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नई दिल्ली। भारत सरकार ने फसल सीजन की शुरूआत से पहले किसानों को फसलों की कीमत के बारे में पूर्व संकेत देने के क्रम में कई फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करके किसानो के लिए गेहूं, धान और मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का विस्तार किया है। गेहूं और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले कई वर्षों में लगातार बढ़ाया गया है, ताकि यह किसानो के लिए लाभकारी हो। उसी प्रकार खाद्यान्नों का उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से कई कदम उठाये गये हैं। खाद्यान्नों की खरीद खुले बाजार से की जाती है और सरकारी एजेंसियां किसानों से खाद्यानों की मात्रा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती हैं। प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अधीन खाद्यान्नों की बढ़ी हुई आवश्यकता को पूरा करने के क्रम में देश के गैर-पारंपरिक खरीद क्षेत्रों में, विशेषकर पूर्वी राज्यों में, खाद्यान्नों का उत्पादन और उसकी खरीद बढ़ाने की आवश्यकता है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन होने पर वार्षिक खरीद में लगभग 65 मिलियन टन की वृद्धि होने का अनुमान है।पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे खाद्यान्नों की खरीद वाले प्रमुख राज्यों में उत्पादन और खरीद लगभग परिपूर्णता के स्तर तक पहुंच गयी है, क्योंकि इन राज्यों में विपणन-योग्य अतिरिक्त खाद्यान्नों की खरीद की जा रही है। खाद्यान्नों की अतिरिक्त आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खाद्यान्नों की खरीद से जुड़े उभरते राज्यों में खरीद को बढ़ाना होगा, नये तौर पर उभरे खरीद वाले राज्यों में छत्तीसगढ़, चावल के एक बड़े योगदानकर्ता के रूप में उभरा है, जबकि मध्य प्रदेश और ओडिशा भी केंद्रीय पूल में खाद्यान्नों की अतिरिक्त मात्रा में काफी योगदान कर रहे हैं।
देश के पूर्वी हिस्से में चावल का उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि मंत्रालय ने पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाओ नामक एक विशेष योजना की शुरूआत की थी। खरीद को बढ़ाने और उसे कायम रखने में खरीद संचालनों की आवाजाही में राज्यों की सक्षम एजेंसियों का विकास और असम, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में चावल के लिए मिलों की क्षमता बढ़ाना, दो प्रमुख क्षेत्र होंगे। खरीद से जुड़े संचालनों में सहकारी संस्थाओं और स्व-सहायता समूहों की अधिकाधिक भागीदारी की भी जरूरत है। असम, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में राज्य सरकारों को विकेंद्रित खरीद प्रणाली भी लागू करनी चाहिए। इन राज्यों को विकेंद्रित खरीद प्रणाली लागू करने के लिए प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं।