय ही कविता का शिल्प भी उसकी संप्रेषणीयता में सहायक होता है।
छांदस विधाओं पर तीन सत्र निर्धारित थे। पहला-गीत: भाव और शिल्प, दूसरा-नवगीत: लघुक्षण में सघन भाव व्याकुलता और ग़ज़ल: हृदय का तनाव और भावाकृति। इस विषय पर अक्षत के संपादक और हिंदी के प्रतिष्ठित ललित निबंधकार डॉ राम परिहार (खंडवा) रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व रीडर और भाषाविद् डॉ चितरंजन कर, वरिष्ठ गीतकार एवं आलोचक श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी (फतेहपुर) कवि रवि श्रीवास्तव (भिलाई) वरिष्ठ शायर मुमताज (भिलाई) ने व्यापक मार्गदर्शन और रचनाओं का परीक्षण कर सुझाव दिया। सत्र का संचालन किया फैजाबाद के युवा रचनाकार अशोक कुमार प्रसाद ने। बालगीत: बाल मन की समझ और सहज संप्रेषणीयता जैसे नये विषय पर बाल साहित्य की तमाम बारीकियों पर एक सार्थक बहस हुई, जिसकी अध्यक्षता दिल्ली से आमंत्रित वरिष्ठ बाल साहित्यकार रमेश तैलंग ने की और प्रमुख वक्ता थे-शंभू लाल शर्मा बसंत, प्रफुल्ल कोलख्यान। रमेश तैलंग का मानना था कि बाल साहित्य की रचनाओं में उद्देश्य पूर्ण रूप से निहित होना चाहिए और हमें प्राचीन परंपरा से आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि आज के बच्चे विज्ञान और तकनीकी के परिवेश में पल रहे हैं। सत्र का संचालन डॉ चितरंजन कर ने किया।
कहानी विधा पर दो सत्र निर्धारित किये गये थे। कहानी कथा वस्तु और विविध शिल्प और कहानी मूल्य और सरोकार। इस महत्वपूर्ण विषयों पर डॉ रोहिताश्व, प्रफूल्ल कोलख्यान, श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी आदि ने कथाओं के शिल्प और कथ्य में हुए परिवर्तन और विकास पर सिलसिलेवार जानकारी देकर कई कहानियों का अनुशीलन किया। रायगढ़ के तीन वरिष्ठ कवियों-जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल, गुरुदेव कश्यप, ईश्वर शरण पांडेय को सुदीर्घ साहित्य साधना के लिए प्रमोद वर्मा साधना सम्मान से अंलकृत किया गया। उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह और संस्थान से प्रकाशित दो हजार रुपए की साहित्यिक कृतियां भेंट कर सम्मानित किया गया।
कविता पाठ की बारीकियों से परिचित कराने के लिए वरिष्ठ और नवागत रचनाकारों के लिए दो दिन रचना पाठ का आयोजन भी किया गया, जिसमें जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल, डॉ रोहिताश्व, विश्वरंजन, प्रफुल्ल कोलख्यान, डॉ राम परिहार, मुमताज, नरेंद्र पुंडरीक, रमेश तैलंग, डॉ सुशील त्रिवेदी, नरेंद्र श्रीवास्तव, डॉ चित्तरंजन कर, विजय राठौर, जयप्रकाश मानस, राम लाल निषाद, राम किशन डालमिया, शंभूलाल शर्मा आदि ने अपनी रचनाओं से नये रचनाकारों को शिल्प, भाव व सरोकार के प्रति सजग किया। एक अलग सत्र में 40 से अधिक युवा रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिसमें कुमार वरुण, रमेश कुमार सोनी, कंदर्प कर्ष, कृष्णकुमार अजनबी, श्याम नारायण श्रीवास्तव, अंजनी कुमार अंकुर, अमित दूबे, ललित शर्मा, श्लेष चंद्राकर, मोहम्मद शाहिद, कमल कुमार स्वर्णकार, गीता विश्वकर्मा, आशा मेहर किरण, वाशिल दानी, प्रमोद सोनवानी, देवकी डनसेना,बनवारी लाल देवांगन आदि प्रमुख हैं।
आयोजन को सफल बनाने में स्थानीय युवा लेखक श्याम नारायण श्रीवास्तव, केके स्वर्णकार, अंजनी कुमार अंकुर के अलावा कमल बहिदार, कंदर्पकर्ष, सुजीत कर, सनत चौहान, नील कमल वैष्णव, बसंत राघव, लक्ष्मी नारायण लहरे, शिवकुमार पांडेय, प्रभात त्रिपाठी, शिव शरण पाण्डेय, गिरिजा पांडेय, किशन कुमार कंकरवाल ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। समापन समारोह में संस्थान के अध्यक्ष व कार्यकारी निदेशक की ओर से सभी प्रतिभागियों को प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया।