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नई दिल्ली। देश में करीब 4.50 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की पहचान की गई है, जहां भूमिगत जल को कृत्रिम तरीके से फिर से भरने की जरूरत है। इस काम को ग्रामीण और शहरी इलाकों में करीब 39.25 लाख निर्माणों के जरिये किया जाएगा। जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने मंगलवार को नई दिल्ली में जल संसाधन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में यह जानकारी दी। बैठक में बारिश के पानी से सिंचाई और उसे दोबारा भरने के बारे में समीक्षा की गई। पवन बंसल ने कहा कि केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड ने भूमिगत जल को कृत्रिम तरीके से दोबारा भरने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है। इसका उद्देश्य भूमिगत जलाशयों को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली विशेष कृत्रिम तकनीक के लिए क्षेत्र प्रदान करना है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण ने भूमिगत जल विकास और प्रबंधन के नियमन के लिए 82 क्षेत्रों में ब्लॉकों, मंडलों, जिलों, तहसीलों आदि को अधिसूचित किया है, ताकि भूमिगत जल कम होने से रोका जा सके।
इस बात की चर्चा करते हुए कि भारत में पानी से सिंचाई की समृद्ध परंपरा बहुत पुरानी है, पवन बंसल ने कहा कि प्राचीन पुस्तकों, पांडुलिपियों और पुरातत्व महत्व की वस्तुओं में इस परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में मौजूद जम्मू के कुहाल, हिमाचल प्रदेश के कुल, उत्तराखंड के गुल, महाराष्ट्र के पात, लद्दाख के जिंग, नांगालैंड के जाबो, तमिलनाडु के इरिस, कर्नाटक के केरेस, राजस्थान के टांका, कुंड, बावड़ी और झालर आदि में बारिश के पानी से सिंचाई की प्रणाली के परंपरागत उदाहरण हैं, लेकिन पाश्चात्य प्रौद्योगिकी के आगमन और पाइप लाइन से पानी की सप्लाई की व्यवस्था लागू होने के कारण इनका इस्तेमाल खत्म हो गया।
भूमिगत पानी को दोबारा भरने के काम में लोगों को शामिल करने की जरूरत पर जोर देते हुए बंसल ने कहा कि आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में सामुदायिक जल भूमिगत जल प्रबंधन के उदाहरण देखने से पता लगता है कि भूमिगत जल संसाधन के स्थाई प्रबंधन खासतौर से चट्टानी और पहाड़ी इलाकों में इसकी काफी संभावना है। उन्होंने बताया कि जल संसाधन मंत्रालय ने बारिश के पानी से सिंचाई और भूमिगत जल को दोबारा भरने के काम में अभिनव प्रयोग करने वाले लोगों और गैर सरकारी संगठनों, ग्राम पंचायतों, यूएलबी, संस्थानों, निगम क्षेत्र के लिए एक राष्ट्रीय जल पुरस्कार सहित 21 पुरस्कार शुरू किए हैं।
जल संसाधन मंत्री ने बताया कि केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास एक मॉडल विधेयक भेजा है, ताकि वे भूमिगत जल विकास के नियमन और नियंत्रण के लिए उपयुक्त कानून लागू कर सकें। उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों ने इस विधेयक को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने जोर देकर कहा कि यह जरूरी है कि सभी राज्य अपने स्तर पर नियमन का काम पूरा कर ले। बैठक में सांसद डॉ प्रभा किशोर तावियाद, डॉ ज्योति मिर्धा, श्रीप्रताप रॉव एन सोनावाने, डॉ किरोड़ीलाल मीणा, डॉ प्रभा ठाकुर और डॉ ज्ञान प्रकाश पिलानिया मौजूद थे। भूमिगत जल के स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए इन लोगों ने इसे दोबारा भरने के उपाय करने का आह्वान किया।