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उर्दू के आसमान पर हिंदी के सितारे

देवमणि पांडेय का ग़ज़ल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’

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'अपना तो मिले कोई' का विमोचन /'apna to mile koi' released

मुंबई। देवमणि पांडेय के ग़ज़ल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ का विमोचन 12 फरवरी को भवंस कल्चरल सेंटर मुंबई के एसपी जैन सभागार में धूमधाम से हुआ। सभागार में कई महत्वपूर्ण शायर, कवि, पत्रकार और कलाकार मौजूद थे। ग़ज़ल संग्रह का विमोचन करते हुए मशहूर शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने कहा कि इस किताब के बाद देवमणि पांडेय ने अपने अदबी सफर का पहला पड़ाव पार कर लिया है। किताब को पढ़ते हुए कई शेरों पर उंगली ठहर गई और कई शेर चमकते हुए दिखे। देवमणि ने अपनी मेहनत से पाठकों का एतबार हासिल किया है। उन्होने देवमणि के कुछ शेर भी पढ़े। मसलन-
दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी,
इक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे।
ज़फ़र गोरखपुरी ने आगे कहा कि मेरी नज़र में अच्छी शायरी वो है जो अपने पाठकों के ज़ौक़ पर पूरी उतरे, उन्हें ज़हनी सुकून और रूहानी मसर्रत अता करे, जो पाठकों को मायूस न करे, बल्कि उनमें ज़िंदगी से लड़ने का हौसला पैदा करे, मुझे ख़ुशी है कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों में ये ख़ासियत मौजूद है, मेरी दुआ है कि देवमणि पांडेय का ये शेरी मजमुआ हिंदी और उर्दू दोनों ज़बानों में मक़बूल हो।
ग़ज़ल संग्रह पर अपनी राय जाहिर करते हुए जाने-माने शायर शमीम तारिक़ ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें, ग़ज़ल के मिजाज़ से और उसकी तहज़ीब से बहुत ख़ूबसूरत रिश्ता रखती हैं। यही रिश्ता भविष्य में उनके कामयाब ग़ज़लगो होने की ज़मानत है। ग़ज़ल अरबी से फारसी में, फारसी से उर्दू में और उर्दू से दीगर भारतीय भाषाओं में सफ़र करती हुई मक़बूल हो रही है। अब ग़ज़ल पर देवमणि पांडेय का भी उतना ही हक़ है जितना किसी उर्दू शायर का, मैं न केवल उनको मुबारकबाद पेश करता हूं, बल्कि पूरे यक़ीन से ऐलान करता हूं कि एक अच्छे ग़ज़लगो के तौर पर देवमणि पांडेय मक़बूल होंगे।
मशहूर शायर और अदीब अब्दुल अहद साज़ ने कहा कि हिंदी ग़ज़ल से उर्दू शायरी की तरफ़ आने वालों में देवमणि पांडेय का नाम अलग मुकाम रखता है। यूं तो देवमणि पांडेय के कलाम में कई पहलू हैं, मगर दो पहलू ज़्यादा साफ़ हैं। एक तो उनका तज़रुब-ए-इश्क़ (प्रेम-अनुभव) और दूसरा आज के समाज के बीच बसर करते हुए सामान्य आदमी का कर्ब और घुटन ! उन्होंने अपने पैरों चली ज़मीन और अपने सर पर लदे हुए आसमान को अपने क़लम से ब-ख़ूबी दर्शाया है। देवमणि पांडेय का यह संकलन ‘अपना तो मिले कोई’ पढ़ते हुए आपको ये अंदाज़ा बख़ूबी हो सकेगा कि उर्दू के आसमान पर हिंदी के सितारे कितनी ख़ूबसूरती से टांके जा सकते हैं और हिंदी के गुलशन में उर्दू के फूल कितने प्यार से खिलाए जा सकते हैं।
इसके बाद लोक साहित्य की मर्मज्ञ और सुप्रसिद्ध लोक गायिका डॉ शैलेश श्रीवास्तव ने तरन्नुम में देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल सुनाकर मुशायरे का आगाज किया-
 जमाने में कहां, कब कौन किसका साथ देता है, 
जो अपना है वही ग़म की हमें सौग़ात देता है।
