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नई दिल्ली। ‘पुनर्वास तर्कों का विषय नहीं है, देश में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानपूर्वक रोटी, कपड़ा और रहने के लिये स्थान प्राप्त करने का हक है, प्रत्येक व्यक्ति के विकास से ही समाज का विकास होता है।’ यह बात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा ने न्यायमूर्ति एचएल गोखले के साथ, टिहरी बांध संबंधी एनडी जयाल एवं शेखर सिंह बनाम केंद्र सरकार और राज्य सरकार और अन्य मुकद्दमों की सुनवाई के दौरान कही।
इसके साथ ही बांध कंपनी टिहरी जलविद्युत निगम (टीएचडीसी) ने झील का जलस्तर 830 मीटर तक किये जाने का निवेदन नामंजूर कर दिया। अदालत ने टीएचडीसी को उत्तराखंड राज्य सरकार के पुनर्वास के कार्य को पूरा करने के लिये मांगी गई 102.99 करोड़ की राशि देने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव को विशेष रुप से कहा कि आप हमें पुनर्वास की ‘विस्तृत व सत्य जानकारी’ मुहैया कराएं, जिसके बाद आगे की सुनवाई होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के आदेशों के अनुसार, पुनर्वास कार्य किसी भी तरह के विस्थापन के 6 माह पूर्व होना चाहिये था। उच्च न्यायालय ने 29 अक्तूबर 2005 को टिहरी झील को भरने के लिये हरी झंडी दिखा दी और झील का भरना दोपहर अढ़ाई बजे से शुरु हुआ था, किंतु पुनर्वास का काम आज भी पूरा नही हो पाया है। टिहरी बांध के विस्थापितों को पुनर्वास ना होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने टिहरी बांध झील को भरने की पूरी इजाजत आज तक नही दी है।
तीन नवंबर को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महान्यवादी एचपी रावल ने कहा कि हमे पुनर्वास के लिये जलाशय भरने की इजाजत उत्तराखंड सरकार को अतिरिक्त आवश्यक राशि देने की शर्त पर मिल गई है। उन्होंने अदालत में टीएचडीसी की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया, जिसमें राज्य सरकार का 25 अक्टूबर 2011 का 825 मीटर तक सर्शत जलाशय भरने की इजाजत का एक पत्र संलग्न था। पिछले 20 वर्ष से विस्थापितों का पक्ष रख रहे, वादियों के वकील संजय पारिख ने अदालत को बताया की पुनर्वास मात्र पैसा देने से नही हो जायेगा, पुनर्वास राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों की ही जिम्मेदारी है।
पिछले पंद्रह वर्षो से विस्थापित पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं और दोनों ही सरकारें सही और उचित पुनर्वास करने में नाकाम रही हैं। पिछले वर्ष 2010 में अधिक वर्षा के कारण हरिद्वार और ऋषिकेश में बाढ़ का खतरा दिखाकर टीएचडीसी ने अदालत से टिहरी बांध जलाशय में 830 मीटर से ऊपर पानी भरने की इजाजत ले ली थी, जो सही नही थी। पानी भरने के कारण रिम के चारों ओर के गांवो में तीव्र भूस्खलन हुआ। वहां का पुनर्वास भी नही हो पाया है। अदालत ने अभी तक अनेक आदेश दिये हैं, जिसके बावजूद भी पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विस ने अदालत में कहा कि नदी पार के लोगों के लिये प्रस्तावित पुल भी नही बन पाये हैं। अभी 825 मीटर के नीचे रहने वालों तक का पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि हम जमीनी सच्चाई अदालत के सामने रख रहे हैं, जबकि टीएचडीसी कागजों पर पुनर्वास पूरा हुआ दिखा रही है। देश में बांधों के कारण हुये विस्थापितों की स्थिति भाखड़ा बांध से लेकर नर्मदा के बांधों तक यही है। टिहरी बांध उसी क्रम में है। बांध बनाने के लिये सुंदरलाल बहुगुणा और मेधा पाटकर के साथ बुरा सलूक किया गया है किंतु पुनर्वास तो आज भी पूरा नही हुआ है।
न्यायमूर्ति लोधा ने कहा कि अदालत पूरी बात को सही रुप से जानने के बाद ही निर्णय देगी। पुनर्वास पर तर्क-विर्तक नही होने चाहिये लेकिन, उसे सही रुप से पूरा करना भी तो आपकी जिम्मेदारी है। ज्ञात्वय है कि एनडी जयाल एवं शेखर सिंह बनाम केंद्र सरकार और राज्य सरकार और अन्य कई केस सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे है। ग्यारह वर्षो बाद 1 सितंबर 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में टिहरी बांध को स्वीकृति देते हुये कहा था कि-
‘यह स्पष्ट किया गया है कि परियोजना के चालू होने के पूर्व शर्तो को साथ-साथ अमल करने की शर्त को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत बहुत बारीकी से निगरानी किया जाएगा एवं परियोजनाकार यह सुनिश्चित करेंगे कि जलाशय को भरने के लिए टी-1 और टी-2 सुरंग बंद करने के पूर्व हरेक तरीके से विस्थापन, पुनस्र्थापन एवं पुनर्वास हो जाए।’
अब राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों को ही न केवल टिहरी बांध के पूर्ण जलाशय स्तर तक का वरन रिम के चारों ओर 80 से ज्यादा गांवो में भूस्खलन के खतरों को दूर करना चाहिये। राज्य सरकार अब पुनर्वास स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं को पूरा करे। इन्हीं सुविधाओं में कमी को दिनकर समिति की फरवरी 2010 की रिर्पोट में कहा गया था और 102.99 करोड़ रुपयों की मांग में इन सुविधाओं हेतु भी पैसे की आवश्यकता जुड़ी है। देखना यह भी है कि यह पैसा इन्ही कार्यो पर खर्च हो। भ्रष्टाचार ना हो यह भी देखना होगा। राज्य सरकार को पुनर्वास हेतु यह धनराशि उपलब्ध कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के कदम का भी टिहरी वासियों ने धन्यवाद किया है। टीएचडीसी को नयी परियोजनाएं आवंटित करने वाली राज्य सरकार अब पुनर्वास के कार्य को युद्धस्तर पर करेगी।