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नई दिल्ली। सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर हुए एक सम्मेलन में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि केंद्र सरकार का सारा जोर सार्वजनिक विवरण व्यवस्था में सुधार लाने और भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यान्वयन की चुनौती का सामना करने पर है, सरकार देश के सभी नागरिकों को वाजिब दरों पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है, यह एक ऐतिहासिक, लेकिन मुश्किल वायदा है, जिसे तब तक पूरा नहीं किया जा सकता, जब तक हम इसे हकीकत में बदलने का एक प्रभावशाली तंत्र नहीं विकसित कर लेते, सार्वजनिक वितरण व्यवस्था इसी प्रक्रिया का एक अंग है।
वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले 6 दशकों में और बंगाल में अकाल के बाद से काफी समय बीत चुका है, हमारी खेती की पैदावार तब से काफी बढ़ गयी है, जिसके जरिए हम सुनिश्चित करते हैं कि सबके लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध हो। लेकिन, हमें अब भी इस उपलब्धता को प्रभावशाली ढंग से देश के कोने-कोने में और खासतौर से वहां, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, पहुंचाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं, इसके अलावा अनाज तक सबकी पहुंच बनाने के लिए हमें यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सभी नागरिकों को बुनियादी तौर पर पोषण मिल सके, ताकि वे अधिक उत्पादक हों और आर्थिक विकास से उत्पन्न अवसरों से लाभ उठा सकने के काबिल बनें।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में सतत आर्थिक विकास के चलते ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोगों की क्रय शक्ति में सुधार आया है। 12वीं योजना के दृष्टिकोण पत्र में कहा गया है कि 2007 और 2010 के बीच की अवधि में वेतन दर में अखिल भारतीय स्तर पर 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई, सबसे तेज विकास दर आंध्र प्रदेश की 42 प्रतिशत रही जबकि ओडीशा में यह 33 प्रतिशत थी। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी यह वृद्धि दर क्रमश: बढ़कर 19 और 20 प्रतितशत रही। इसके चलते कुछ माल और सेवाओं की मांग बढ़ गयी, जिसके कारण अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के माल पर लगातार उच्च मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ गया।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पूरे समय के दौरान पूर्ति की दर अपर्याप्त रही और समय समय पर मौसम के चलते खाद्य अर्थव्यवस्था में कमी भी महसूस की गयी। इसके कारण मुद्रास्फीति प्रबंधन के क्षेत्र में पर्याप्त चुनौतियों का सामना करना पड़ा, आशाजनक तरीके से अब हम इस मुद्रास्फीति की अवधि से बाहर निकल चुके हैं और जैसा कि स्पष्ट हो रहा है, खेती की अच्छी पैदावार के चलते इसमें मदद मिली है। बढ़ती आबादी वाले और निरंतर विकास कर रहे, इस देश के लिए मेरा एक सुझाव है कि हम खाद्य सुरक्षा और खेती की उत्पादकता में सुधार के लिए भी एक चुनौती मानें, हरित क्रांति के जरिए हम अनाज उत्पादन में आत्म निर्भरता प्राप्त कर चुके हैं, लेकिन अब हमें एक नई क्रांति की जरूरत है। हमारे सामने बढ़ती हुई आबादी को भोजन उपलब्ध कराने और उन्हें पोषक आहार देने की भी चुनौती है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने देश के पूर्वोत्तर भाग तक हरित क्रांति पहुंचाने का एक कार्यक्रम शुरू किया है, इसके लिए हमें खेती में और पूंजी निवेश करने की जरूरत है, जिसमें पिछले कुछ वर्षों के दौरान आई गिरावट में सुधार देखा गया है। बिजली, पानी, ग्रामीण सड़कें, राष्ट्रीय राजमार्ग, भंडारण और शीतागार सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है, साथ ही देश की कृषि उत्पादकता में भी सुधार लाना होगा, हमें निजी सार्वजनिक संस्थानों से अनुसंधान और विकास कार्यों तथा कृषि प्रसार टैक्नालॉजी में ज्यादा सहायता की जरूरत है। अनाजों की पैदावार में सुधार के साथ ही हमें अनाज खरीद की अपनी क्षमता बढ़ानी पड़ेगी। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के सामने प्रमुख चुनौती है वास्तविक लाभार्थियों तक बिना किसी नुकसान के सबसे निचले स्तर तक अनाज पहुंचाना। इसके लिए हमें बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण अभियान शुरू करने की जरूरत है। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को आधुनिक बनाना भारत सरकार की सबसे ऊंची प्राथमिकता है। यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के अंतर्गत 35 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में स्थित पांच लाख से ज्यादा उचित दर की दुकानें विभिन्न परिस्थितियों में काम कर रही हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 में खासतौर से सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में सुधार की चर्चा की गयी है, ताकि यूनिक आईडेंटीफिकेशन के लिए आधार का लाभ उठाया जा सके और इस अधिनियम के अंतर्गत पात्र लाभार्थियों को प्राधिकृत किया जा सके। किसी इतने बड़े मंच को मान्यता देते हुए और सरकार के बहुस्तरीय कार्यान्वयन की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए राजकीय सहायता के सीधे हस्तांतरण पर गठित कार्यबल ने एक राष्ट्रीय सूचना संस्था (नेशनल इंफार्मेशन यूटिलीटी) के गठन की सिफारिश की है ताकि सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था नेटवर्क को कम्प्यूटरीकृत किया जा सके। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में सुधार का एक महत्वपूर्ण घटक है, इसमें आधार का इस्तेमाल। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लाभार्थियों को आधार व्यवस्था में शामिल किया जा सकता है, इससे कोई लाभार्थी दो बार लाभ नहीं उठा पाएगा और फर्जी तथा गलत तरीकों से सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के आंकड़ों में शामिल नहीं हो सकेगा, जिससे इस व्यवस्था में बरबादी कम होगी।
उन्होंने कहा कि भारत की गरीब आबादी, जो अधिकांशत: खाद्य सुरक्षा अधिनियम की महत्वपूर्ण लक्ष्य है, के लिए सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लाभों को पोर्टिबिलीटी बहुत महत्वपूर्ण है। आधार के अनुसार तैयार की गई व्यवस्था से सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लाभ एक राज्य से दूसरे राज्य तक और देशभर में पोर्टेबल हो सकेंगे। इससे सौदेबाजी की ताकत आपूर्तिकर्ता से लाभार्थी के हाथ में पहुंच जाएगी, जिससे जवाबदेही में सुधार आएगा और लाभार्थी का सशक्तीकरण हो सकेगा। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सिर्फ क्म्प्यूटरीकरण की जरूरत नहीं है बल्कि इसमें पंचायत राज निकायों और स्थानीय समुदाय को पारदर्शी और खुली प्रक्रिया के जरिए शामिल करना पड़ेगा। उन्होंने वित्त मंत्रालय की तरफ से मैं आप सबको इस सार्वजनिक वितरण तंत्र में सुधार की कोशिशों के लिए सहयोग की पेशकश की और अनुरोध किया है कि इस सम्मेलन से लाभ उठाते हुए एक ऐसी कार्य योजना तैयार करें जो राज्यों में नागरिकों की सहायता में इस्तेमाल की जाए और उन्हें वह प्राप्त हो सके, जो देश उन्हें देना चाहता है।