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नई दिल्ली। प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने ‘प्रवासी भारतीयों से विवाह’ के संबंध में मार्ग निर्देशन पुस्तिका जारी की है। इस पुस्तिका में प्रवासी भारतीय पतियों के परित्यक्त महिलाओं को उपलब्ध सुरक्षा, उपलब्ध कानूनी उपाय, शिकायतों की सुनवाई के लिए संपर्क किए जा सकने वाले अधिकारियों के बारे में सूचना दी गई है। ‘प्रवासी भारतीय के साथ अपनी बेटी के विवाह के बारे में सोच रहे हैं’ नामक एक पैम्फलेट भी मंत्रालय ने जारी किया है। इस पैम्फलेट में विवाह पूर्व एहतियाती बिंदुओं को रेखांकित किया गया है।
प्रवासी विवाह संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए राष्ट्र स्तरीय समन्वय एजेंसी राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने भी ‘प्रवासी विवाह से संबंधित समस्याएं-क्या करें और क्या न करें’ नामक पैम्फलेट जारी किया है। इस पैम्फलेट में प्रवासी विवाह से संबंधित समस्याओं के बारे में बताने के साथ ही उन महिलाओं के लिए एहतियाती क्या करें, क्या न करें कदमों के बारे में जानकारी दी गई है, जो किसी अप्रवासी भारतीय अथवा भारतीय मूल के व्यक्ति के साथ विचार कर रही हैं। एनसीडब्ल्यू ने प्रवासी विवाह से संबंधित समस्याओं पर ‘द 'नो व्येर' ब्राइड्स’ शीर्षक से एक रिपोर्ट भी जारी की है।
इसके अलावा परित्यक्त अथवा तलाकशुदा महिला भारतीयों को भारतीय मिशनों, पोस्टों से कानूनी, वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए वर्ष 2007 में एक योजना भी लागू की गई थी, इसमें संशोधन किया गया और नवंबर 2011 से संशोधित योजना प्रभावी हुई। यह योजना उन भारतीय महिलाओं के लिए है, जिनका उनके प्रवासी भारतीय विदेशी पति ने परित्याग कर दिया हो अथवा जो विदेश में तलाक प्रक्रिया का सामना कर रही हों।
इस संदर्भ में ये शर्तें भी हैं-महिला का विवाह भारत अथवा विदेश में प्रवासी भारतीय अथवा विदेशी से हुआ हो, विवाह के 15 वर्षों के भीतर महिला को भारत अथवा विदेश में परित्यक्त किया गया हो, महिला के प्रवासी भारतीय, विदेशी पति ने 15 वर्षों के भीतर तलाक प्रक्रिया शुरु कर दी हो या प्रवासी भारतीय, विदेशी पति के विवाह के 20 वर्ष के भीतर एकतरफा तलाक लिया गया हो और महिला के रहन-सहन और गुजारा भत्ता का मामला दायर किया गया हो।
यह योजना उन महिलाओं के लिए नहीं है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामला है। इस स्थिति में अभिभावक बच्चे के अपहरण के आपराधिक आरोप से छूट प्राप्त है, बशर्ते बच्चे की रखवाली के बारे में न्यायालय ने निर्णय न दिया हो, इसके तहत विकसित देशों में प्रति मामले पर 3000 अमेरिकी डॉलर और विकासशील देशों में 2000 अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि की सीमा है। इस राशि को आवेदक के सूचीबद्ध कानूनी वकील अथवा भारतीय सामुदायिक संघ, महिला संगठन, महिला को सहायता प्रदान करने वाले स्वंय सेवी संगठन को प्रदान किया जाएगा ताकि मामला दायर करने में दस्तावेजों की तैयारी के लिए महिला को सहायता दी जा सके।