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नई दिल्ली। वस्त्र मंत्रालय ने अपनी उपलब्धियों में एक नया अध्याय जोड़ा है और इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड में वह पहली बार भारतीय हस्तशिल्प पर एक झांकी प्रस्तुत करने जा रहा है। मंत्रालय ने अन्य 9 झांकियों के साथ भारतीय हस्तशिल्प की झांकी को भी चुना है। वस्त्र मंत्रालय में हथकरघा विकास आयुक्त एसएस गुप्ता, राष्ट्रीय डिजाइन और उत्पाद विकास केंद्र के कार्यकारी निदेशक आरके श्रीवास्तव और हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी।
गणतंत्र दिवस परेड के लिए 25 मंत्रालयों ने झांकी प्रदर्शित करने के लिए आवेदन किया था। परेड में, भारतीय हस्तशिल्प की झांकी को 14वें स्थान पर प्रदर्शित किया जाएगा। इस झांकी में भारतीय हस्तशिल्प को प्रदर्शित किया गया है और यह संदेश दिया गया है कि हालांकि भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र एक असंगठित क्षेत्र है और श्रम प्रधान विकेंद्रीकृत उद्योग है, फिर भी यह ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में 7 मिलियन से अधिक कारीगरों को रोजगार प्रदान करता है। हस्तशिल्प भारतीय निर्यात का काफी बड़ा हिस्सा है और निर्यात में उसका अंशदान प्रत्येक वर्ष बढ़ रह है।
हस्तशिल्प क्षेत्र न केवल सतत् आधार पर भारत के लिए विदेशी मुद्रा का अर्जन करता है, बल्कि इसने उत्पादों की शृंखला, कंपनियों की संख्या और निर्यात के मूल्य के क्षेत्र में भी प्रगति की है। वर्ष 2010-11 में हस्तशिल्प निर्यात 10,534 करोड़ रूपए तक पहुंच गया है, जबकि इसी वर्ष उत्पादन 17,557 करोड़ रूपए मूल्य का था। इस झांकी में हस्तशिल्प के स्रोत, निर्माण, खुदरा व्यापार और निर्यात की पूरी प्रक्रिया प्रदर्शित की गई है। झांकी में 10 कारीगर अपने शिल्प का प्रदर्शन कर रहे हैं तथा इसमें अन्य 32 शिल्प वस्तुओं को भी प्रदर्शित किया गया है।
इस क्षेत्र पर ध्यान दिए जाने और देश के लोगों के जीवन और स्वयं कारीगरों की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही इस झांकी को चुना गया है। झांकी की अवधारणा और डिजाइन राष्ट्रीय अभिकल्प और उत्पाद विकास केंद्र ने तैयार की है जो विकास आयुक्त (हस्तशिल्प), वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार का राष्ट्रीय स्तर का एक डिजाइन केंद्र है, और यह भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र में डिजाइन और उत्पाद विकास के क्षेत्र की कमी को पूरा करता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान हस्तशिल्प में व्यापक विविधता और उत्पाद में नयापन आया है, उत्पाद को अनुकूल बनाया गया है और उसका विकास हुआ है, अब बनाए और निर्यात किए जा रहे उत्पाद न केवल उपहार और सजावटी होते हैं, बल्कि काफी बड़ी मात्रा में उपयोग में आने वाली वस्तुएं जीवन शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा भी होती है। विगत में आभूषण सर्वाधिक पारंपरिक, ऊंचे मूल्य वाले जड़ाऊ हस्तशिल्प हुआ करते थे, अब हस्तशिल्प आभूषणों का समकालीन डिजाइनों के अनुरूप बनाकर उनका निर्यात किया जाता है।
विकास आयुक्त कार्यालय (हस्तशिल्प) ने भारतीय हस्तशिल्प को अपनी विभिन्न प्रमुख योजनाओं जैसे बाबा साहिब हस्तशिल्प विकास योजना, डिजाइन और प्रौद्योगिकी उन्नयन योजना, विपणन सहायता सेवाएं, मानव संसाधन विकास, हस्तशिल्प कारीगर कल्याण योजना और अनुसंधान एवं विकास योजना के जरिए विकसित किया है और उसमें परिवर्तन भी किया है। विभिन्न योजनाओं, मीडिया एवं कार्यक्रमों, व्यापक उत्पाद एवं डिजाइन विकास, प्रशिक्षण, संवर्धन, प्रचार और विपणन पर विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) के दृष्टिकोण से निर्यात को बनाए रखने और उसे बढ़ाने में मदद मिली है। आज हस्तशिल्प न केवल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बल्कि भारतीय खुदरा बाजार में भी उपभोक्ताओं के दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया है।
बारहवीं पंचवर्षीय योजना में बेहतर दृष्टिकोण और रणनीति से हस्तशिल्प क्षेत्र में व्याप्त कमियां पूरी हो जाएंगी, और हस्तशिल्प क्षेत्र जो जादुई हाथों का करिश्मा है, रोजगार सृजन, आय सृजन, वस्तुओं के अधिक उत्पादन और आपूर्ति के कारण आजीविका में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए उभरता क्षेत्र बन जाएगा। प्रमुख पहलों में दक्ष और प्रशिक्षित जनशक्ति उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्र स्तरीय शिल्प विश्वविद्यालय की स्थापना करना, उत्पादन प्रक्रिया में सुधार के लिए समूहों में उन्नत प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करना, अवसंरचना के एकीकृत और समग्र विकास के लिए हस्तशिल्प बनाना शामिल है। डिजाइन और नए उत्पाद विकास पर जोर दिया जाएगा और नीतियों का लक्ष्य बाजारों और केंद्रित समूहों पर रहेगा।