फिर युवा शायर युसूफ दीवान ने दमदार आवाज़ में ग़ज़लें पेश कीं- कीजिए सबको ख़बरदार न समझा जाए, मंजिले इश्क को हमवार न समझा जाए। नई नस्ल के मारूफ़ शायर हैदर नज्मी ने देवमणि पांडेय को उनकी इस किताब के लिए मुबारकबाद देते हुए अपने ताजा कलाम पेश किए-
 तुम्हारा नाम अगर लूं तो झूठ बोलूंगा, 
मुझे तो ग़म मेरा परवरदिगार देता है। 
शायरा दीप्ति मिश्र ने अपने चुनिंदा कलाम पेश किए-  
 दुखती रग पे उंगली रख कर पूछ रहे हो कैसी हो? 
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, दुनिया चाहे जैसी हो।
अब्दुल अहद साज ने अपना कलाम यूं पेश किया-
राहे जहन्नम के राही,
हम करम नगर के वासी हैं।
इसके बाद ज़मीर काजमी ने कई उम्दा शेर पेश किए-
मताए उम्र की गठरी मैं ले जाऊं, कहां रखूं?
गुज़रने वाला हर लम्हा ये दौलत लूट जाता है। 
फ़िल्म लेखक राम गोविंद अतहर ने भी बेहतर शेर और कविताएं पढ़ीं- 
पत्थरों को कोई ढोता नहीं है, 
ख़ाक बन जा फिर हवा ले जाएगी।
शायर शमीम तारिक़ ने ग़ज़ल पेश की-
सहर सर पर खड़ी है और सारी बात बाकी है।
इनके बाद नामचीन शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने निराले अंदाज में अपने कलाम पढ़े- 
मेरी एक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए, 
बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए,
मैं ज़फ़र ताज़िंदगी बिकता रहा परदेश में,
अपनी घरवाली को इक कंगन दिलाने के लिए। 
सभागार में ज़फ़र साहब की शरीके-हयात किताबुन्निसा भी मौजूद थीं। देवमणि पांडेय ने शाल और गुलदस्ता भेंट करके उनका इस्तकबाल किया। समारोह अध्यक्ष नक़्श लायलपुरी साहब के उम्दा शेर सुनकर सामयीन भाव विभोर हो गए- 
एक आंसू गिरा सोचते-सोचते, 
याद क्या आ गया सोचते-सोचते,
जैसे तस्वीर लटकी हो दीवार पे,
हाल ये हो गया सोचते-सोचते। 
कार्यक्रम के बीच में देवमणि पांडेय ने अपनी रचनायात्रा पर अपने विचार रखते हुए मजरूह सुल्तानपुरी को याद किया और बोले कि मेरा परिचय यह है कि मैं मजरूह साहब के नगर सुल्तानपुर का हूं। उन्होंने कुछ ग़ज़लें भी पेश कीं-
कुछ तीरगी में गुज़री, उजालों में कट गई,
इक ज़िंदगी मिली थी, सवालों में कट गई,
कितनी अजीब होती है शायर की ज़िंदगी,
लफ़्जों की जुस्तजू  में रिसालों में कट गई।
समारोह में किताब के डिज़ाइनर जैन कमल ने अपनी बात रखी और जैन मुनि की ओर से देवमणि को मोतियों की माला भेंट की। समारोह के आरम्भ में वरिष्ठ शायर नंदलाल पाठक ने शायरों का स्वागत किया। कवयित्री माया गोविंद ने देवमणि पांडेय को उनकी लगनशीलता और लेखन की तारीफ करते हुए इस तरह बधाई दी-
‘अपना तो मिले कोई’ कृति ये जो तुम्हारी है,
हर दिल में उतर जाए आशीष हमारी है,
बज़्में अदब में छाए यह है दुआ हमारी,
हर दिल अज़ीज़ होगी हर इक ग़ज़ल तुम्हारी,
तेरे सुख़न का ऐ देव अंदाज़ है निराला,
घायल के लिए मरहम प्यासों के लिए प्याला।
समारोह का संचालन कवयित्री प्रज्ञा विकास ने किया। उन्होंने भी अपने कलाम पढ़े। आभार प्रदर्शन समकालीन हिंदी कविता के चर्चित कवि बोधिसत्व ने किया। इस मौके पर साहित्य, संगीत और सिने जगत से कुमार प्रशांत, यज्ञ शर्मा, डॉ सत्यदेव त्रिपाठी, हृदयेश मयंक, डॉ सुषमा सेन, कविता गुप्ता, खन्ना मुज़फ्फरपुरी, रेखा रोशनी, वसंत आर्य, अनंत श्रीमाली, सिंगर राजकुमार रिज़वी, संगीतकार विवेक प्रकाश, गायिका रश्मिश्री, उदघोषिका प्रीति गौड़ और वीर सावरकर फेम अभिनेता शैलेंद्र गौड़ उपस्थित थे।

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