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प्राच्य विद्वता पूरब और पश्चिम का गठजोड़-आल्वा

कोलकाता में प्राच्य विरासत का 35वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

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कोलकाता में प्राच्य विरासत सम्मेलन/oriental heritage conference in kolkata

कोलकाता। उत्तराखंड की राज्यपाल मार्ग्रेट आल्वा ने प्राच्य विद्वता को पूरब और पश्चिम के बीच का गठजोड़ बताते हुए कहा कि पश्चिमी देशों में प्राच्य ज्ञान के प्रति आकर्षण स्पष्ट परिलक्षित होने लगा है। मार्ग्रेट आल्वा ने कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएटंल हैरीटेज के ‘प्राच्य विरासत’ विषय पर आयोजित चार दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। राज्यपाल ने कहा कि आज विश्व के पूरबी देशों की विद्वता पश्चिम के बुद्धिजीवियों का मार्गदर्शन कर रही है।
राज्यपाल ने कहा कि पूर्वी देशों की बौद्धिक संपदा के महत्व को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी स्वीकार किया है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की जारी रिपोर्ट के अनुसार ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान का अध्ययन रोगों के लक्षणों को पहचानने में सहायक होता है। राज्यपाल ने कहा कि देश-विदेश से आए विद्वतजनों, विभिन्न प्रदेशों के राज्यपाल, केंद्र और प्रदेशों के मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित विभिन्न क्षेत्रों के जाने पहचाने व्यक्तियों, विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस सम्मेलन को अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।
राज्यपाल ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्राच्य विरासत के समक्ष एक बड़ी चुनौती है, जो तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्पन्न की जा रही है, ऐसी स्थिति में प्राच्य विरासत के गंभीर विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे अपने ज्ञान और कौशल की वृद्धि के लिए एक वैज्ञानिक प्रणाली का सृजन करें। उन्होंने उत्तराखंड को आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध बताते हुए आयोजकों का आह्वान किया कि वे इस तरह के सम्मेलन उत्तराखंड में आयोजित करें।
मार्ग्रेट आल्वा ने यह भी कहा कि प्राच्य विरासत के प्रत्येक पहल को नया स्वरूप देने के लिए विस्तृत अध्ययन एवं शोध की त्वरित आवश्यकता है, इसमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल हैरीटेज को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। राज्यपाल ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस की उन पक्तियों को उद्घृत किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘जिस प्रकार कश्ती पानी में रह कर भी पानी से ऊपर रहती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी दुनिया में रहना चाहिए’, स्वामी रामकृष्ण परमहंस का यह संदेश स्थिर एवं शांतिपूर्ण जीवन जीने का गुरूमंत्र है।
उद्घाटन सत्र में सम्मेलन के अध्यक्ष महामहोपाध्याय मुरारी मोहन वेदांता दितीर्थाशास्त्री विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, देश-विदेश के विद्वान, बुद्धिजीवी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल हैरिटेज के चेयरमैन डॉ रामकृष्ण शास्त्री, प्रेसीडेंट प्रोफेसर गोपा शास्त्री, महासचिव गोपाल चक्रवर्ती, राज्यपाल के साथ उनके एडीसी वीके कृष्णकुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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