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नई दिल्ली। भारत के महापंजीयक के दिसंबर 2011 में जारी नवीनतम नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) बुलेटिन के अनुसार नवजात शिशु मृत्यु दर 3 अंक और गिरकर 47 पर आ गई है। वर्ष 2010 के दौरान एक हजार नवजात शिशुओं में से 50 की मृत्यु हो जाती थी। ग्रामीण इलाकों में नवजात शिशु मृत्यु दर 4 अंक गिरकर प्रति 1000 जन्म पर 55 से 51 पर है, जबकि शहरों में यह दर 34 से गिरकर 31 पर आ गई है।
गोवा में अभी भी नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे कम 10 है। इसके बाद केरल का स्थान है, जहां प्रति 1000 शिशुओं में 13 शिशुओं की मृत्यु होती है। जनवरी 2011 में यह संख्या 12 थी। केरल में शहरों में शिशु मृत्यु दर 11 से कम हो कर 10 पर आ गई है। मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा 1000 के पीछे 62, उत्तर प्रदेश और ओडीशा में 61, असम, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, मेघायलय में अभी भी शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत 47 से ज्यादा है।
नमूना पंजीकरण प्रणाली बड़े पैमाने पर होने वाला जनसंख्या सर्वेक्षण है, जो राष्ट्रीय स्तर पर जन्म दर, मृत्यु दर और अन्य प्रजनन एवं मृत्यु संबंधी संकेतकों के विश्वसनीय वार्षिक अनुमान प्रदान करता है। जमीनी जांच में चुनी हुई इकाइयों में पार्ट टाइम गणनाकारों आमतौर से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं एवं अध्यापकों की चुनी हुई नमूना इकाइयों में जन्म और मृत्यु की लगातार गिनती की जाती है। एसआरएस के सुपरवाइजर हर छह महीने में स्वतंत्र सर्वेक्षण करते हैं। इन दो स्वतंत्र अधिकारियों के प्राप्त आंकड़ों को मिलाया जाता है। बेमेल और आंशिक रूप से मेल खाने की स्थिति में इनकी दोबारा पुष्टि की जाती है और इसके बाद जन्म और मृत्यु की गणना की जाती है। ग्रामीण इलाकों में नमूना इकाई एक गांव या उसका एक खंड है, अगर गांव की आबादी 2000 या अधिक है। शहरी इलाकों में नमूना इकाई जनसंख्या गणना खंड है, जहां आबादी 750 से 1000 के बीच है। इस समय एसआरएस 7, 597 नमूना इकाइयों (4,433 ग्रामीण और 3,164 शहरी) में काम कर रहा है, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं और 1.5 मिलियन घरों और 7.27 मिलियन जनसंख्या को कवर करते हैं।