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नई दिल्ली। भारत, विश्व व्यापार के लिए बंदरगाह के रूप में अपनी यात्रा की रूपरेखा तैयार कर रहा है। इससे उसकी बंदरगाहों और टर्मिनल्स से पश्चिम और पूर्व के बीच माल की ढुलाई करने वाले जहाजों के लिए बुनियादी ढांचा और क्षमता की दृष्टि से बढ़ती मांग को पूरा करने की आवश्यकता बढ़ गई है। भारत का समुद्र-पारिये कार्गो आकार की दृष्टि से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य की दृष्टि से 75 प्रतिशत समुद्र के रास्ते लाया-ले जाया जाता है। इस प्रकार प्रमुख बंदरगाह, विदेशी व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए भारत के बंदरगाह और जहाजरानी उद्योग का विकास वर्तमान स्तर को बनाए रखने और आने वाले वर्षों में और उच्च स्तर प्राप्त करने में अत्यावश्यक है। भारतीय बंदरगाहों की क्षमता जनवरी 2011 में एक बिलियन मीट्रिक टन वार्षिक थी, जो 31 दिसंबर 2011 को बढ़कर 1160 मिलियन मीट्रिक टन हो गई है।
हाल ही में नई दिल्ली में संपन्न भारतीय नौवहन सप्ताह ने नौवहन क्षेत्र के विकास की सामान्य हित में हिस्सा लेने के लिए नीति निर्माताओं, निर्णायकों और विविध क्षेत्रों में काम कर रहे उद्योगपतियों के लिए उपयुक्त मंच उपलब्ध कराया है। सम्मेलन में कई विषयों जैसे-भारी वस्तुओं को उठाने के उपकरण, उत्तोलन प्रौद्योगिकीयां और उद्यम संसाधन आयोजन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह परिदृश्य तक, वैश्विक भार प्रवाह में अंतरदेशीय आकार, रूझान और परिवर्तन आदि पर विचार किया गया। इस सप्ताह समाप्त हुए भारतीय नौवहन सप्ताह 2012 ने नौवहन के क्षेत्र में राष्ट्रीय और वैश्विक नेताओं, विशेषज्ञों, नीति निर्धारकों, निवेशकों और सभी हितधारकों को एक मंच पर एकत्र किया।