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नई दिल्ली। केंद्रीय विद्युत राज्य मंत्री केसी वेणुगोपाल ने घरेलू इस्तेमाल के लिए कोयले की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से खानों के विकास तथा ईंधन सुरक्षा में सुधार लाने की जरूरत बताई है। नई दिल्ली में बिजलीघरों के संचालन और रखरखाव पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान कोयला कंपनियों के संकेतों के अनुसार भारत को 12वीं योजना के अंतिम वर्ष तक 213 मिलियन टन कोयला आयात करना पड़ सकता है, जबकि ग्यारहवीं योजना के आखिरी साल तक सिर्फ 35 मिलियन टन कोयला आयात करने की जरूरत पड़ी थी। सम्मेलन का आयोजन एनटीपीसी ने किया है। इसमें विभिन्न देशों के प्रतिनिधि आए हैं। सम्मेलन का विषय है-देश के लिए बिजली-भावी चुनौतियां।
उन्होंने इस बात की जरूरत पर जोर दिया कि आने वाले दिनों में मेरिट आर्डर आपरेशन रोजमर्रा की बात हो जाएगी और कहा कि अब जबकि परिदृश्य बदल रहा है, आने वाला समय उन लोगों का होगा जो बिजलीघरों का संचालन अधिक कुशल तरीके से कर पाते हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि कोयले की उपलब्धता और मूल्य निर्धारण-ये दोनों ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिनसे आज के विद्युत क्षेत्र को दो-चार होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि घरेलू मोर्चे पर कोयला कंपनियों और मार्च 2009 के बाद चालू हुए बिजलीघरों के बीच ईंधन सप्लाई के समझौते नहीं हो पाए हैं।
उन्होंने चिंता प्रकट की कि एक तरफ तो देश में 11वीं योजना के लक्ष्य पूरा करने के लिए कोयला उपलब्ध नहीं है और दूसरी ओर आयातित कोयले के मूल्य निर्धारण संबंधी मुद्दे जोर पकड़ रहे हैं। इन मुद्दों के महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री ने इनका कोई हल निकालने के लिए सचिवों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित कर दी है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि जल्द ही इन मुद्दों के हल ढूंढ लिए जाएंगे और कहा कि मार्च 2009 के बाद चालू हुए बिजलीघरों को ईंधन सप्लाई के समझौतों पर हस्ताक्षर के लिए शुरूआत की जा चुकी है।
वेणुगोपाल ने एनटीपीसी से अनुरोध किया कि वह अपने इस्तेमाल के लिए विकसित कोयला खानों से उत्पादन जल्दी शुरू करने के लिए कड़ी मेहनत करे। इन खानों के चालू हो जाने से उपलब्धता और जरूरत के बीच अंतर पाटने में सहायता ही नहीं मिलेगी, बल्कि बिजली पैदा करने की लागत में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा कि ताप बिजलीघरों की कुशलता में आपरेशन एंड मेंटीनेंस के तरीकों से पर्यावरण सरोकारों पर बेहतर तरीके से ध्यान दिया जा सकता है और साथ ही बिजली उत्पादन की लागत में भी कमी लाई जा सकती है। उन्होंने बिजली उद्योग के सामने मौजूद भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी नई चुनौतियों की भी चर्चा की।