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खमलियाना और अब्दुल बारी को सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार

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नई दिल्ली। मिजोरम से खमलियाना और ओडिशा से मोहम्मद अब्दुल बारी का चयन संयुक्त रूप से वर्ष 2011 के राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार के लिए गया है। व्यक्तिगत वर्ग में पुरस्कार के लिए इनका चयन किया गया है। भारत के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की अध्यक्षता में एक निर्णायक समिति ने यह निर्णय लिया। वर्ष 2011 के लिए, यह पुरस्कार प्रदान करने के लिए निर्णायक समिति ने किसी संगठन को उपयुक्त नहीं पाया।
पैसठ वर्षीय खमलियाना मिजोरम यूथ क्लब के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इस क्लब की स्थापना वर्ष 1990 में की गई थी। यह क्लब मिजोरम में समाज सेवा और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए तत्पर सुप्रसिद्ध, स्वंयसेवी संगठन है। खमलियाना शांति, सांप्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध और समर्पित हैं, विभिन्न वर्गों के बीच एकता और शांतिपूर्ण सामंजस्य के लिए उन्होंने अनेक संगीत कार्यक्रमों, निबंध प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन किया है, इनमें से अधिकांश आयोजन मिजोरम यूथ क्लब के बैनर तले किया गया है।
राज्य में नागरिकों और सेना के बीच परस्पर संबंधों का निर्माण करने के लिए वर्ष 2000 में, सेना परिसर में सामाजिक कार्यक्रम का आयोजन करने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। इस आयोजन के लिए उन्हें काफी सराहना भी प्राप्त हुई। नेहरु युवा केंद्र के साथ मिलकर इन्होंने बहुत सारे राष्ट्रीय एकीकरण शिविरों में भागीदारी करने के साथ ही इन शिविरों का आयोजन भी किया है। खामलियाना के प्रभावी नेतृत्व, गहरी रुचि और प्रयासों के कारण मिजोरम यूथ क्लब शांति और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सका है।
ओडिशा के भद्रक जिले के 72 वर्षीय मोहम्मद अब्दुल बारी सम्मानित जन नेता और समाजिक कार्यकर्ता हैं। वह कम से कम आठ सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और शांति एवं सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखने के लिए उन्होंने समय-समय पर पुलिस और स्थानीय प्रशासन की निःस्वार्थ भाव से मदद की है। बारी ने भद्रक में सांप्रदायिक दंगों (1991), बाबरी मस्जिद ध्वंस के समय (1992), मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाको (1993), गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के जलने (2002) और कंधमाल जिले में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की अमानवीय हत्या (2008) के बाद भद्रक में शांति और सांप्रदायिक सद्भावना कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, हाल ही में, वर्ष 2011 में ईद-मिलादुन-नबी और राम नवमी उत्सव के दौरान भद्रक शहर में सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाने में भी उन्होंने मदद की। भद्रक रोटरी क्लब से उन्हें उत्कल दिवस पुरस्कार (2002) प्रदान किया गया, इसके अलावा बारी को मुरलीधर श्रुति संशद, भद्रक पुरस्कार (2005) और अनेक सराहना पत्रों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सांप्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत स्थापित स्वायत्त संगठन राष्ट्रीय ‘सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान (एनएफसीएच)’ ने वर्ष 1996 में राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावाना पुरस्कारों की शुरुआत की गई। सांप्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तियों और संगठनों के लंबे समय तक किए गए प्रयासों की सराहना और उन्हें पहचान देने के लिए इस पुरस्कार की शुरुआत की गई। पुरस्कार के तहत प्रत्येक वर्ग में प्रशस्ति पत्र के अलावा व्यक्तिगत वर्ग में दो लाख रूपए और संगठन वर्ग में पांच लाख रूपए की नकद राशि प्रदान की जाती है।

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