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नई दिल्ली। जनजातीय मामलों का मंत्रालय भारत के जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राइफेड) को केंद्रीय क्षेत्र की स्कीम जनजातीय उत्पादों के लिए बाज़ार विकास के अंतर्गत अनुदान सहायता देता है जैसे-फुटकर विपणन विकास क्रिया कलाप, एमएफपी मार्केटिंग डेवलपमेंट क्रियाकलाप, व्यवसायिक प्रशिक्षण, जनजातीय दस्तकारों और एमएफपी संग्रहकर्ताओं का कौशल उन्नयन और क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) गतिविधि।
इसके अलावा हथकरघा विकास आयुक्त, वस्त्र मंत्रालय के अनुसार जनजातीय उत्पादों के विपणन सहित हथकरघा क्षेत्र के समग्र विकास के लिए निम्नलिखित स्कीमें लागू की गयी हैं-समन्वित हथकरघा विकास स्कीम, हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण परियोजना, विपणन एवं निर्यात संवर्धन स्कीम, विविधीकृत हथकरघा विकास स्कीम और मिल गेट प्राइस स्कीम।
इसी तरह से वस्त्र मंत्रालय का हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय जनजातीय उत्पादों के प्रोत्साहन और विपणन सहित हस्तशिल्प विकास एवं संवर्धन की निम्नलिखित परियोजनाएं संचालित करता है–बाबा साहब अंबेडकर हस्तशिल्प विकास योजना, विपणन समर्थन सेवा स्कीम, डिजाइन एवं टेक्नालॉजी अपग्रेडेशन स्कीम, मानव संसाधन विकास स्कीम, अनुसंधान एवं विकास स्कीम और हस्तशिल्प शिल्पकार व्यापक कल्याण परियोजना।
मंत्रालय के पास बड़े शहरों में जनजातीय उत्पादों के बाज़ार स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, लेकिन विपणन एवं निर्यात संवर्धन परियोजना के अंतर्गत भारत सरकार नेशनल हैंडलूम एक्सपो, विशेष प्रदर्शनियां, जिला स्तर की प्रदर्शनियां, शिल्प मेले आदि, जैसे आयोजनों के लिए वित्तीय सहायता देती है, ताकि हथकरघा बुनकरों को विपणन मंच उपलब्ध कराए जा सके। लाभार्थियों में जनजातीय बुनकर भी शामिल हैं। हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय शिल्प बाज़ार, गांधी शिल्प बाज़ार और अखिल भारतीय आधार पर बायर-सेलर मीट जैसे आयोजनों के लिए विपणन समर्थन सेवा स्कीम के तहत कार्यान्वयन एजेंसियों को वित्तीय सहायता देता है, ताकि जनजातीय सहित सभी दस्तकार अपने उत्पाद बेच सकें। देश के विभिन्न भागों में ट्राइफेड के शोरूम खुले हुए हैं, जहां जनजातीय कलाकृतियां प्रदर्शित की जाती हैं और बेची जाती हैं।